Thursday, 16 June 2016

Ghalib - Afsos ki dandaa kaa kiyaa rizk falaq ne / अफ़सोस कि, दंदां का किया रिजक, फलक ने,- ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब -10.


अफ़सोस कि, दंदां का किया रिजक, फलक ने,
जिन लोगों को थी दर्खुर ए उक्द ए गुहर, अंगुश्त !!

दंदा दांत
रिजक जीविका
दर्खुर योग्य
उक्द गाँठग्रंथि. 
गुहर मुक्तामुहर.
अंगुश्त अंगुली.

Afsos ki dandaan kaa kiyaa rizq falaq ne
Jin logon ko thee, darkhur e uqd e guhar, angusht !!
-Ghalib.

अफ़सोस है कि जिन की अंगुलियाँ मुक्ता लड़ियों से शोभित होनी चाहिए थीदुर्भाग्य से शोकग्रस्त हो कर उनकी उंगलियाँ दांतों का आहार बन रही है. 

यह शेर शोक की पराकाष्ठा की और इशारा करता है. हिंदी की एक पंक्ति याद आती हैकनगुरिया की अंगूठी ज्यों कंगना हो जाय. शोक में कनिष्ठा की अंगूठी कनिष्ठा के और दुर्बल हो जाने के कारण कंगन की तरह हो गयी है. ग़ालिब का यह शेर भी कुछ ऐसा ही है. शोक में खुद की ही ऊँगली दांतों में इतनी दबी कि उसका आहार बन गयी. 

ग़ालिब का काल सामंतवाद और मुग़ल ऐशर्व के पराभव का काल था. विलासिता थीकाहिली थी. शौर्य और पराक्रम का लोप हो चुका था. दरबार थादरबारी थेपर राज बस दिल्ली से पालम तक था. कवियों की कल्पना की उड़ान थी. और नए नए परतिमान गढ़े जा रहे थे. ग़ालिब के इस शेर में भी अतिशयोक्ति की निर्बन्ध  उड़ान दिखती है.

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