Tuesday, 10 December 2019

स्वामी विवेकानंद का एक उद्धरण और सीएबी / विजय शंकर सिंह

आज जब नागरिकता संशोधन विधेयक, सीएबी के माध्यम से भारत की अवधारणा के अस्तित्व पर आघात किया जा रहा है तो लगभग डेढ़ सौ साल पहले विवेकानंद के उंस कालजयी भाषण का अंश यह पढा जाना चाहिये, जिसके लिये विवेकानंद, स्वामी विविदिशानंद से स्वामी विवेकानंद बने थे। उनको यह सम्बोधन खेतड़ी के महाराजा ने, शिकागो में होने वाली विश्व धर्म संसद में भाग लेने के पहले  दिया था।

विवेकानंद आधुनिक भारत के उन मनीषियों में से रहे हैं जिन्होंने हिंदू धर्म की मूल आत्मा का दर्शन अमेरिका में लोगो को कराया था। उनके संक्षिप्त पर सारगर्भित भाषण ने ईसाई पादरियों की सोच को हिला कर रखा दिया था, जो भारत को एक जादू टोने वाला और संपेरो का देश समझते थे। ईसाई मिशनरी खुद को सभ्य और वैचारिक रूप से प्रगतिशील समझने के एक सतत दंभ की पिनक में सदैव रहते हैं। अपने धर्मावलंबियों की संख्या बढ़ाने के लिये धर्मांतरित करने वाले सेमेटिक धर्मो के अनुयायियों और धर्मगुरुओं के लिए भारतीय, वांग्मय, विश्व बंधुत्व, एकेश्वरवाद, से लेकर सर्वेश्वरबाद, बहुदेववाद, से होते हुये, निरीश्वरवाद तक और मूर्तिपूजा से लेकर निराकार ब्रह्म तक की मान्यता वाला यह  महान धर्म अनोखा और विचित्र ही लगा था। यह भी एक दुःखद सत्य है कि धर्म की सनातन और दार्शनिक व्याख्या करने वाले महान शंकराचार्य और विवेकानंद दीर्घजीवी नहीं रहे। पर उनके लिखे और कहे गए प्रवचन तथा साहित्य से उनकी सोच का पता चलता है।

इसी उदारता, तार्किकता और सबको साथ लेकर चलने की आदत ने भारत भूमि में जैन, बौद्ध, सिख, और यहां तक इस्लामी सूफीवाद को भी अपनी बात कहने और उन्हें पनपने के लिये उर्वर वातावरण उपलब्ध कराया। आज भारत मे धर्म, ईश आराधना, उपासना पद्धति के जितने  रूप विद्यमान हैं, और थे, वे सभी, दार्शनिक रूप से हिंदू धर्म की किसी न किसी मान्यता से जुड़े हुये हैं। धर्म धारण करता है। वह आधार देता है। वह मनुर्भव की बात करता है। वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को प्रतिपादित करता है। विवेकानंद ने इसी बात को अपनी ओजस्वी वाणी और प्रभावपूर्ण शब्दो मे सबके सामने शिकागो में रखा था।

आज जिस हिंदुत्व का पाठ पढ़ाया जा रहा है वह न तो वेदों का है, न उपनिषदों का, न शंकराचार्य का है, न विवेकानंद का, न भक्तिकाल के निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने वाले संत कवियों का है, न राम और कृष्ण को अपनी लेखनी से घर घर पहुंचा देने वाले तुलसीदास और सूर का है। न यह राजा राममोहन राय के ब्रह्मो समाज का है, न वेदों की ओर लौटो का संदेश देने वाले स्वामी  दयानंद  का है । न तो यह मानसिक विकास की बात करने वाले गूढ़ दार्शनिक अरविंदो का है और न ही सबको एक समान धरातल पर रख कर सोचने वाले अधोर कीनाराम का है। वह तो यह संकट काल मे राह दिखाने वाली गीता का भी नहीं है। फिर वह किस हिंदू धर्म की बात करता है ? हिंदुत्व की यह विचारधारा, जिसका ढोल आज पीटा जा रहा है, वह  भारत मे यूरोपीय संकीर्ण राष्ट्रवाद को रोपने के लिये भारतीय प्रतीकों, और शब्दजाल से बुनी हुयी  एक प्रच्छन्न अवधारणा है जो सनातन धर्म से  बिलकुल अलग है।

अब उनके भाषण का यह अंश पढें,
" मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं।
मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है। "
( यह स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण का एक अंश जो उनके द्वारा 11 सितंबर 1893 को दिया गया था। ) 

जब फ़र्ज़ी डिग्री और फ़र्ज़ी हलफनामा देकर लोग सरकारें चला रहे हैं, अवतार बन जा रहे हैं, और सरकार का ही तँत्र उनके रहमोकरम पर है तो नागरिकता का प्रमाणपत्र क्या फ़र्ज़ी नही बन सकता हैं ? यह खूब बनेंगे। तमाम मुक़दमे कायम होंगे। जनता का शोषण होगा। सरकारी मुलाजिमान की आमदनी बढ़ेगी। देश मे नफरत बढ़ेगी। वोटों का ध्रुवीकरण होगा। और एक भी बाहर नहीं किया जाएगा, सब यहीं के यहीं रहेंगे। जैसे सभी पुराने नोट जुगाड़ और सरकारी तँत्र की कृपा से बदल कर नए रूप में आ गए, वैसे ही सभी घुसपैठिया भी बदल जाएंगे और कोई अन्य देश उन्हें नहीं लेगा। यह कहना कि यह बिल हिंदू समाज के उत्पीड़न के कारण उन्हें राहत देने के लिये लाया जा रहा है, गलत है और उनके इतिहास ज्ञान की तरह ही एक मिथ्यावाचन है। 

आज तक भारत सरकार ने न तो पाकिस्तान से, न ही बांग्लादेश से और न ही अफ़ग़ानिस्तान से वहां के हिंदुओं के उत्पीड़न के मुद्दे पर कोई बात नहीं की है। अवैध बांग्लादेश से आने वाले लोगो को वापस भेजे जाने के संबंध में भी आज तक कोई बातचीत सरकार ने बांग्लादेश से नहीं की है। यह एनआरसी और सीएबी एक दो नहीं सैकड़ो डिटेंशन सेंटर बना देंगे और फिर यह पूरा देश एक बड़े जेलखाने में बदल जायेगा। हम विकास और प्रगति के सारे काम, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि आदि के सारे एजेंडे को छोड़ कर बस अपने अपने पड़ोसी की फिक्र में लग जाएंगे कि उसके पास उसकी नागरिकता साबित करने का कोई कागज़ है भी या नहीं। यह नागरिकबंदी, नोटबंदी की ही तरह विफल और विनाशक सिद्ध होगी।

© विजय शंकर सिंह 

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