Sunday 26 April 2015

Ghalib - Adaa e khaas se "Ghalib" / अदा ए ख़ास से ' ग़ालिब ' - ग़ालिब. / विजय शंकर सिंह


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अदा ए ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता सरा,
सला ए आम है, याराना ए नुक्ता दां के लिए !! 
-
ग़ालिब. 

Adaa e khaas se 'Ghalib' huaa hai nuqtaa saraa,
Salaa e aam hai, yaaraanaa e nuqtaa daa ke liye !!
-Ghalib. 

नुक्ता दां - किसी कला विशेष की बारीकी जानने वाला, यहाँ साहित्य से इसका अर्थ है. 

ग़ालिब अपनी बात विशिष्ट ढंग से प्रस्तुत कर रहा है. गुणग्राही लोगों को आमंत्रण है कि वह इसकी बात सुने. 

अपने समकालीन और कुछ वरिष्ठ शायरों की तुलना में ग़ालिब अपनी लेखन शैली, अंदाज़ ए बयाँ को अलग मानते थे. और उनकी शैली थी भी. चाहे प्रतीकों का मामला हो, या उपमा का या अभिव्यक्ति का. उनकी शैली बिलकुल अलग थी. वह एक विशिष्ट ढंग से अपनी बात कहते थे. ग़ालिब का यही अंदाज़ ए बयाँ उनको सबसे अलग और विशिष्ट बनाता है.

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