आप सब को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं !!
आज गणतंत्र दिवस है।
एक दीर्घ संघर्ष और बलिदान की महागाथा है हमारा स्वाधीनता संग्राम। दुनिया की सबसे बड़ी उपनिवेशवादी ताक़त से लोहा
लेना और फिर उनके चंगुल से आज़ाद होना हमारी जिजीविषा और संघर्ष की भावना को
प्रदर्शित करता है। आज़ादी के बाद 26 जनवरी 1950 को
देश का संविधान लागू हुआ। बाबा साहेब भीम
राव आंबेडकर की अध्यक्षता में जिस संविधान की रूमरेखा और रचना की गयी थी उसे
संवधान सभा से अंगीकार किया।
लेकिन , जो उम्मीदें , हमारे महान नेताओं ने
अपने संघर्ष के दिनों में देखी थीं उनमें से अभी भी बहुत अधूरी हैं। स्वप्न हमेशा किसी न किसी काल्पनिक लोक में ले
जाता है। एक अद्भुत काल्पनिक
आदर्शवाद। जिसे धरातल पर लाना शायद असम्भव
हो। लेकिन सपने हमें ज़रूर देखने
चाहिए। यह हमें जीवंत रखता है। 64 सालों का गणतंत्र किसी
देश के काल खंड में अधिक नहीं होता है तो कम भी नहीं होता है। अगर भौतिक प्रगति की बात करें तो निश्चित ही
देश में उन्नति हुयी है। जीवन स्तर में
सुधार आया है। पर अभी भी उम्मीदों की और
सफ़र जारी है।
आज इस अवसर पर मैं आप के साथ रघुवीर सहाय की एक कविता
''राष्ट्रगीत ' शेयर कर रहा हूँ। रघुवीर सहाय
हिंदी के एक प्रसिद्द कवि , आलोचक और प्रखर पत्रकार भी रहें
हैं। रघुवीर सहाय का जन्म लखनऊ में हुआ। वहीं से इन्होंने एम.ए. किया। 'नवभारत टाइम्स के सहायक संपादक तथा 'दिनमान’ साप्ताहिक के संपादक रहे। पश्चात् स्वतंत्र लेखन में रत रहे। इन्होंने
प्रचुर गद्य और पद्य लिखे हैं। ये 'दूसरा सप्तक के कवियों
में हैं। मुख्य काव्य-संग्रह हैं : 'आत्महत्या के विरुध्द,
'हंसो हंसो जल्दी हंसो, 'सीढियों पर धूप में,
'लोग भूल गए हैं, 'कुछ पते कुछ चिट्ठियां आदि।
ये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं।
राष्ट्रगीत ,
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है.
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है.
पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा,
उनके
तमगे कौन लगाता है.
कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है.
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है.
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है.
पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा,
उनके
तमगे कौन लगाता है.
कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है.
(रघुवीर सहाय)
-vss
The poem is marvellous.
ReplyDeletewonderfully written,timely posted, poem.
ReplyDeleteshridharpathak