Tuesday, 27 August 2013

एक कविता ... रात न जाने क्या हुआ .



रात जाने क्या हुआ ,
नींद थी या ख्वाब था ,
तुम थे , या तुम्हारा एहसास था ,
मौसम भींगा भींगा था .
मन में घुमड़ रहे थे  ,
हुजूम खयालों  के .

तुम्हे खोजता फिरा,
उसी हुजूम में ,
आसमान में  तैरते बादलों में ,
छिप छिप कर नमूदार होते चाँद में ,
खुद से लिपटी हुयी एक अनजान,
पर , मादक खुशबू में .

अद्भुत स्वप्न था वह ,
तुम थे भी , और नहीं भी .
तुम्हारा एहसास , तुम्हारी साँसें ,
महसूस करता रहा .

देख तुम्हे पहलू में ,
ख्वाब खुद खुद आने लगे,
स्वप्न हो भंग ,
इसके पहले ही तुम्हारे चेहरे पर ,
अधर अपने रख दिए .

फिर जाने क्या हुआ ,
अचानक , एक आलोक सा  दिखा ,
आँखे मेरी खुल गयी थी ,
मेरे इर्द गिर्द प्रकाश था ,
मेरा मन अब आलोकित था ,
और अंधकार छंट गया था .
-vss

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