Saturday, 7 December 2013

एक कविता .... मुझे कुछ देर सोना है !




ज़रा  तुम ....
आँखों में जाओ ,
मुझे कुछ देर
सोना है ...
मुझे ख़्वाबों में
खोना है
मुझे खुद को पाना है .

नींदे भी ले गए तुम ,
अब ख़्वाबों से भी ,
कतराते हो .
कहाँ ढूंढूं तुम्हे ,
तुम इतना क्यों ,
सताते हो !

कभी तो जाते हो ,
आसमान में घटा बन कर .
और कभी ,
जीवन मरू सा बना ,
देते हो .

आजमाते हो मुझे तुम क्यों ?
कहीं खुद को भी ,
आजमाते हैं .
कहीं खुद को भी यूँ ,
भरमाते हैं !

बिना तुम्हारे ,
ये सिलसिले कैसे .
ये बादल , ये हवाएं ,
ये सपने ,जो बे रंग हैं ,
तेरे एहसास के बिना ,

ये दुनिया जो लगती है ,
अंधेरी , तेरे बिना .
तुझ से ही तो रोशन है ,
ये सारा जहां ,
मौजूद है हर ज़र्रे में ,
तेरा ही अफ़साना .

ज़रा तुम ,
आँखों में जाओ ,
मुझे कुछ देर सोना है !!

-vss 

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