Friday, 12 May 2017

एक कविता - तुम्ही कोई बात कहो ! / विजय शंकर सिंह

तुम्ही कोई बात कहो
या छेड़ो साज़ कोई
तिमिर के यह पल कटें
सुबह की आस बंधे !

वक़्त कुछ खिसके
पिघले तुषार कुछ
ख्वाब भरे आँखों में,
अफ़साने ही अफ़साने !

आओ इस धुंध में
जब हवा गुमसुम हो,
आकाश हो मेघों भरा,
ढूंढें, एक चाँद आज !

कुछ तो कहीं नूर दिखे
कुछ तो उम्मीद बंधे ,
तुम्ही कोई बात कहो
या छेड़ो साज़ कोई !!

( विजय शंकर सिंह )

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