देश के बंटवारे के लिये केवल कांग्रेस को दोष देना ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है। जो भी तथ्य है वे सब के सब दस्तावेजों पर आधारित हैं और आज भी उपलब्ध हैं। वीपी मेनन के ट्रांसफर ऑफ पॉवर, मौलाना आज़ाद के इंडिया विन्स फ्रीडम, डॉ राममनोहर लोहिया के भारत विभाजन के अपराधी, डॉ राजेंद्र प्रसाद के इंडिया दिवाईडेड,, आदि आदि और विदेशी लेखकों की फ्रीडम ऐट मिडनाइट सहित अनेक किताबो से लेकर आज तक लगातार भारत के विभाजन पर किताबे लिखी जा रही हैं पर कल 9 दिसंबर को लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिक संशोधन विधेयक पेश करते हुए भारत के बंटवारे के बारे में जो कहा, वह तथ्यों से परे और मिथ्या है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर किया । कांग्रेस ने भारत को धर्म के आधार पर नही बांटा था, बल्कि धर्म के आधार पर वीडी सावरकर और एमए जिन्ना की जुगल जोड़ी ने धर्म ही राष्ट्र है के सिद्धांत पर पाकिस्तान के रूप में एक धर्म आधारित देश अलग करने का षडयंत्र किया था । भारत तो, जैसा हज़ारों साल से, अनेकता में एकता की संस्कृति लिये समृद्ध था, वैसा ही बना रहा। यह अलग बात है कि भारत के सर्वधर्म समभाव के उदार और बहुलतावादी चरित्र और स्वरूप को, आरएसएस और उसके स्वयंसेवक न तब पचा पाए थे और न अब पचा पा रहे हैं।
अमित शाह को उनके अल्प ज्ञान के लिये क्षमा कर दिया जाना चाहिये । वे उतना ही इतिहास जानते हैं जितना व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के सिलेबस में है।
भारत के बंटवारे के संबंध में निम्न तथ्य हैं जो सर्वविदित है।
● भारत का बंटवारा धर्म के नाम पर नहीं हुआ था, बल्कि पाकिस्तान धर्म यानी इस्लाम के नाम पर भारत के एक हिस्से को जो पूर्व और पश्चिम में थे काट कर बना था।
● शेष भारत ने किसी भो धर्म के आधार पर अपना अस्तित्व स्वीकार नहीं किया था। उसने उदार, लोकतांत्रिक और पंथ निरपेक्ष शासन व्यवस्था तथा संविधान को स्वीकार किया।
● भारत आज़ाद हुआ 15 अगस्त 1947 को और संविधान लागू हुआ 26 जनवरी 1950 को। संविधान के मूल प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष शब्द नहीं है जो बाद में जोड़ा गया था। उस शब्द के रहने या न रहने से संविधान के मूल ढांचे पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि संविधान के मौलिक अधिकारों में ही अनुच्छेद 15 में कह दिया गया है कि धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा।
● पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक गणराज्य घोषित किया जब कि भारत एक पंथ निरपेक्ष गणराज्य बना रहा।
● 1937 में वीडी सावरकर ने सबसे पहले हिन्दू राष्ट्र की बात की और राष्ट्र को धर्म से जोड़ा। द्विराष्ट्रवाद की नींव यहीं से पड़ी।
● इसकी प्रतिक्रिया होनी ही थी, और 1940 में मुस्लिम लीग ने धर्म के आधार पर एक अलग इस्लामी राज्य की मांग कर दी। द्विराष्ट्रवाद, वीडी सावरकर और एमए जिन्ना की सोच थी।
● 1937 के प्रांतीय चुनावों में निर्वाचित कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। इस वक्त मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा, जिसके मुखिया तब सावरकर थे, ने अंग्रेजों का पृष्ठपोषण किया।
● 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया था। सावरकर ने हिन्दुओं से अधिक से अधिक संख्या में ब्रिटिश फ़ौज में शामिल होने की अपील की। सावरकर हिन्दुओं का सैन्यीकरण चाहते थे। उन्हें अंग्रेजों का एहसान भी तो उतारना था।
● वीडी सावरकर की हिंदू महासभा और एमए जिन्ना की मुस्लिम लीग ने मिल कर, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब कांग्रेस और गांधी ब्रिटिश राज के खिलाफ थे तो, अंग्रेजों का साथ दिया। जिन्ना का जनाधार मुस्लिम समाज मे तो था, लेकिन खान अब्दुल गफार खान, मौलाना आज़ाद सहित कुछ प्रभावशाली मुस्लिम नेता जिन्ना के साथ नही थे। वे कांग्रेस के साथ थे और बंटवारे के विरूद्ध थे।
● सावरकर का कोई बहुत अधिक प्रभाव हिन्दू समाज पर नहीं था, पर जब वे अंग्रेजों से माफी मांग कर अंडमान से बाहर आये तो पूरी तरह अंग्रेज भक्त हो गए। माफी मांग कर अंडमान से निकल आने और फिर अंग्रेजों को यह आश्वासन देने कि वे ब्रिटिश राज के प्रति आजीवन वफादार रहेंगे, के कारण, सावरकर की स्वाधीनता संग्राम के एक सेनानी के रूप में जो प्रतिष्ठा थी, वह लगभग समाप्त हो गयी। उन्होंने भी द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया।
● सावरकर ने न केवल अंग्रेजों का साथ दिया बल्कि उन्होंने जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार भी चलाई। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो हिन्दू महासभा के नेता थे और बाद में जनसंघ के संस्थापक भी बने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कांग्रेस के खिलाफ और अंग्रेज़ी के साथ थे। सावरकर, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, हिंदू महासभा और आरएएस का राष्ट्रवाद केवल एक धर्म के ही इर्दगिर्द लिपटा रहा। यह संकीर्ण राष्ट्रवाद है।
● डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने न केवल अंग्रेजों का ही साथ दिया, बल्कि उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने वालों के खिलाफ मुखबिरी भी की। 1942 के आन्दोलन का दमन करने के लिये अंग्रेजों को तरह तरह की सूचनाएं भी दीं। साथ ही उन्होंने नेताजी सुभाष बाबू की भी खिलाफत की। डॉ मुखर्जी आज़ादी के आंदोलन के ही खिलाफ थे।
● डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, बंगाल की मुस्लिम लीग के साथ फजलुल हक़ की सरकार में मंत्री थे। यह सरकार 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ थी। सन 42 का भारत छोड़ो आंदोलन भारत की आज़ादी का सबसे मुखर, व्यापक और स्वयंस्फूर्त जन आंदोलन था। ऐसे ऐतिहासिक अवसर पर सावरकर, जिन्ना, हिंदू महासभा, आरएसएस सब के सब एक साथ अंग्रेजों की मुखबिरी कर रहे थे और द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत के आधार पर अपने अपने धर्म पर आधारित देश पाने के लिये भारत विभाजन का षडयंत्र रच रहे थे।
● एमए जिन्ना ने अंग्रेजों का साथ, द्वितीय विश्वयुद्ध में इस लिये दिया था, कि उन्हें एक अलग धर्म आधारित राज्य पाकिस्तान चाहिये था। और सावरकर इस लिये जिन्ना के साथ और अंग्रेजों से चिपके थे कि जब पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर एक अलग राज्य बनेगा तो निश्चित ही भारत धर्म के नाम पर एक हिंदू राज्य बन जायेगा।
● जब गांधी सहित पूरी कांग्रेस या तो जेलों में बंद थी या सड़कों पर आन्दोलतरत थी, या भूमिगत होकर आन्दोलन का संचालन कर रही थी तो, जिन्ना और सावरकर, आज़ादी के इस आंदोलन के खिलाफ थे और अपने अपने धर्मो के लिये अलग अलग देश पाने की लालसा, में अंग्रेजों के साथ थे।
● लेकिन भारत का स्वाधीनता संग्राम 1937 तक धार्मिक आधार पर स्पष्टतः नही बंटा था। हालांकि कोशिश शुरू हो गयी थी। लेकिन 1940 के बाद हिन्दू मुस्लिम में कटुता बढ़ने लगी थी और उसके लिये दोनों ही धर्मो के कट्टरपंथी तत्व जिम्मेदार थे। कांग्रेस के आन्दोलतरत हो जाने के कारण इन दोनों कट्टरपंथी ध्रुवीय दलों को सामाजिक सद्भाव तोड़ने का मौका मिला। अंग्रेज समाजिक सद्भाव बना रहे यह चाहते भी नहीं थे। क्योंकि, हिंदू मुस्लिम एकता से सबसे अधिक खतरा उन्हें ही था।
● जब यह तय हो गया कि अब भारत बंटवारा होगा ही, और पाकिस्तान का बनना तय हो गया तो, उस बातचीत में, कांग्रेस की तरफ से नेहरू, पटेल, आज़ाद और पाकिस्तान की तरफ से जिन्ना प्रमुख वार्ताकार थे। इस बातचीत में सावरकर की कोई बहुत भूमिका नहीं थी। हालांकि सावरकर ने हिन्दू बहुल इलाक़ो को पाकिस्तान में न जाने देने के लिये अंग्रेजों को पिटीशन आदि दिया था।
● 1946 -47 में राजनैतिक स्थितियां इतनी नाजुक हुईं कि कांग्रेस पाकिस्तान के अलगाव को रोक नहीं सकी। लेकिन यह धर्म के नाम पर देश का बंटवारा करना नहीं था। धर्म के नाम पर बंटवारा तब होता जब भारत हिन्दू राष्ट्र बनता।
● आज़ादी के आंदोलन के दौरान, कांग्रेस का भारत मे व्यापक जनाधार था। इसकी तुलना में हिंदू महासभा का कोई भी जनाधार देश मे नहीं था। गांधी का अपना निजी जनाधार तो था ही, और वह सबके ऊपर था। अंग्रेज भी गांधी की लोकप्रियता को जानते थे, और उनका महत्व भी समझते थे । कांग्रेस जिस प्रकार के राष्ट्रवाद से निकल कर विकसित हुयी थी, वह तिलक, गोखले, टैगोर, अरविंदो, गांधी जैसे महान और उदारमना नेताओ का राष्ट्रवाद था जिसमे धर्म के लिये कोई स्थान कभी था ही नहीं। वह भारतीय परंपरा का राष्ट्रवाद था। जो ज़बको जोड़ कर रखता था।
● वीडी सावरकर जिस राष्ट्रवाद की उपज थे, वह वीसवीं सदी के यूरोपीय नेशन स्टेट वाला, मुसोलिनी और हिटलर का संकीर्ण और श्रेष्ठतावाद पर आधारित राष्ट्रवाद था जो मूल रूप से भारतीय परंपरा और बहुलतावादी दर्शन के ही खिलाफ था। यह राष्ट्रवाद राष्ट्र तोड़क राष्ट्रवाद है। आजकल इसी ब्रांड के राष्ट्रवाद की धूम है।
● सावरकर को अपना इच्छित हिंदू राष्ट्र नहीं मिला जबकि जिन्ना ने अपना अभीष्ट, पाकिस्तान पा लिया। यह वीडी सावरकर के लिये एक सदमे के समान था।
● जनाधार न होने, जनस्वीकृति न मिलने और मुख्य धारा से अलग थलग कर दिए जाने की कुंठा वीडी सावरकर में अंत तक बनी रही। गांधी हत्या के षड़यंत्र में भी उनका नाम आया । हालांकि वह मुक़दमे में बरी हो गए। उनका अंत भी दुःखद, एकाकी और त्रासद रहा।
● बंटवारे का दोष केवल कांग्रेस पर मढ़ना इतिहास की गलत व्याख्या है। बंटवारा, सावरकर और जिन्ना की कट्टरपंथी, ज़िद भरी सोच, और अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति का चरम विंदु था।
● अगर सावरकर और जिन्ना ने धर्म ही राष्ट्र है के आधार पर द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत न गढ़ा होता तो भारत के बंटने की नौबत ही नहीं आती।
● फिर अंग्रेज जिन्होंने पहले कांग्रेस के जवाब में धर्म के आधार पर, 1906 में मुस्लिम लीग का गठन कराया,फिर 1915 में हिन्दू महासभा का गठन हुआ फिर मुसोलिनी की नीतियों के आधार आरएसएस का गठन 1925 में हुआ। इन सबका एक छिपा हुआ एजेंडा यह था कि कांग्रेस और आज़ादी के आंदोलन को कमज़ोर करना था। आज़ादी के आंदोलन में अन्य संगठन भी शामिल थे, पर कांग्रेस और गांधी स्वाधीनता संग्राम की मुख्य धारा थे, जो अंग्रेजों के लिये बड़ी चुनौती बने हुये थे।
● जब धार्मिक ध्रुवीकरण करके देश मे हिन्दू मुस्लिम के सवाल पर सामाजिक सद्भाव को लगातार एक साजिश के अंतर्गत केवल अपने अपने धर्म आधारित राष्ट्र को पाने के लिये हिन्दू महासभा आरएसएस और मुस्लिम लीग ने बिगड़ना शुरू किया और अंग्रेजों का इसमे मूक समर्थन था तो भला भारत कैसे नहीं बंटता ?
● भारत की आज जो भी प्रगति और हैसियत दुनियाभर में है वह एक उदार, पंथनिरपेक्ष, वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशील विचारों के नेतृत्व के कारण है जो उसे आज़ादी के तुरन्त बाद मिली थी।
● भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बना। संविधान सभा ने भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बनाया। वह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना। यह बात आरएसएस को रास नहीं आयी। सुहाया। आरएसएस, हिन्दू महासभा और जनसंघ को छोड़कर सभी भारतीय नेताओं ( इसमें कांग्रेस ,सोशलिस्ट ,कम्युनिस्ट सब थे) ने धर्मनिरपेक्षता से अपने को कभी अलग नहीं किया।
● वहीं पाकिस्तान एक धर्म आधारित राज्य तो बन गया और उसने खुद को इस्लामी मुल्क घोषित भी कर दिया। पर उसे मिला क्या ? फौजी तानाशाही, मुल्क का बिखराव, घिसटता लोकतंत्र।
© विजय शंकर सिंह
शानदार , काश अमित शाह शाह इसे पढ़ें और भूल सुधार करें
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