तुम जिसे समझते हो ,
मेरी खामोशी ,
चुप
नहीं
है
, यह
मेरी
..
कहना चाहता हूँ ,
बहुत कुछ मैं .
शब्द
ढूंढता
हूँ
,,
जज्बातों के बादलों
को खंगालता ,
तह
दर
तह
खोजता
.
कभी
आँधियों
में
,
कभी
धारासार
बारिश
में
.
जाने
, कहाँ
कहाँ
,
उड़ता
रहता
हूँ
, पंछी
बन
कर
.
तलाश
में
शब्दों
के
,
भटकता
हूँ
मैं
.
मिलते
नहीं
शब्द
,
जो मिले भी , जांचे नहीं .
मेरे
इश्क
का
दायरा
,
समुंदर
की
तरह
है
.
क्षितिज
तक
विस्तारित
.
कभी
कभी
तह में अग्नि समेटे ,
कुछ कह नहीं पाता हूँ , तो
चुप
हो
जाता
हूँ
.
और
, तुम
समझ
लेते
हो
,
इसे खामोशी मेरी !!
-vss.
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