Friday 13 February 2015

Remembering Sarojini Naidu / विनम्र स्मरण सरोजिनी नायडू , भारत कोकिला / विजय शंकर सिंह



आज सरोजिनी नायडू का जन्म दिन है. 13 फरवरी 1879 को इन का जन्म हैदराबाद में हुआ था  इन्हें भारत कोकिला के नाम से जाना जाता है. यह एक प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और अंगरेजी की प्रसिद्ध कवि रही हैं. यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष रही हैं. देश की प्रथम महिला राज्यपाल होने का भी गौरव इन्हें प्राप्त हुआ है. यह उत्तर प्रदेश की राज्यपाल रही हैं. बीसवीं सदी की महिलाओं में , विश्व में इनका विशिष्ट स्थान रहा है. इनका जन्म दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह एक प्रखर वक्ता, योग्य प्रशासक, देशभक्त और राजनीतिज्ञ रही हैं.

मूलतः यह बंगाल की थीं. इनका पूरा नाम सरोजिनी चट्टोपाध्याय, था जो बाद में विवाहोपरांत नायडू हो गयीं. इनके पिता डॉ अगोरनाथ चट्टोपाध्याय, बंगाली भद्रलोक समाज से थे. वह एक वैज्ञानिक थे. 

उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से विग्यान की डिग्री ली थी और हैदराबाद में बस गये थे. वहीं उन्होंने निज़ाम के राज्य में विज्ञान कॉलेज की स्थापना की. सरोजिनी नायडू की माँ बरदा सुंदरी एक कवियित्री थीं और वे बांगला में कवितायें लिखती रहती थीं. सरोजिनी अपनी माता पिता के आठ संतानों में सबसे बड़ी थीं. उनके एक भाई बिरेन्द्र नाथ, क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े थे और एक अन्य भाई हरीन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय विख्यात रंगकर्मी और अभिनेता थे.

सरोजिनी नायडू एक अत्यंत प्रतिभाशाली छात्रा रही है. वह उर्दू, तेलुगु, अंग्रेज़ी, बांगला, फारसी आदि भाषाओं की जानकार थीं. 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में शिखर पर रहीं. इनके पिता इनकी प्रतिभा को देखते हुए इन्हें गणितज्ञ या विज्ञान के क्षेत्र में भेजना चाहते थे. पर इनकी रूचि साहित्य और कविता में थी. पहली कविता के प्रफुटित होने का भी एक रोचक विवरण मिलता है. यह गणित का कोई सवाल हल कर रही थी. काफी समय लगा पर वह सवाल अनसुलझा रहा. कुछ वक़्त बिताने के लिए, इन्होंने एक लंबी कविता लिख दी. कविता की थीम प्रेरित करने वाली थी. इस कविता की प्रशंसा हुयी तो उन्होंने एक लंबी कविता 1300 पंक्तियों में लेडी ऑफ़ लेक लिखी. इनके पिता इनके काव्य लेखन से बहुत प्रभावित हुए, और उन्होंने इनकी रुचि साहित्य में देख कर इन्हें काव्य और साहित्य लेखन की और प्रोत्साहित किया. इन्होंने सबसे पहला नाटक फारसी भाषस में मेहेर मुनीर लिखा. सरोजिनी नायडू के पिता ने इसकी कुछ प्रतियां अपने मित्रो को वितरित की और, एक प्रति, निज़ाम हैदराबाद को भी भेंट की. निज़ाम उस रचना से बहुत प्रभावित हुए, उन्होंने इंग्लैंड जा कर अध्ययन करने के लिए सरोजिनी नायडू को छात्र वृत्ति भी दी  इस प्रकार वे 16 वर्ष की अलप वय में ही इंग्लैंड के किंग्स कॉलेज में पढ़ने के लिए चली गयीं।

इंग्लॅण्ड में उन्होंने पहले प्रवेश किंग्स कॉलेज में लिया बाद में उनका दाखिला गिरटन कॉलेज जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का अंग था वहाँ हुआ. वहाँ वह कैम्ब्रिज के प्रसिद्ध विद्वान् आर्थर सायमंस एडमंड गॉस के संपर्क में आईं. गॉस ने उनकी कविताओं को भारतीय पृष्ठभूमि और थीम पर केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने भारत के पर्वत शिखरों, नदियों, मंदिरों, और समाज के ऊपर काव्य रचने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने समकालीन भारतीय जीवन को अपने साहित्य में संजोया. उनके कविता संग्रह " गोल्डन थ्रेश होल्ड " जो 1905 में और " बर्ड ऑफ़ टाइम " जो 1912 में प्रकाशित हुए, में भारतीय प्रतीकों और थीम का प्रयोग बेहद कुशलता से किया गया है. 1912 में ही प्रकाशित एक अन्य कविता संग्रह " ब्रोकेन विंग " ने इंग्लॅण्ड और भारत के अंग्रेज़ी साहित्य के आलोचकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. इस प्रकार वह अंग्रेज़ी साहित्य में अपना स्थान बनाने में सफल हुईं.

अपने इंग्लैंड प्रवास के दौरान ही वह डॉ गोविंदराजुलु नायडू के संपर्क में आयीं. यह मित्रता, प्रेम में और प्रेम अंततः विवाह में परिवर्तित हो गया. 19 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह डॉ नायडू से हुआ और इस प्रकार वह सरोजिनी चट्टोपाध्याय से सरोजिनी नायडू बन गयीं. सरोजिनी के पिता, डॉ चट्टोपाध्याय एक आधुनिक विचारों के व्यक्ति थे. डॉ नायडू के अब्राह्मण होने पर भी उन्होंने इस अंतर्जातीय विवाह जो उस समय लगभग असंभव था, पर कोई आपत्ति नहीं की. उन्होंने खुशी खुशी इस विवाह को स्वीकार किया.

साहित्य के क्षेत्र में इनका मुख्य योगदान कविता में ही रहा है. इनकी कवितायें गेय थीं . अपनी गेयता के कारण ही इन्हें बुल बुल हिन्द या नाइटेंगल ऑफ़ इंडिया कहा गया  1905, और 1912 में इनके तीन कविता संग्रह छप चुके थे. उसी श्रृंखला में, 1918 में एक अन्य संग्रह " मैजिक ट्री " प्रकाशित हुआ. इसके अतिरिक्त इनके दो और काव्य संग्रह भी छपे. वे थे, " विज़ार्ड मास्क " और " ट्रेज़री ऑफ़ पोयम्स " . इनकी रचनाएँ प्रसिद्धि पाने लगीं थी. इनके प्रशंसकों में महर्षि अरविंदो, गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर, और जवाहर लाल नेहरू भी सम्मिलित थे. उनकी कवितायें थीं तो अंग्रेज़ी में पर वे पूरी तरह भारतीय प्रतीकों और विम्ब से युक्त थीं. उनकी आत्मा भारतीय थी

ऐसे ही एक दिन वह गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने गयीं. गोखले भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उस समय शिखर पुरुष थे. उन्होंने सरोजिनी को अपनी कविताओं और वक्तृता शैली से ग्रामीण भारत को देश की आज़ादी के लिए जागृत और प्रेरित करने के लिए कहा. 1916 में महात्मा गांधी देश में चुके थे और गोखले के निर्देश पर वह भारत भ्रमण में थे. उसी दौरान गांधी से सरोजिनी नायडू की मुलाक़ात हुयी और गांधी ने उन्हें पूरी तरह स्वाधीनता संग्राम में जुड़ने की सलाह दी. सरोजिनी ने तब पूरे देश का भ्रमण किया और वे आज़ादी के लिए किये जा रहे संग्राम से खुद को पूरी तरह जोड़ लिया. उन्होंने महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़ने का अभियान चलाया. नारी जागरण के अग्रदूत के रूप में उनका देश के इतिहास में अद्भुत योगदान है.

इंडियन नॅशनल कांग्रेस का अधिवेशन 1925 में कानपूर में हुआ था . वह उस अधिवेशन की अध्यक्ष थी . उन्हें कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष होने का गौरव भी प्राप्त है. 1928 में वह गांधी जी के दूत के रूप में  अमेरिका की यात्रा पर गयीं. वहाँ उन्होंने गांधी के अहिंसा और राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में लोगों को जागरूक किया. 1930 में जब नमक क़ानून तोड़ो आंदोलन के सिलसिले में गांधी जी गिरफ्तार हो गए थे तो उस के बाद जो व्यापक आंदोलन देश में  फैला, उसका नेतृत्व सरोजिनी नायडू ने किया था . 1931 के गोल मेज़ सम्मलेन में इन्होंने मदन मोहन मालवीय और गांधी जी के साथ भी उनके दल में सम्मिलित हुईं. 1942 के भारत छोडो आंदोलन में ये बंदी बनायीं गयीं और 21 महीने तक जेल में रहीं.

आज़ादी के बाद वह उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं. इस प्रकार उन्हें देश की पहली महिला राज्यपाल बनने का भी गौरव प्राप्त है.  लखनऊ में ही 2 मार्च 1949 को 70 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया। 

आज इनकी जयन्ती पर इनकी एक प्रसिद्ध कविता साझा कर रहा हु

AN INDIAN LOVE SONG
by Sarojini Naidu
He
Lift up the veils that darken the delicate moon 
of thy glory and grace, 
Withhold not, O love, from the night 
of my longing the joy of thy luminous face, 
Give me a spear of the scented keora 
guarding thy pinioned curls, 
Or a silken thread from the fringes 
that trouble the dream of thy glimmering pearls; 
Faint grows my soul with thy tresses' perfume 
and the song of thy anklets' caprice, 
Revive me, I pray, with the magical nectar 
that dwells in the flower of thy kiss.
She
How shall I yield to the voice of thy pleading, 
how shall I grant thy prayer, 
Or give thee a rose-red silken tassel, 
a scented leaf from my hair? 
Or fling in the flame of thy heart's desire the veils that cover my face, 
Profane the law of my father's creed for a foe 
of my father's race? 
Thy kinsmen have broken our sacred altars and slaughtered our sacred kine, 
The feud of old faiths and the blood of old battles sever thy people and mine.
He
What are the sins of my race, Beloved, 
what are my people to thee? 
And what are thy shrines, and kine and kindred, 
what are thy gods to me? 
Love recks not of feuds and bitter follies, 
of stranger, comrade or kin, 
Alike in his ear sound the temple bells 
and the cry of the muezzin. 
For Love shall cancel the ancient wrong 
and conquer the ancient rage, 
Redeem with his tears the memoried sorrow 
that sullied a bygone age.


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