Thursday 7 January 2016

पठान कोट हमला बनाम दादरी - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

जब पठानकोट में आतंकी हमले से सेना और एन एस जी के जवान जूझ रहे थे तो सोशल मिडिया पर दो खेमे बन गए थे. एक सरकार के पक्ष में दूसरा सरकार विरोधी. धड़ाधड़ कमेंट भी आ रहे थे. जिन्होंने कभी कदमताल भी नहीं किया हो, वे भी एक एक्सपर्ट स्ट्रेटेजिस्ट की तरह कमेन्ट कर रहे थे. मुझे बहुत पहले कानपुर में खेला गया एक टेस्ट मैच याद आ गया. मैच भारत और श्री लंका के बीच था और साल था 1986. भारतीय टीम की ओर से सुनील गावस्कर खेल रहे थे. गावस्कर की कानपुर में ससुराल है सो कानपुर वालों का उनसे लगाव भी था और वह क्रिकेट के शीर्ष खिलाड़ी भी थे. गावस्कर बैटिंग कर रहे थे, और अचानक बहुत ही कम रन बना कर वह एक गेंद पर कैच आउट हो गया. मैं भी उसी प्लेयर्स पैवेलियन में ही था. कुछ सिपाही भी सामने बैठे थे. उसी में से एक ने कहा कि अगर इस गेंद को गावस्कर थोडा आगे बढ़ कर खेलते तो यह पक्का बाउंड्री पार जाता. दूसरे सिपाही ने प्रतिवाद किया, तो दोनों में बहस होने लगी। मैं पीछे बैठा सब सुन रहा था. मैंने कहा तुमने क्रिकेट खेली है ? उसने कहा, नहीं साहब. कभी नहीं पर . फिर मैंने कहा शोर मत मचाओ और खामोशी से बैठो. कुछ कुछ ऐसा ही मुझे पठान कोट हमले पर कुछ मित्रों के कमेंट को पढ़ कर लगा। फिर भी ऐसे कमेंट कभी कभी उपयोगी सुझाव भी दे देते हैं. युद्ध हो, पुलिस की विवेचना हो, या कुछ भी हो, कभी कभी सामान्य बुद्धि से दिया गया सुझाव भी एक्सपर्ट्स को अचंभित कर देता है.

लेकिन इन्ही कमेंट्स के साथ एक फ़ोटो भी शेयर की गयी जिसमे दादरी की घटना को पठानकोट के सापेक्ष रख कर कुछ बात कही गयी थी. पाकिस्तान एक दुश्मन देश है यह अलग बात है कि वह एक इस्लामी देश भी है. उसका जन्म धर्म के आधार पर हुआ, और वह एक धर्म के शासन में विश्वास करता है. पाकिस्तान का एक मात्र उद्देश्य है भारत को विघटित करना, उसे तोडना और अलग अलग कर देना. पाकिस्तान इस योजना पर जिया उल हक़ के समय से ही काम कर रहा है. पर भारत जो बहुल वादी संस्कृति के साथ जीता आया है और जीता रहेगा , अपनी इसी सांस्कृतिक एकता के कारण भारत अनेक आघात सहते हुए भी जीवित है. इक़बाल जो, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, कह गए है, तो बहुलतावादी संस्कृति के साथ जीने की दुर्दम्य क्षमता ही , वह कुछ बात है.

पर कुछ मित्र जब इसे दादरी से जोड़ते हैं तो मुझे उनके मानसिक ' दिव्यांगता ' पर कोई संदेह नहीं रह जाता है. वे कहते हैं दादरी में मुआबजा दिया गया , राजनेताओं का तीर्थ बना रहा. पर पठान कोट में ऐसा नहीं हुआ. पठानकोट एक दुश्मन का हमला था. उस दुश्मन का जो देश को तोड़ने पर आमादा है.उस दुश्मन का जिसके साथ चार युद्ध हो चुके हैं, और जो हर युद्ध में पराजित हुआ है. उस दुश्मन का जो अपने गठन के काल से ही ईर्ष्या से ओत प्रोत हो कर देश को तोड़ने के कुचक्र में लीन है. पठान कोट हमला भी उसी की नवीनतम कड़ी है. यह अंतिम हमला नहीं है . आगे भी होंगे. यह अलग बात है कि वे सफल नहीं होंगे.

पर दादरी ? देश के अंदर द्विराष्ट्रवाद के शव साधकों का उन्माद था , जिसने एक अफवाह के आधार पर एक परिवार के मुखिया को मार डाला , जिसके एक परिवार का सदस्य सेना में ही देश की रक्षा में नियुक्त है. अफवाह गो मांस की थी. अगर गो मांस था भी तो गोवध तो उत्तर प्रदेश में एक दंडनीय अपराध है, तो भी इसकी जांच करा कर कानूनी कार्यवाही की जा सकती थी। पर जो पागलपन और ज़हर , राष्ट्रवाद के नाम पर कुछ लोग फैला रहे हैं वह जनरल जिया उल हक़ की नीति के ही जाने अनजाने समर्थक बन रहे हैं. आखिर में दादरी से मिला क्या ? एक निर्दोष व्यक्ति की जान गयी . निर्दोष मैं इस लिए कह रहा हूँ कि फोरेंसिक जांच में पाया गया मांस गाय का नहीं था, बल्कि बकरे का था. आज भी उस गाँव से मुस्लिम कहीं नहीं गए. उन्माद बराबर नहीं रहता है , वह विज्ञान के सिद्धांत कि हर चीज़ सामान्य तापक्रम और सामान्य दबाव पर ही आती है . बस एक खलिश रह जाती है. वह कभी कभी किसी किसी को प्रतिशोध लेने के लिए प्रेरित करती रहती है, तो कोई अफ़सोस की कुंठा में डूब जाता है तो, इसे भुला देता है.

कुछ मित्र , पाक हमले को हिन्दू मुस्लिम एंगल से देखते हैं. पाक के लिए भारत मूलतः एक हिन्दू देश है. जिन्ना , जब भी अंग्रेजों से बात करने के लिए मौलाना आज़ाद का नाम , कांग्रेस की सूची में देखते थे, तो वे तुरंत आपत्ति करते थे. उनकीं सोच थी कि, मुस्लिम लीग मुस्लिमों की पार्टी है और मुस्लिमों का हित देखती है, और कांग्रेस हिंदुओं का. जब कि मौलाना आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष थे. और सीमान्त के कद्दावर नेता खान अब्दुल गफार खान साहब कांग्रेस के बडे नेताओं में से थे. पाकिस्तान तो घोषित इस्लामी गणराज्य है पर हमने धर्म आधारित राज्य की व्यवस्था को नहीं चुना. हमने भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणा सर्व धर्म सम भाव को चुना.

पर 1947 या बंटवारे के समय जब पाकिस्तान इस्लामिक गणराज्य बनने और भारत बँटने की दहलीज़ पर था, तो भारत में भी हिन्दू महासभा और आर एस एस इसे हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे. आज भी एक मासूम सवाल कोई न कोई पूछ ही लेता हैं कि, जब धर्म के नाम पर देश बंटा तो भारत हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं बना ? यह तर्क जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद का पिष्टपेषण ही है. जिन्ना धर्म के आधार पर अलग राज्य चाहते थे. कांग्रेस या सोशलिस्ट या अन्य नहीं सिवाय हिन्दू महा सभा और आर एस एस के. यही मनोवृत्ति आज भी कुछ मित्रों में है और वे अतीत के इस कुंठा से मुक्त नहीं हो पा रहे है. देश को हिन्दू मुस्लिम साम्प्रादायिक आधार पर बाँट कर हम पाकिस्तान के ही उद्देश्य को जाने या अनजाने पूरा करेंगे. धर्म , राष्ट्र का आधार नहीं होता है. द्विराष्ट्रवाद एक ऐतिहासिक भूल थी. और वह पचीस साल भी नहीं चल पायी. 
-vss.
( कुछ मित्र कहेंगे मालदा में क्या हुआ. इस पर भी आगे लिखूंगा. पढ़ लीजियेगा . )

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