रात न जाने क्या हुआ ,
नींद थी या ख्वाब था ,
तुम थे , या तुम्हारा एहसास था ,
मौसम भींगा भींगा था .
मन में घुमड़ रहे थे ,
हुजूम खयालों
के .
तुम्हे
खोजता फिरा,
उसी हुजूम में ,
आसमान में
तैरते बादलों में ,
छिप छिप कर नमूदार होते चाँद में ,
खुद से लिपटी हुयी एक अनजान,
पर , मादक खुशबू में .
अद्भुत
स्वप्न था वह ,
तुम थे भी , और नहीं भी .
तुम्हारा एहसास , तुम्हारी साँसें ,
महसूस करता रहा .
देख तुम्हे पहलू में ,
ख्वाब खुद ब खुद आने लगे,
स्वप्न
हो भंग ,
इसके पहले ही तुम्हारे चेहरे पर ,
अधर अपने रख दिए .
फिर न जाने क्या हुआ ,
अचानक
, एक आलोक सा दिखा ,
आँखे मेरी खुल गयी थी ,
मेरे इर्द गिर्द प्रकाश था ,
मेरा मन अब आलोकित था ,
और अंधकार छंट गया था .
-vss
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