ग़ालिब -10.
अफ़सोस कि, दंदां का किया रिजक, फलक
ने,
जिन लोगों को थी दर्खुर ए उक्द ए गुहर, अंगुश्त !!
दंदा दांत
रिजक जीविका
दर्खुर योग्य
उक्द गाँठ, ग्रंथि.
गुहर मुक्ता, मुहर.
अंगुश्त अंगुली.
Afsos ki dandaan kaa kiyaa rizq falaq ne
Jin logon ko thee, darkhur e uqd e guhar, angusht !!
-Ghalib.
अफ़सोस है कि जिन की अंगुलियाँ मुक्ता लड़ियों से शोभित होनी चाहिए थी, दुर्भाग्य से शोकग्रस्त हो कर उनकी उंगलियाँ दांतों का आहार बन रही है.
यह शेर शोक की पराकाष्ठा की और इशारा करता है. हिंदी की एक पंक्ति याद आती है, कनगुरिया की अंगूठी ज्यों कंगना हो जाय. शोक में कनिष्ठा की अंगूठी कनिष्ठा के और दुर्बल हो जाने के कारण कंगन की तरह हो गयी है. ग़ालिब का यह शेर भी कुछ ऐसा ही है. शोक में खुद की ही ऊँगली दांतों में इतनी दबी कि उसका आहार बन गयी.
ग़ालिब का काल सामंतवाद और मुग़ल ऐशर्व के पराभव का काल था. विलासिता थी, काहिली थी. शौर्य और पराक्रम का लोप हो चुका था. दरबार था, दरबारी थे, पर राज बस दिल्ली से पालम तक था. कवियों की कल्पना की उड़ान थी. और नए नए परतिमान गढ़े जा रहे थे. ग़ालिब के इस शेर में भी अतिशयोक्ति की निर्बन्ध उड़ान दिखती है.
जिन लोगों को थी दर्खुर ए उक्द ए गुहर, अंगुश्त !!
दंदा दांत
रिजक जीविका
दर्खुर योग्य
उक्द गाँठ, ग्रंथि.
गुहर मुक्ता, मुहर.
अंगुश्त अंगुली.
Afsos ki dandaan kaa kiyaa rizq falaq ne
Jin logon ko thee, darkhur e uqd e guhar, angusht !!
-Ghalib.
अफ़सोस है कि जिन की अंगुलियाँ मुक्ता लड़ियों से शोभित होनी चाहिए थी, दुर्भाग्य से शोकग्रस्त हो कर उनकी उंगलियाँ दांतों का आहार बन रही है.
यह शेर शोक की पराकाष्ठा की और इशारा करता है. हिंदी की एक पंक्ति याद आती है, कनगुरिया की अंगूठी ज्यों कंगना हो जाय. शोक में कनिष्ठा की अंगूठी कनिष्ठा के और दुर्बल हो जाने के कारण कंगन की तरह हो गयी है. ग़ालिब का यह शेर भी कुछ ऐसा ही है. शोक में खुद की ही ऊँगली दांतों में इतनी दबी कि उसका आहार बन गयी.
ग़ालिब का काल सामंतवाद और मुग़ल ऐशर्व के पराभव का काल था. विलासिता थी, काहिली थी. शौर्य और पराक्रम का लोप हो चुका था. दरबार था, दरबारी थे, पर राज बस दिल्ली से पालम तक था. कवियों की कल्पना की उड़ान थी. और नए नए परतिमान गढ़े जा रहे थे. ग़ालिब के इस शेर में भी अतिशयोक्ति की निर्बन्ध उड़ान दिखती है.
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