Wednesday, 18 February 2015

एक नज़्म। मेरी मोहब्बत आज़माने दो ! / विजय शंकर सिंह



अभी कुछ दिन मुझे ,
मेरी मुहब्बत आज़माने दो,
मुझे खामोश रहने दो !

सूना है , इश्क़ सच्चा हो तो ,
खामोशी लहू बन कर ,
रगों में नाच उठती है।

ज़रा उस की रगों में ,
खामोशी को झूम जाने दो,
अभी कुछ दिन मुझे ,
मेरी मोहब्बत आज़माने दो !

उसे मैं क्यों बताऊँ ,
मैंने उसको कितना चाहा है !
बताया,  झूठ जाता है ,
कि सच्ची बात की खुशबू तो ,
खुद महसूस होती है !!

मेरी बातें ,
मेरी सोचें ,
उसे खुद जान जाने दो ,
अभी कुछ दिन मुझे ,
मेरी मोहब्बत आज़माने दो !!
 -vss

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