Monday, 20 November 2023

कोई राज्यपाल, कितनी अवधि तक, विधानसभा द्वारा पारित किसी बिल को, अपनी सहमति देने के लिए लंबित रख सकते हैं? - सुप्रीम कोर्ट / विजय शंकर सिंह

सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर, को जनवरी 2020 से राज्यपाल की सहमति के लिए प्रस्तुत बिलों को रोक रखने के प्रश्न पर, तमिलनाडु के राज्यपाल के बारे में यह सवाल अदालत में केंद्र सरकार से पूछा है कि, "कोई राज्यपाल, कितनी अवधि तक, विधानसभा द्वारा पारित किसी बिल को, अपनी सहमति देने के लिए लंबित रख सकते हैं?"

सुप्रीम कोर्ट में, सीजेआई, डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने, इस संदर्भ में एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, कि, "राज्यपाल ने 10 नवंबर को तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर रिट याचिका पर नोटिस जारी करने के बाद ही दस विधेयकों पर सहमति "रोकने का फैसला किया।  गौरतलब है कि, राज्यपाल की निष्क्रियता "गंभीर चिंता का विषय" है।"

पीठ की तरफ से सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल से यह सवाल पूछा, "मिस्टर अटॉर्नी, गवर्नर का कहना है कि उन्होंने 13 नवंबर को इन बिलों का निपटारा कर दिया है। हमारी चिंता यह है कि हमारा आदेश 10 नवंबर को पारित किया गया था। ये बिल जनवरी 2020 से लंबित हैं। इसका मतलब है कि, गवर्नर ने कोर्ट की नोटिस और आदेश के बाद निर्णय लिया । राज्यपाल तीन साल तक क्या कर रहे थे? राज्यपाल को, पीड़ित पक्ष द्वारा, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने तक का, इंतजार क्यों करना चाहिए?"

इस सवाल पर एजी ने जवाब दिया कि, "विवाद केवल उन विधेयकों से संबंधित है जो, राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से संबंधित राज्यपाल की शक्तियों को छीनने के प्रयास से संबंधित हैं और चूंकि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, इसलिए, इसपर कुछ पुनर्विचार की आवश्यकता है।"

तब पीठ ने कहा कि, "लंबित बिलों में सबसे पुराना बिल जनवरी 2020 में राज्यपाल को भेजा गया था।" 
अपने आदेश में, पीठ ने उन तारीखों को दर्ज किया है, जिन पर दस बिल राज्यपाल के कार्यालय को भेजे गए थे, जो 2020 से 2023 तक लंबित हैं। एजी ने कहा कि, "वर्तमान राज्यपाल आरएन रवि ने नवंबर 2021 में ही पदभार संभाला है।"

पीठ ने कहा कि, "चिंता किसी विशेष राज्यपाल के आचरण से संबंधित नहीं है, बल्कि सामान्य रूप से राज्यपाल के कार्यालय और उनके क्रियाकलाप से संबंधित है।"
फिर पीठ ने आदेश में कहा, "मुद्दा यह नहीं है कि क्या किसी विशेष राज्यपाल ने देरी की, बल्कि यह है कि क्या सामान्य तौर पर संवैधानिक कार्यों को करने में देरी हुई है।"

यह सूचित किए जाने के बाद कि, विधानसभा ने पिछले सप्ताह आयोजित एक विशेष सत्र में, वापस किए गए, दस विधेयकों को फिर से, पारित कर लिया है, पीठ ने राज्यपाल के अगले फैसले की प्रतीक्षा करने के लिए सुनवाई 1 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

तमिलनाडु राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने पीठ को सूचित किया कि, "अदालत द्वारा याचिका पर नोटिस जारी करने के बाद, राज्यपाल ने कहा कि, उन्होंने कुछ विधेयकों पर "अनुमति रोक दी है।" 
इसके बाद, विधानसभा ने एक विशेष सत्र बुलाया और उन्हीं विधेयकों को फिर से पारित कर दिया गया।

राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता, मुकुल रोहतगी ने कहा कि, "राज्यपाल बिना कोई कारण बताए सहमति को "रोक" नहीं सकते हैं और कानून के अनुसार राज्यपाल को पुनर्विचार के लिए एक नोट, सरकार को देना होगा।  हालाँकि, राज्यपाल ने केवल एक पंक्ति का पत्र जारी किया है कि "मैं सहमति रोकता हूँ।" 

पर सहमति क्यों 'रोकता हूं', इस मुद्दे पर राज्यपाल खामोश हैं। उन्हे अपनी असहमति के विंदु सहित, सरकार को सूचित करना चाहिए था, कि वे किन कारणों से सहमति रोक रहे हैं, जो कि, इस एक पंक्ति में, उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है। सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति इसी संक्षिप्त पत्राचार, मैं सहमति को रोकता हूं, को लेकर है।

० क्या राज्यपाल किसी विधेयक को सदन में भेजे बिना उस पर सहमति रोक सकते हैं?

सुनवाई के दौरान, पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार विधेयकों के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों पर भी चर्चा की। 
राज्यपाल की शक्तियों के बारे में, संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत राज्यपाल के पास कार्रवाई के तीन तरीके बताए गए हैं - 
० वह अनुमति दे सकता है, 
० वह अनुमति रोक सकता है या 
० वह इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए वापस सरकार को भेज सकता है। 

सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूछा, कौन सा प्रावधान कब लागू होता है, जब वह सहमति रोकता है? क्या उसे इसे अनिवार्य रूप से विधायिका को भेजना होगा? परंतु, यह एक सक्षम वाक्यांश "हो सकता है" "shall" का उपयोग करता है। प्रावधान में कहा गया है कि, राज्यपाल एक संदेश के साथ विधायिका को, सहमति के लिए भेजा गया बिल,  दोबारा वापस लौटा सकते हैं। हमारा सवाल यह है कि क्या राज्यपाल यह कह सकते हैं कि, वह सहमति रोक रहे हैं?"

इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि, "राज्यपाल को ''जितनी जल्दी हो सके'' विधेयक वापस करना होगा, अन्यथा यह संवैधानिक प्रावधान का मजाक होगा। क्या योर लॉर्डशॉप, राज्यपाल के लिए 'पॉकेट वीटो' जैसी कोई परिकल्पना (संविधान में) है? क्या उनके पास पॉकेट वीटो है?"  
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने कहा कि, "यदि राज्यपाल को अनिश्चित काल तक बिलों को रोकने की अनुमति दे दी गई, तो शासन पंगु हो जाएगा और संविधान ने राज्यपाल के लिए ऐसी शक्ति की कभी परिकल्पना नहीं की है।"

सीजेआई ने तब आगे पूछा कि, "क्या सदन द्वारा विधेयक दोबारा पारित होने के बाद राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।"  
इस पर अभिषेक मनु सिंघवी और मुकुल रोहतगी ने सर्वसम्मति से जवाब दिया कि, "विधेयक दोबारा पारित होने के बाद राज्यपाल के लिए ऐसा रास्ता खुला नहीं है।"

बिलों के संबंध में, विवरण देते हुए, अपने आदेश में, पीठ ने लिखा है कि, "राज्यपाल के कार्यालय को कुल मिलाकर 181 विधेयक प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 152 विधेयकों पर सहमति दी गई है।  पांच बिल तो सरकार ने खुद ही वापस ले लिये। नौ विधेयकों को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित रखा गया है और दस विधेयकों पर सहमति रोक दी गई है।  अक्टूबर 2023 में प्राप्त पांच बिल विचाराधीन हैं।"

उल्लेखनीय है कि पंजाब राज्य द्वारा दायर इसी तरह की एक याचिका से संबंधित पिछली सुनवाई में, अदालत ने कहा था कि, "राज्य सरकार द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद ही राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए।"
केरल राज्य की एक अन्य याचिका में केरल के राज्यपाल के खिलाफ इसी तरह की राहत की मांग की गई है।  इससे पहले, ऐसी ही स्थिति तेलंगाना राज्य में हुई थी, जहां सरकार द्वारा रिट याचिका दायर करने के बाद ही राज्यपाल ने लंबित विधेयकों पर कार्रवाई की थी।

इन सब याचिकाओं और विवरण से यह स्पष्ट होता है कि, राज्यपाल, उन सरकारों को, जो गैर बीजेपी राज्यो में है के वैधानिक कार्यों में जानबूझकर उनके विधानमंडल द्वारा पारित बिलों को, किसी न किसी कारण से लंबित रखते है। चूंकि संविधान में किसी समय सीमा का उल्लेख नहीं है, इसलिए, राज्यपाल पर ऐसा कोई संवैधानिक दबाव या बाध्यता भी नहीं है कि, वे किसी तयशुदा टाइम फ्रेम में, इन बिलों पर अपनी सहमति या असहमति दे ही दें। इस तरह की प्रवृत्ति से, चुनी हुई सरकार हतोत्साहित भी होती है। सुनवाई अभी जारी है और अगली तारीख दिसंबर 1, है।

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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