एक कविता ....
कुछ टुकड़े ख्वाब.....
रात सिरहाने मेरे ,
कुछ टुकड़े ख्वाब रख गया था कोई ,
तुम कितने अपने लगे थे ,
ख्वाब में !
रात कितनी देर तक
,
बाते करते रहे हम
.
रात कब आयी , और ढल गयी
,
जान भी न पाए .
एक हल्की आभा आसमान में ,
झाँकने लगी
.
हताश अन्धकार छटने लगा
,
भोर के सपनों की मुस्कान का बसेरा ,
मेरे अधरों पर था
!
आत्मविश्वास से भरा हुआ
उम्मीदों के कपोल पर
मैंने अपने अधर रख दिये ,
अब मेरा पथ आलोकित है
!!
-vss
बहुत सुंदर बन पड़ी है.बधाई.
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