Sunday, 26 July 2020

कानपुर का संजीत यादव हत्याकांड / विजय शंकर सिंह

कानपुर में बिकरु में 8 पुलिसजन की जघन्य हत्या और फिर उस हत्या में शामिल विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ से नगर की बढ़ती अपराध स्थिति पर चर्चा चल ही रही थी कि कल एक और जघन्य हत्याकांड ने नगर को हिला कर रख दिया। यह हत्या जो पहले एक अपहरण के रूप में दर्ज थी, के मुल्ज़िम हत्या में मारे गए व्यक्ति संजीत जो एक लैब टेक्नीशियन था, के दोस्त ही निकले।

संजीत के नजदीकी दोस्त ने ही अपने साथियों के साथ मिलकर संजीत का पहले अपहरण किया था। कानपुर पुलिस के अनुसार,
" दोस्त ने ही अपहण किया और फिर हत्याकर युवक का शव पांडु नदी में फेंक दिया। अपहरण के 4 या 5 दिन बाद ही उसकी हत्याकर शव को फेंक दिया गया था। संजीत की हत्या करने के बाद, दोस्तों की तरफ से ही, फिरौती की मांग की गई थी। वहीं, शव की तलाश के लिए पुलिस की टीमें लगाई गई हैं। बर्रा अपहरण मामले में पकड़े गए अपहरणकर्ताओं ने पूरी घटना की जानकारी दी है। "

कुछ दिनों पहले, संजीत के अपहरण की सूचना पुलिस को मिली थी और अब जाकर उसके हत्या की खबर मिल रही है। यह सूचना, कल देर रात परिजनों को पुलिस द्वारा दी गयी। संजीत का अपहरण और फिर उसकी हत्या और हत्या के बाद फिरौती मांगने का काम भी उसके करीबी दोस्तों ने किया है। यह सब पहले साथ साथ काम कर चुके हैं। औऱ जो खबरे अखबार में छप रही हैं, उनके अनुसार, इन सबमे कोई विवाद भी नहीं था। दोस्त ने अपने साथियों के साथ मिलकर पहले अपहरण किया और अपहरण के 4 दिन बाद ही उसकी हत्याकर शव को पांडु नदी में फेंक दिया। फिलहाल अपहरण कर्ता पुलिस की गिरफ्त में है।

घटनाक्रम इस प्रकार है,
● 22 जून की रात हॉस्पिटल से घर आने के दौरान संजीत का अपहरण हुआ।
● 23 जून को परिजनों ने जनता नगर चौकी में उसकी गायब हो जाने की लिखित सूचना दी।
● 26 जून को एसएसपी के आदेश पर, संदिग्ध आरोपी, राहुल यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई।
● 29 जून को अपहरणकर्ता ने संजीत के परिजनों को 30 लाख की फिरौती के लिए फोन किया।
● 5 जुलाई को परिजनों और जनता के कुछ लोगो ने शास्त्री चौक पर जाम लगाकर पुलिस पर अपहरणकर्ताओं के विरुद्ध, कार्रवाई न करने का आरोप लगाया।
● 12 जुलाई को एसपी साउथ कार्यालय में इस घटना के बारे में दुबारा संजीत के घर वालों ने पुनः प्रार्थना पत्र दिया। .
● 13 जुलाई को परिजनों ने फिरौती के 30 लाख रुपये से भरा बैग, अपहरणकर्ताओं की मांग के अनुसार, गुजैनी पुल से नीचे फेंक दिया। लेकिन फिरौती की धनराशि मिलने के बाद भी, संजीत नहीं छोड़ा गया।
● 14 जुलाई को परिजनों ने एसएसपी और आईजी रेंज से शिकायत की, जिसके बाद संजीत को 4 दिन में बरामद करने का भरोसा दिया गया।
● 16 जुलाई को थाना बर्रा इंस्पेक्टर रंजीत राय को इस मामले में लापरवाही पूर्ण कार्यवाही करने के कारण, निलंबित कर दिया गया और उनके स्थान पर, सर्विलांस सेल प्रभारी हरमीत सिंह को भेजा गया।

अब इस मामले में, जिसे स्थानीय अखबार, बर्रा अपहरण कांड कह कर लिख रहे हैं, में पांच अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने प्रेस इस पूरी घटना का सूत्रधार ज्ञानेंद्र यादव था को बताया है। यह सभी पांचों अभियुक्त लैब टैक्नीशियन संजीत के दोस्त थे। इन्होंने 27 जून की सुबह उसकी हत्या कर दी थी और 29 जून को फिरौती की मांग की थी। यानी जब फिरौती की रकम के मांगने और देने का क्रम चल रहा था, तब तक संजीत की हत्या हो चुकी थी और इसका किसी को पता भी नहीं था।

अब अपहरणकर्ताओं ने, फिरौती के पैसों को लेकर यह कहा है कि, उन्होंने फिरौती के 30 लाख रुपये की धनराशि का बैग उठाया ही नहीं था। अपहरणकर्ताओं के अनुसार, वे पुलिस के डर से अपने अड्डे पर चले गए थे। हमने बैग उठाया ही नहीं। अब यह एक नया सवाल उठता है कि, अगर किडनैपर फिरौती वाला बैग को लेकर नहीं गए, तो फिर वो बैग कहां है? अभी पुलिस इस मामले पर भी जांच कर रही है। अपहरणकर्ताओं ने यह ज़रूर स्वीकार किया कि उन्होंने पहले संजीत को शराब पिलाई। शराब में दवा मिला दी थी, जिससे वह बेहोश हो गया। फिर उन्होंने उसे रतन लाल नगर नामक एक मुहल्ले में एक कमरे में ले जाकर बंद कर दिया था। उन्होंने बताया कि संजीत बराबर कहता था कि उसके पास बहुत पैसे हैं।

कानपुर का बिकरु कांड, लखनऊ सचिवालय के सामने महिला द्वारा आत्मदाह, ग़ाज़ियाबाद में पत्रकार उमेश जोशी की जघन्य हत्या पर उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना हो ही रही थी तो अब संजीत यादव हत्याकांड के मामले ने विपक्ष तरकश में एक और बड़ा मुद्दा डाल दिया। विपक्ष ने," यूपी में नया गुंडाराज आया है। कानून व्यवस्था दम तोड़ रही है।' 'घर हो, सड़क हो या ऑफिस हो, कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करता' आदि आदि आरोप सरकार पर लगा रहे हैं। विपक्ष का यह आरोप है कि,
" पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या के बाद अब कानपुर में अपहृत संजीत यादव की हत्या कर दी गई। पुलिस ने किडनैपर्स को पैसे भी दिलवाए और उनकी हत्या भी हो गयी। "
राजनीतिक दृष्टिकोण से, आक्षेप और आरोप तो लगते ही रहते हैं और हर सरकार के कार्यकाल में होता रहता है। यह कोई नयी बात नहीं है।

लेकिन इस घटना में पुलिस पर संजीत यादव के परिजनों ने भी पुलिस पर आरोप लगाए हैं जिसे अधिक गम्भीरता से लेना चाहिए। परिजनों का आरोप है कि,
" पुलिस ने किसी तरह की मदद नहीं की। हमने अपना घर और जेवरात बेचकर और बेटी की शादी के लिए जमा की गई धनराशि को इकट्ठा कर 30 लाख रुपये जुटाए थे। 13 जुलाई को पुलिस के साथ अपहरणकर्ताओ को 30 लाख रुपये देने के लिए गए थे। अपहरणकर्ता पुलिस के सामने से 30 लाख रुपये लेकर चले गए थे। 30 लाख रुपये देने के बाद भी बेटा नहीं मिला। "
परिजनों के अनुसार,
" पुलिस ने कहा कि, फिरौती के लिये पैसे की व्यवस्था कर लो, और इसी समय जब फिरौती दी जाएगी तो युवक को छुड़ा लेंगे। घरवालों ने गहने और घर बेच कर, तीस लाख रुपये का इंतज़ाम किया। अब यह इल्ज़ाम पूरी तरह से पुलिस पर संजीत के घर वाले लगा रहे हैं कि, पुलिस ने अपहर्ताओं को फिरौती दिलाई और अपहरणकर्ता फिरौती लेकर भाग गए। परिजन पुलिस का चक्कर लगाते रहे और क़रीब महीने भर आज जाकर, संजीत के मरने की पुष्टि हुयी।

इसी आरोप पर एसएसपी ने, बर्रा इंस्पेक्टर रणजीतरॉय को निलंबित कर दिया है। निश्चित ही इन आरोपों की जांच की जा रही होगी। यह आरोप बेहद गम्भीर है। अगर यह फिरौती पुलिस के ही निर्देश पर दी गई है तो इससे यह साफ जाहिर है या तो पुलिस को घटना और अपहरणकर्ताओं के बारे में कुछ पता ही नहीं था और वह अंधेरे में तीर मार रही थी या पुलिस का कोई न कोई नज़दीकी इस घटना में सम्मिलित है जो पुलिस की जांच को भटका रहा था। जब इस पूरे घटनाक्रम की जांच हो तो कुछ पता चले।

उतर प्रदेश ने अपराध की घटनाएं बढ़ी हैं और यह घटनाएं आम जन, पत्रकारो और अन्य लोगो के उत्पीड़न की भी है। कुछ घटनाएं, पुलिस के कुछ उद्दंड कर्मियों द्वारा जनता के प्रति अभद्र और हिंसक व्यवहार से भी जुड़ी है। हालांकि पुलिस की जनशक्ति और कार्य की विविधता को देखते हुए अपराध के अन्वेषण और रोकथाम का काम कभी कभी नेपथ्य में चला जाता है। पर जनता तो सुख चैन से निरापद जीवन जीना चाहती है। उसकी यह अपेक्षा गलत भी नहीं है। सरकार और पुलिस के उच्चाधिकारियों का यह दायित्व है कि वह कैसे जनता में पुलिस की साख बढ़ाएं और समाज मे अपराध कम से कम हो, और जो हो भी तो उनका अन्वेषण हो और अपराधी सज़ा पाएं।

कानपुर की यह घटना, पुलिस के लिये चुनौती तो है ही और इसमे कितनी गलतिया पुलिस से, कहां कहां और, कब कब हुयी हैं, उनकी जांच हो रही है और निश्चित रूप से जो दोषी पाएं जाएंगे, दण्डित होंगे। लेकिन, पहले अपहरण और फिर हत्या के अपराध की यह घटना, जिसमे मुल्ज़िम, मृतक के गहरे दोस्त शामिल हैं, दरकते मानवीय रिश्तों के खोखलेपन पर भी सवाल उठाती है। हत्या जब बेहद करीबी दोस्तों द्वारा की जाती है, तो, अमूमन ऐसे अपराधों में शामिल अभियुक्तों पर, शुरू में, न तो पुलिस को शक होता है और न ही परिजनों को।

( विजय शंकर सिंह )

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