Friday, 13 June 2014

आज एक लघु कथा पढ़ें..


एक राजा था. उसकी दाढी बनाने, मालिश करने के लिए एक नाइ रोज उसके महल में जाता था. नाईयों की एक ख़ास आदत होती है. वह अपना काम करते करते, अभिधा, लक्षणा, व्यंजना में पूरे इलाके की खबर बता जाते हैं. जिसकी चाहते हैं उसकी सिफारिश भी कर जाते हैं, जिसे नापसंद करते हैं उनकी काट भी कर देते हैं. नाई रोज रोज राजा को ख़बरें देता रहता था. एक दिन राजा ने उस से पूछा, कि तुम्हारे गाँव में खाने पीने और दूध दही की क्या स्थिति है. राजा ने तो जैसे समस्याओं का बाँध ही खोल दिया. 
नाई ने कहा, कि खाना पीना तो जैसे तैसे चल ही जा रहा है. पर गाँव भर की गायें बिसुक गयी है. दूध तो पूजा पाठ चरणामृत आदी के लिए भी मयस्सर नहीं है. 
राजा ने तुरंत आदेश दिया उसे एक बढ़िया और नयी ब्याई गाय और गाय के लिए चारा दे दिया जाय. आदेश का पालन हुआ. गाय और चारा दोनों ही शाम तक नाई के घर पहुँच गयी. 
नाई के घर खुशहाली आ गयी. उसका रुतबा पास पड़ोस में बढ़ गया. 
रोज की तरह वह महल में राजा की सेवा में जाता रहता था. एक दिन राजा अचानक पूछ बैठा, अब तो गाँव में सब ठीक है न ? लोग खुश है ? 
नाई ने चहकते हुए कहा, हुज़ूर, पूरा गाँव मस्त है. घर घर दूध दही है. बच्चे बूढ़े सभी दूध , दही ,मट्ठा पाकर प्रसन्न है. आप की अपार कृपा है. 
राजा मुस्कुराया. 

कहानी तो ख़त्म हो गयी. लेकिन आप सब के दिमाग में यह कौंध रहा होगा कि आखिर इस कहानी का इस चित्र के साथ क्या सम्बन्ध है. चित्र पॉवर कट का है, और कहानी आप ने पढी, राजा, नाई, दूध दही की. दर असल मैंने कल नोटिस किया कि दिल्ली में बिजली की किल्लत को लेकर सारे न्यूज़ चैनल सक्रिय है. दिन भर इसी से जुडी ख़बरें दिखाई जा रही है. भाजपा के लोग कह रहे हैं, कि इस किल्लत और संकट के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है, जिस ने कोई दीर्घकालिक योजना नहीं बनायी. कांग्रेस कह रही है, कि यह कटौती और संकट पिछले पंद्रह सालों में नहीं हुआ. अब क्यों हो रहा है ? आ आ पा का तर्क है बिजली कंपनियों से सरकार की मिली भगत है. टाटा ने कहा है कि आंधी और तूफ़ान से तकनीकी फाल्ट हो गए हैं. वही कारण है. हांथी के विविध अंगों को स्पर्श कर के ज्ञान प्राप्त करने जैसा तर्क सबके हैं. कुछ भी कारण हो, बिजली मिलनी चाहिए. 

मैं उत्तर प्रदेश में कानपुर में रहता हूँ. कानपुर प्रदेश का सबसे बड़ा नगर है. पिछले अट्ठाईस साल से इस नगर से मेरा संबंध है. और अट्ठाईस साल से मेरा अनुभव है कि शायद ही कभी चौबीसों घंटे बिजली रही हो. हाँ अगर नगर में वी वी आई पी हों तो बात अलग है. रोजाना चार घंटे की कटौती तो घोषित है, कुछ और घंटे इस में आप अघोषित भी जोड़ सकते हैं. ग्रिड फेल हो तो उसे बोनस समझ लें. लेकिन न्यूज़ चैनल्स को इतना चिंतित और सक्रिय मैंने कभी नहीं देखा, जितना कि वे दिल्ली की बिजली को लेकर दिख रहे हैं. कानपुर ही नहीं, उत्तर प्रदेश में, आगरा, कन्नौज, मैनपुरी, आजमगढ़, रामपुर, और अब वाराणसी को भी शामिल कर के छोड़ दें तो पूरे प्रदेश में ज़बरदस्त बिजली कट रही है. पर इसे कभी इतना ज्वलंत मुद्दा क्यों नहीं बनाया गया ? शायद इस लिए कि दिल्ली में ही भारत है, और भारत में ही दिल्ली है, यह मानसिकता कहीं न कहीं समाचार चैनल्स की है. 

पूरे भारत में बिजली की कमी होगी. हो सकता है, कुछ प्रान्तों में स्थिति बेहतर हो. लेकिन जहां से मैं आता हूँ, वहाँ स्थिति बदतर है. किसी भी सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार के लिए दीर्घकालीन योजनायें नहीं बनायी. उत्तर प्रदेश में तो पिछले तीस सालों में कोई इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास ही नहीं हुआ. कानपुर के उद्योग बिजली की कमी और अन्य ढांचागत सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ गए. लेकिन सिवाय आश्वासनों के कुछ नहीं मिला. जब तक बिजली को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर न ले कर नए और अच्छे पॉवर हाउस नहीं बनाए जायेंगे, बिजली चोरी पर प्रभावी अंकुश नहीं लगाया जाएगा, तब तक बिजली के सम्बन्ध में अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं. 

ऊपर की कहानी की तरह, दिल्ली नाई है. वह खुशहाल हो भी जाए तो पूरा देश नहीं खुशहाल होगा. हाँ उसके बदहाली की चर्चा भी कम होगी. 
-vss.

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