चुनौती
जब भी मिली ,
मेरी अस्मिता को मित्र ,
खुद को मैंने ,
समेट लिया खुद में ,
खुदी को बुत बनाया,
गुफ्तगू
भी खुदी से की ,
खुदी से की मोहब्बतें ,
और , जो शिकवे थे ,
खुदी को किये बयाँ।
खुदी में जब डूबा ,
तो उसी को पाया !
किस ने कहा ?
अस्तित्वहीन हूँ मैं ,
वही तो है भीतर मेरे ,
जिस के वज़ूद से रोशन है ,
सारी क़ायनात !!
-vss
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