Thursday, 16 November 2023

हजारों छोटे निवेशकों को धनसंकट में डाल कर, उन्हे बेसहारा कर गए, सहारा प्रमुख / विजय शंकर सिंह

सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय के निधन के बाद पूंजी बाजार नियामक सेबी के खाते में पड़ी कुल 25,000 करोड़ रुपये से अधिक की अवितरित धनराशि फिर से चर्चा के केंद्र में आ गई है। ज्ञातव्य है कि, सुब्रत रॉय का लंबी बीमारी से जूझने के बाद 75 साल की उम्र में मंगलवार रात मुंबई में निधन हो गया है।

उन्हें अपने समूह की कंपनियों के संबंध में कई विनियामक और कानूनी लड़ाइयों का सामना करना पड़ा, जिन पर पोंजी योजनाओं के साथ नियमों को दरकिनार करने का आरोप लगाया गया था, हालांकि, उनके समूह ने हमेशा इन आरोपों से इनकार किया था। पर वे इन आरोपों से मुक्त कभी नहीं हो पाए थे। 

द इकोनॉमिक टाइम्स के एक लेख के अनुसार, साल 2011 में, पूंजी बाजार नियामक सेबी SEBI ने सहारा समूह की दो कंपनियों - सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एसआईआरईएल) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) को वैकल्पिक रूप से ज्ञात कुछ बांडों (पूर्णतः परिवर्तनीय बांड,ओएफसीडी)
के माध्यम से लगभग 3 करोड़ निवेशकों से जुटाए गए धन को वापस करने का आदेश दिया था।  

यह आदेश, नियामक, सेबी के फैसले के बाद आया कि, दोनों कंपनियों ने उसके नियमों और विनियमों का उल्लंघन करके धन जुटाया था। इस आदेश की अपील और क्रॉस-अपील की लंबी प्रक्रिया के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त, 2012 को सेबी के निर्देशों को, बरकरार रखा, जिसमें दोनों कंपनियों को निवेशकों से 15 प्रतिशत ब्याज के साथ एकत्र धन वापस करने के लिए कहा गया था।

अंततः सहारा समूह को निवेशकों को,  आगे रिफंड करने के लिए, सेबी के पास लगभग, ₹24,000 करोड़, जमा करने के लिए कहा गया। हालांकि समूह, बार बार, यही कहता रहा है कि, उसने पहले ही, 95 प्रतिशत से अधिक निवेशकों को सीधे वापस कर दिया है। लेकिन इस बात का कोई प्रमाण, सहारा समूह, आज तक नहीं दे सका।

SEBI की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने, सहारा समूह की दो कंपनियों के निवेशकों को 11 वर्षों में 138.07 करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए।  इस बीच, पुनर्भुगतान के लिए विशेष रूप से खोले गए बैंक खातों में जमा राशि बढ़कर 25,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। यानी छोटे निवेशकों को कुल ₹25,000 करोड़ अभी भी लौटने हैं। 

सहारा की दो कंपनियों के अधिकांश बांडधारकों के दावों के अभाव में, सेबी द्वारा रिफंड की गई कुल राशि पिछले वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान लगभग 7 लाख रुपये बढ़ गई, जबकि सेबी-सहारा रिफंड खातों में शेष राशि वर्ष के दौरान ₹1,087 करोड़ हो गई।  

इकोनॉमिक टाइम्स की एक अन्य खबर के अनुसार, सेबी की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सेबी को 31 मार्च, 2023 तक 53,687 खातों से जुड़े 19,650 आवेदन प्राप्त हुए। इनमें से, "48,326 खातों से जुड़े 17,526 आवेदनों के लिए 138.07 करोड़ रुपये की कुल राशि के लिए रिफंड किया गया है, जिसमें 67.98 करोड़ रुपये की ब्याज राशि भी शामिल है।"  

शेष आवेदन दो सहारा समूह फर्मों द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा में उनके रिकॉर्ड का पता नहीं लगाने के कारण बंद कर दिए गए थे। अपने पिछले अपडेट में, सेबी ने 31 मार्च, 2022 तक 17,526 आवेदनों से संबंधित कुल राशि ₹138 करोड़ बताई थी।

इसके अलावा, सेबी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और नियामक द्वारा पारित कुर्की आदेशों के तहत, 31 मार्च, 2023 तक कुल 15,646.68 करोड़ रुपये की राशि, सहारा समूह से वसूल की गई है।

सुप्रीम कोर्ट के 31 अगस्त, 2012 के फैसले के अनुसार, पात्र बांडधारकों को देय रिफंड के बाद, अर्जित ब्याज के साथ यह राशि राष्ट्रीयकृत बैंकों में जमा की गई थी। सेबी ने कहा, 31 मार्च, 2023 तक राष्ट्रीयकृत बैंकों में जमा कुल राशि लगभग ₹25,163 करोड़ है। 31 मार्च, 2022, 31 मार्च, 2021 और 31 मार्च, 2020 तक यह राशि क्रमशः 24,076 करोड़ रुपये, 23,191 करोड़ रुपये और 21,770.70 करोड़ रुपये थी।

इस बीच, केंद्र ने अगस्त में सहारा समूह की चार सहकारी समितियों में फंसे जमाकर्ताओं के 5,000 करोड़ रुपये वापस करने की प्रक्रिया शुरू की। सहकारिता मंत्री अमित शाह ने निवेशकों को पैसा लौटाने की सुविधा के लिए जुलाई में 'सीआरसीएस-सहारा रिफंड पोर्टल' लॉन्च किया था.  पोर्टल पर लगभग 18 लाख जमाकर्ताओं का पंजीकरण हो चुका है। 

मार्च में सरकार ने घोषणा की थी कि पोर्टल पर रजिस्टर्ड 10 करोड़ निवेशकों को पैसा लौटाया जाएगा। मार्च में सरकार ने घोषणा की थी कि चार सहकारी समितियों के 10 करोड़ निवेशकों को 9 महीने के भीतर पैसा लौटाया जाएगा.

यह घोषणा सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद हुई, जिसमें सहारा-सेबी रिफंड खाते से 5,000 करोड़ रुपये सेंट्रल रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटीज (सीआरसीएस) को ट्रांसफर करने का निर्देश दिया गया था।

सहारा के अधिकतर निवेशक छोटी पूंजी के वे लोग हैं जो एक बड़े लाभ की लालच में आकर अपनी मेहनत की कमाई का एक एक पैसा बटोर कर महीने दर महीने, इस उम्मीद में जमा करते रहे कि, वक्त जरूरत, उन्हे एक अच्छी खासी रकम, समय पर मिल जायेगी। पर ऐसा नहीं हुआ। चाहे शेयर बाजार हो, या नॉन बैंकिंग बचत कंपनिया, या चिट फंड, अक्सर लोगों की गाढ़ी कमाई का धन लेकर ऐसे ही डूब जाते है । 

अमीर पूंजीपति तो, राजनीतिक दलों को चंदा आदि देकर और उनसे अपने संपर्कों का लाभ लेकर, अपना कर्ज राइट ऑफ की आड़ में माफ करा लेते हैं, या देश छोड़ कर भाग जाते हैं, पर गरीब और छोटी पूंजी के मिडिल क्लास निवेशक, ठगे जाते हैं। आगे सेबी या अदालत क्या करती है, यह तो समय बताएगा।

विजय शंकर सिंह 
Vijay Shanker Singh 

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