Thursday, 9 July 2020

आत्मसमर्पण या गिरफ्तारी, यह रहस्य महाकाल ही जानें / विजय शंकर सिंह


सुबह जब खबर मिली कि उज्जैन के महाकाल मंदिर में  कानपुर विष्णु कांड का आठ पुलिस अफसरों का हत्यारा विकास दुबे पकड़ा गया तो तत्काल दो बातें दिमाग मे कौंधी। अभी तक आत्मसमर्पण के लिये मुल्जिम किसी न किसी अदालत का परिसर चुनते थे पर इसने देश का एक प्रसिद्ध शिव मंदिर और वह भी सावन के महीने में जब कि शिव मंदिरों में वैसे भी भीड़ भाड़ रहती है क्यों चुना औऱ दूसरे विकास के फरार होने की जो खबरें मिल रही थीं वह नेपाल, बिहार, दिल्ली हरियाणा के शहरों तक तो मिल रही थी पर मध्यप्रदेश के उज्जैन या मध्यप्रदेश के किसी और शहर की ओर, विकास दुबे के मूवमेंट का कोई सुराग नहीं मिला है। सारी सतर्कता दिल्ली की ओर केंद्रित रही।

दो दिन पहले फरीदाबाद के एक होटल में उसके उपस्थिति की सूचना मिली, तो यही शक गहराया कि वह दिल्ली में ही किसी अदालत में सरेंडर होने को इच्छुक है। एक खबर यह भी मिली कि, नोयडा के फ़िल्म सिटी में वह किसी मीडिया हाउस के सामने आत्मसमर्पण कर सकता है। पुलिस को जैसी जैसी सूचनाएं मिलती रही पुलिस उसी तरह के इंतज़ामात करती रही। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, विकास दुबे ने कानपुर से दिल्ली फिर, वहां से फरीदाबाद, फिर रोहिणी फिर फरीदाबाद  फिर वहां से दिल्ली और फिर वहां से अंत मे महाकाल की शरण मे उज्जैन तक की सारी यात्राएं बसों से की जिससे कहीं संदेह न हो सके। 

पर असल खेल महाकाल के मंदिर में खेला गया। वह एक सामान्य दर्शनार्थी की तरह,मंदिर जाता है, औऱ अपनी पहचान घोषित कर के जोर से खहता है कि, मैं हूँ विकास दुबे कानपुर वाला। एक सुरक्षा गार्ड उसे पकड़ लेता है और फिर तो पुलिस आती है और उसे अपनी हिरासत में लेती है। थोड़ी देर बाद यूपी पुलिस भी यह पुष्टि कर देती है कि महाकाल नदिर में पकड़ा जाने वाला व्यक्ति कुख्यात और वांछित अभियुक्त बिकास दुबे है। 

महाकाल का मंदिर शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में आता है और वहां की भस्म आरती बहुत प्रसिद्ध है। मान्यता है कि, महाकाल, अकाल मृत्यु के भय से मुक्त करते हैं। विकास की गिरफ्तारी के बाद ही मीडिया में उसकी मां का एक इंटरव्यू चलने लगा जिंसमे उसकी मां ने यह कहा कि हर साल विकास सावन के महीने में महाकाल का दर्शन करने जाता रहता है। यानी सावन में महाकाल का दर्शन करने जाने की उसकी एक नियमित आदत रही है। जब कि यह बात कितनी सही है यह तो जब उससे पूरी पूछताछ हो जाय तभी बताया जा सकता है। 

उज्जैन से कुछ और भी खबरें मिल रही हैं जो इस रहस्य को और भी गहरा कर रही हैं। जैसे, कल यानी 8 जुलाई की शाम को डीएम आशीष सिंह और एसएसपी मनोज कुमार, उज्जैन महाकाल के मंदिर में गए थे और उन्होंने वहां दर्शन नहीं किया, बल्कि मंदिर प्रबंधन से कुछ बातचीत की। हालांकि सावन के महीने में वहां भीड़ भाड़ होने की संभावना होती है और इस संदर्भ में जिला मैजिस्ट्रेट और एसएसपी का मंदिर में जाना और वहां के प्रबंधन से मुलाकात करना, असामान्य बात नहीं है,  पर उसी के अगली सुबह यानी 9 जुलाई को विकास का मंदिर से गिरफ्तार हो जाना इस सामान्य दौरे को असामान्य ज़रूर बना देता है। 

विकास दुबे को उज्जैन से गिरफ्तार करके कानपुर लाया जा रहा है, और अब यह बाद में पता चलेगा कि, उसे पुलिस कस्टडी के रिमांड पर लिया जाता है या नही। लेकिन यह अपराध इतना गम्भीर और उलझा हुआ है कि इसकी कई अनसुलझी गुत्थियों को खोलने के लिये, इसे पुलिस कस्टडी रिमांड पर लेकर गहनता से पूछताछ करनी चाहिए। इस रहस्य का पर्दाफाश होना भी बहुत ज़रूरी है कि, आखिर हत्या के बाद वह कहां कहां रहा, किससे किससे मिला औऱ कहाँ कहाँ से होता हुआ वाह उज्जैन पहुंचा और वहां वह गिरफ्तार हुआ। अभी एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार, उसे एमपी पुलिस ने यूपी पुलिस को बिना किसी ट्रांजिट रिमांड के ही सौंप दिया है। आज 9 जुलाई के सुबह की गिरफ्तारी है तो पुलिस उसे 24 घँटे तक अपनी कस्टडी में रख सकती है और तब मैजिस्ट्रेट के यहां पेश करेगी। लेकिन सामान्यतः दूसरे प्रदेश में गिरफ्तार किए गए मुल्जिम को ट्रांजिट रिमांड पर ही लाया जाता है। 

अब विकास दुबे के खिलाफ पुलिस के कार्यवाही की असली और प्रोफेशनल परीक्षा होगी कि वह किस प्रकार और कितनी कुशलता से विकास दुबे को 8 पुलिसकर्मियों की जघन्य हत्या के मामले में अदालत से सज़ा दिला पाती है। अब पुलिस को चाहिए कि होशियार और विवेचना में माहिर अनुभवी अधिकारियों की एक टीम का गठन करे और विवेचना के सूत्र दर सूत्र मिलाते हुए कुख्यात हत्यारे के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र दायर करे। पूछताछ के लिये भी अलग से टीम रहनी चाहिए जो मुक़दमे के हर बिंदु पर उससे पूछताछ करे और फिर सुबूतों को जुटाए। 

सरकार को हाईकोर्ट से अनुरोध कर के एक फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन इस महत्वपूर्ण मुक़दमे की सुनवाई के लिये करना चाहिए। सत्र न्यायालय से अनुरोध किया जाय कि, दिन प्रतिदिन के आधार पर इस मुकदमे का त्वरित ट्रायल हो । साथ ही, अभियोजन की तरफ से भी कुशल एडवोकेट नियुक्त किये जाय। रूटीन टाइप की पैरवी से अभियुक्त को सज़ा दिलाना मुश्किल होगा। अभियुक्त बेहद शातिर और इसके संपर्क सूत्र बहुत गहरे हैं। महाकाल या किसी भी बड़े देवालय में इस प्रकार का आत्मसमर्पण या गिरफ्तारी की घटना शायद पहले नही हुई है। इसमे कोई संदेह नहीं कि भविष्य की कानूनी लड़ाई के लिये यह मुल्जिम अपनी तैयारी कर चुका है। 

हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि थाना शिवली कानपुर देहात के 2001 में हुए संतोष शुक्ल हत्याकांड में उसके खिलाफ गवाही नही मिली थी और वह बरी हो गया था। इस बार वह पैटर्न न हो यह पुलिस को देखना होगा। अब सब कुछ एक बेहद सुगठित विवेचना और सक्रिय पैरवी पर ही निर्भर करता है। यह एक सामान्य मामला नहीं है बल्कि यह पुलिस को एक सीधी चुनौती है और इसका जवाब तभी संभव है कि या तो उसकी गिरफ्तारी के दौरान कोई इनकाउंटर हो जाय और वह मारा जाय, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सका है तो अब उसे कानूनन अदालत में सुबूत पेश करके कठोर से कठोर सजा दिलवाई जाय। 

( विजय शंकर सिंह )

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