Tuesday, 30 July 2013

पानी की बूंदों से ,




पानी की बूंदों से ,

पानी की बूंदों से ,
मैंने अक्सर सीखा है ,
तेज हवा और चपला में भी ,
टप टप गिरना , प्यास बुझाना ,
चुपके से धरती में खोना ,
सूखे तरु को , जीवन देना ..

बारिश जैसे, तुम भी बनो ,
जब ताप बढे, क्रोधित सूरज का
उठे आंधियां, धूल भरी ,
जब बाँझ बने, जीवन धरती का ,
जन जन जब, बेकल हो जाए ,
दूर दूर तक, जल दिखे .
भूमि मरू सी, हो जाए .

तब तुम उठो, घटा बन कर ,
चलें अब्र जल, भर भर कर ,
आसमान का. रंग बदल दो ,
गर्जन , घर्षण ,चपला लेकर ,
उतरो तुम , इस तृषित धरा पर ,
जीवन को संबल दो प्रिये ,
अधरों पर मुस्कान खिले
तृषित ह्रदय की प्यास बुझे !!
-vss


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