हैदराबाद विश्वविद्यालय की घटना से राष्ट्र का सम्मान बढ़ा या घटा यह तो राष्ट्रवादी जानें पर इस घटना से एक बात साफ़ है कि खुद को धर्म का सबसे बड़ा रक्षक समझने वाला गिरोह, अगर आंबेडकर का नाम लेता है, या खिचड़ी भोज का आयोजन करता है तो यह एक हाई प्रोफाइल नाटक है. कभी वह आरक्षण की समीक्षा की बात करता है, कभी सामाजिक समानता की, तो कभी विराट हिंदुत्व के गौरवशाली अतीत की. पर सच तो यह है आंबेडकर की प्रशंसा करना उसकी मज़बूरी है. इसी लिए जब प्रशंसा की बात आती है तो वह अत्यंत मुक्त कंठ से , सप्तम स्वर से प्रसंशा करते हैं. लेकिन जब उनकी नीयत , और नीति देखें तो , चाल चरित्र और चिंतन , सब बदला हुआ होता है , चेहरा ज़रूर वे कुछ अलग दिखाते हैं.
जो कुछ भी हैदराबाद विश्वविद्यालय में हुआ है उसकी कड़ी मैं थोड़ा अतीत से उठाता हूँ. वाराणसी में संस्कृत विश्वविद्यालय की यह घटना है. बनारस मे संस्कृत का एक प्रसिद्ध कॉलेज था. जिसे अंग्रेजों ने स्थापित किया था. यह कॉलेज जब, डॉ सम्पूर्णानंद
मुख्य मंत्री हुए तो उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय में उच्चीकृत कर दिया, और इसका नाम हुआ वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय.
बाद में उसके नाम के साथ सम्पूर्णानंद का नाम जोड़ दिया गया. डॉ सम्पूर्णानंद की एक प्रतिमा, विश्वविद्यालय के बाहर एक चौराहे पर लगाई गयी और उस प्रतिमा का अनावरण बाबू जगजीवन राम ने किया. जगजीवन राम के हांथों उस प्रतिमा का अनावरण किया जाना विश्वविद्यालय के छात्र संघ को उचित नहीं लगा. उस प्रतिमा को गंगा जल से धो कर, उसकी शुद्धि की गयी. छात्र संघ के अध्यक्ष उस समय विजय शंकर पांडे थे. यह मानसिकता 70 के दशक की थी. और अब हैदराबाद, कुल चालीस साल हो गए पर यह मानसिकता नहीं बदली तो नहीं बदली.
कुछ लोग एकलव्य और द्रोणाचार्य की बात करते हैं. द्रोण ने तो एकलव्य को शिष्य ही नहीं बनाया था. एकलव्य ने द्रोण की प्रतिमा के समक्ष धनुर्विद्या का अभ्यास किया. पर द्रोण, यह समझ गए कि यह भील बालक उनके प्रत्यक्ष शिष्य अर्जुन को पछाड़ देगा तो उन्होंने अपने प्रच्छन्न शिष्य के दाहिने हाँथ का अंगूठा ही कटवा लिया. एकलव्य की बड़ी प्रसंशा की जाती है. उसे आदर्श शिष्य भी कहा जाता है. पर द्रोण को केवल इसी व्यवहार से मैं आदर्श गुरु नहीं मान सकता. जिस एकलव्य को द्रोण ने कभी कोई शिक्षा नहीं दी , उस से गुरुदक्षिणा मांगने का उनका क्या नैतिक अधिकार था. पर हम तर्क प्रिय लोग इसमें भी कुछ न कुछ तर्क ढूंढ ही लेंगे. यह मानसिकता आज भी है. और इसी मानसिकता का परिणाम रोहित वेमुला की आत्म हत्या है.
दलित समुदाय से आने वाले रोहित को उनके चार अन्य साथियों के साथ कुछ दिनों पहले हॉस्टल से निकाल दिया गया था.
इसके विरोध में वो पिछले कुछ दिनों से अन्य छात्रों के साथ खुले में रह रहे थे. कई अन्य छात्र भी इस आंदोलन में उनके साथ थे.
इसके विरोध में वो पिछले कुछ दिनों से अन्य छात्रों के साथ खुले में रह रहे थे. कई अन्य छात्र भी इस आंदोलन में उनके साथ थे.
आत्महत्या से पहले रोहित वेमुला ने एक पत्र छोड़ा है. यहां हम अंग्रेज़ी में लिखे उनके पत्र का हिंदी में अनुवाद दे रहे हैं.
गुड मॉर्निंग,
आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख़्याल भी रखा. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं.
आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख़्याल भी रखा. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं.
मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से, लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं. हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं. हमारा प्रेम बनावटी है. हमारी मान्यताएं झूठी हैं. हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के ज़रिए. यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों.
एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक. आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है. एक वस्तु मात्र. कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया. एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी. हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में.
मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं. मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो.
हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में. प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था. बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए. इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा. मेरा जन्म एक भयंकर दुर्घटना थी. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला.
हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में. प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था. बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए. इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा. मेरा जन्म एक भयंकर दुर्घटना थी. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला.
इस क्षण मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस ख़ाली हूं. मुझे अपनी भी चिंता नहीं है. ये दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं.
लोग मुझे कायर क़रार देंगे. स्वार्थी भी, मूर्ख भी. जब मैं चला जाऊंगा. मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे. मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यक़ीन नहीं करता. अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है.
लोग मुझे कायर क़रार देंगे. स्वार्थी भी, मूर्ख भी. जब मैं चला जाऊंगा. मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे. मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यक़ीन नहीं करता. अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है.
आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी बाक़ी है. एक लाख 75 हज़ार रुपए. कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे रामजी को चालीस हज़ार रुपए देने थे. उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. लेकिन प्लीज़ फ़ेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें.
मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो. लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं. आप जान जाएं कि मैं मर कर ख़ुश हूं जीने से अधिक.
'छाया से सितारों तक'
उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफ़ी चाहता हूं.
अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना.
आख़िरी बार
जय भीम
मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है.
किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से.
ये मेरा फ़ैसला है और मैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं.
मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए.
(बीबीसी हिन्दी )
'छाया से सितारों तक'
उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफ़ी चाहता हूं.
अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना.
आख़िरी बार
जय भीम
मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है.
किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से.
ये मेरा फ़ैसला है और मैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं.
मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए.
(बीबीसी हिन्दी )
यह आत्महत्या के पहले लिखा गया सुसाइड नोट है. रोहित की आत्म हत्या एक होनहार प्रतिभा की ही आत्म हत्या नहीं है बल्कि पूरे सिस्टम में कहीं भीतर तक पैठे सड़ी हुयी जातिगत विद्वेष की मानसिकता है.
रोहित की आत्महत्या के मामले को दलित और सवर्ण के चिरपरिचित विवाद से थोडा अलग हट कर देखिये. रोहित का विद्यार्थी परिषद के किसी कार्यकर्ता से झगड़ा हुआ था. जिस से हुआ था वह भी दलित था. बंगारू लक्ष्मण वहाँ से सांसद हैं. उन्होंने विद्यार्थी परिषद के कुछ नेताओं के कहने पर मानव संसाधन मंत्री को उन छात्रों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पत्र लिखा. स्मृति ईरानी ने विश्वविद्यालय के कुलपति को उन लड़कों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए निर्देशित किया. कुलपति ने इन पांच लड़कों को विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया. उनकी छात्र वृत्ति रोक दी गयी.और इस से जो परिस्थितयां बनी उस से यह घटना घटी.
जो छात्र विश्वविद्यालय से निष्कासित किये गए हैं वे आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएसन के थे. विद्यार्थी परिषद से इनका वैचारिक मतभेद था और है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस प्रकरण पर न तो कोई निष्पक्ष कार्यवाही की और न ही आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएसन के पदाधिकारियों को बुला कर इस मामले को सुलझाने का प्रयास ही किया. विश्वविद्यालय के सभी छात्र एक ही जैसे होते हैं . उनके बीच विवाद और झगडे होते रहते हैं. पर अगर दोनों ही पक्षों को प्रॉक्टर या डीन ऑफ़ स्टूडेंट्स द्वारा बुला कर बात कर ली गयी होती तो संभवतः यह मामला सुलझ गया होता और यह हादसा टल जाता. पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने पक्षपात पूर्ण कार्यवाही की. परिणाम सब के सामने है. यह उम्र भावुक होती है और भावुकता का अतिरेक कुछ भी करा सकता है.
इन छात्रों को न केवल विश्वविद्यालय से निलंबित ही किया गया, बल्कि जब उनको अपनी पढ़ाई जारी रहने की अनुमति दी गयी तो उनको हॉस्टल, तथा अन्य स्थानों पर जाने की रोक भी लगा दी गयी. उनकी छात्रवृत्ति भी रोक दी गयी जिस से ये छात्र आर्थिक संकट में आ गए. अगर उन छात्रों ने मारपीट की थी तो जो आपराधिक मुक़दमें कायम थे उन पर कार्यवाही की जानी चाहिए थी न कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनके खिलाफ ही पड़ जाता. पर यहां जैसी ख़बरें आ रही है. उस से विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्षपाती रवैय्या साफ़ दिख रहा है..
-vss.
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