यूपी के कानपुर में, बिकरु गांव में, 3 जुलाई को हुयी 8 पुलिस अफसरों की शहादत और विकास दुबे एनकाउंटर मामले में यूपी पुलिस के सब इंस्पेक्टर कृष्ण कुमार शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर के अदालत से यह अनुरोध किया है कि, उसे न तो यूपी पुलिस की विवेचना पर यकीन है और न ही एसआईटी जांच पर भरोसा है अतः इस पूरे मामले की तफ्तीश सीबीआई से अथवा सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित एसआईटी से जांच कराने के आदेश दिए जांय।
कृष्ण कुमार शर्मा उन पांच पुलिस अफसरों में से एक हैं जिन पर कर्तव्य पालन में अवहेलना और विकास दुबे की मुखबिरी का आरोप है। केके शर्मा फिलहाल निलंबित है और गिरफ्तार भी है। केके शर्मा के अनुसार उन्हें 2/3 जुलाई की रात के किसी ऐसे रेड की जानकारी नहीं थी। उसके अनुसार, उसे एसओ चौबेपुर ने यह निर्देश दिया था कि, रात एक रेड कहीं पड़ सकती है अतः वे जीटी रोड पर चेकिंग करें। शर्मा के अनुसार वे रेड में नहीं ले जाये गए थे।
केके शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि,
"The extra judicial killings of the all of the above accused shows plentiful conduct and modus operandi of the all the investigative agencies responsible for investigation of the present FIR. It is clearly evident that the institutions tasked with the protection of law and order in the state have taken law into their own hands and have
been killing the accused persons as soon as arresting such persons," Sharma has submitted while seeking protection of his right to life. "
केके शर्मा ने अपने लिये सुरक्षा प्रोटेक्शन की भी मांग की है और याचिका में यह कहा है,
" उपरोक्त सभी अभियुक्तों की एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग ( एनकाउंटर ) उक्त एफआईआर की विवेचना के तऱीके को उजागर करती है। यह साफ साफ दिख रहा है कि, जिन संस्थाओं पर विधि को लागू करने का दायित्व है, उन्होंने कानून को अपने हांथ में ले लिया है और वे जिन्हें गिरफ्तार करते जा रहे है उन्हें जान से मारते भी जा रहे हैं। "
इस मामले में यह दूसरी याचिका है और यह एक पीआईएल नहीं है ।
इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने विकास दुबे से जुड़े मामलों में एक एसआईटी गठित कर के जांच कराने का निर्णय किया है। यह एसआईटी इन मुद्दों पर जांच करेगी
● घटना के पीछे के कारणों जैसे- विकास दुबे पर जो भी मामले चल रहे हैं, उनमें अब तक क्या कार्रवाई हुई।
● विकास के साथियों को सजा दिनाने के लिए जरूरी कार्रवाई की गई या नहीं।
● इतने बड़े अपराधी की जमानत रद्द कराने के लिए क्या कार्रवाई की गई।
● विकास के खिलाफ कितनी शिकायतें आईं। क्या चौबेपुर थाना अध्यक्ष और जिले के अन्य अधिकारियों ने उनकी जांच की। जांच में सामने आए फैक्ट्स के आधार पर क्या कार्रवाई की गई।
● विकास और उसके साथियों पर गैंग्स्टर एक्ट, गुंडा एक्ट, एनएसए के तहत क्या कार्रवाई की गई। कार्रवाई करने में की गई लापरवाही की भी जांच की जाएगी।
● विकास और उसके साथियों के पिछले एक साल के कॉल डीटेल रिपोर्ट (सीडीआर) की जांच करना। उसके संपर्क में आने वाले पुलिसकर्मियों की मिलीभगत के सबूत मिलने पर उन पर कड़ी कार्रवाई की अनुशंसा करना।
● घटना के दिन पुलिस को आरोपियों के पास हथियारों और फायर पावर की जानकारी कैसे नहीं मिली। इसमें हुई लापरवाही की जांच करना। थाने को भी इसकी जानकारी नहीं थी, इसकी भी जांच करना।
● अपराधी होने के बावजूद भी विकास और उसके साथियों को हथियारों के लाइसेंस किसने और कैसे दिए। लगातार अपराध करने के बाद भी उसके पास लाइसेंस कैसे बना रहा।
लेकिन, इन जांच के विन्दुओं में विकास दुबे के पोलिटिकल कनेक्शन का कोई विंदु नहीं दिख रहा है। इस एसआईटी में दो पुलिस अफसर भी सम्मिलित हैं। एक हरिराम शर्मा जो एडीजी हैं और जे रविन्द्र गौड़ जो डीआईजी हैं। जे रविंद्र गौड़ के ऊपर एक फ़र्ज़ी मुठभेड़ में शामिल होने का आरोप है जिसकी जांच सीबीआई ने की है तो उनके नाम को इस एसआइटी में शामिल करने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
उत्तर प्रदेश के बरेली में 30 जून 2007 को एक एनकाउंटर हुआ था, जिसमें एक व्यापारी मुकुल गुप्ता और पंकज सिंह को बैंक लूटने के दौरान मार गिराया गया था। मुकुल गुप्ता के पिता ने पुलिस पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर करने का आरोप लगाया था और इसकी निष्पक्ष जाँच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 2010 में मामले की जाँच सीबीआई को सौंप दी थी। 2014 में सीबीआई ने कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें उन्होंने जे. रवींद्र गौड़ समेत नौ पुलिस वालों को आरोपी बनाया है । सीबीआई ने जे रविन्द्र गौड़ पर सबूतों से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था।
आठ पुलिस अफसरों की शहादत के बाद, विकास दुबे का एनकाउंटर अब विवादित हो गया है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं लंबित हैं। हो सकता है जल्दी ही सुनवाई भी शुरू हो। यह भी हो सकता है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी इसमे दखल दे। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एनकाउंटर के बारे में समय समय पर दिशा निर्देश जारी किये हैं। सरकार को चाहिए कि एसआइटी में उन्ही अफसरों को सम्मिलित करे जिनके पीछे इस प्रकार का कोई विवाद न हो, अन्यथा साफ सुथरी जांच भी संदेह की नज़र से देखी जाने लगेगी।
( विजय शंकर सिंह )
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