Sunday, 7 July 2013

खामोशी .-- A Poem...


तुम जिसे समझते हो ,
मेरी खामोशी ,
चुप नहीं है , यह मेरी ..
कहना चाहता हूँ ,
बहुत कुछ मैं .

शब्द ढूंढता हूँ ,,
जज्बातों के बादलों 
को खंगालता
तह दर तह खोजता .
कभी आँधियों में ,
कभी धारासार बारिश में .
जाने , कहाँ कहाँ ,
उड़ता रहता हूँ , पंछी बन कर .
तलाश में शब्दों के ,
भटकता हूँ मैं .

मिलते नहीं शब्द ,
जो मिले भी , जांचे नहीं .
मेरे इश्क का दायरा ,
समुंदर की तरह है .
क्षितिज तक विस्तारित .

कभी कभी 
 तह में अग्नि समेटे ,
कुछ कह नहीं पाता हूँ , तो 
चुप हो जाता हूँ .

और , तुम समझ लेते हो
इसे खामोशी मेरी !!
-vss.

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