प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के वर्तमान निदेशक संजय कुमार मिश्रा को दिए गए कार्यकाल के तीसरे विस्तार को चुनौती देते हुए 1/12/22 को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक नई याचिका दायर की गई है। जया ठाकुर द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि मिश्रा को दिया गया तीसरा सेवा विस्तार, शीर्ष अदालत के आदेशों का उल्लंघन है और "हमारे देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नष्ट कर रहा है।"
सुप्रीम कोर्ट, पहले से ही संजय कुमार मिश्र को, दिए गए एक्सटेंशन की वैधता को चुनौती देने वाली दलीलों के याचिकाएं सुन रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने सितंबर 2021 के फैसले में मिश्रा को और विस्तार देने के खिलाफ फैसला सुनाया था।
सेवा विस्तार का किस्सा, इस प्रकार है। संजय कुमार मिश्र को पहली बार, नवंबर 2018 में दो साल के कार्यकाल के लिए ईडी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। दो साल का कार्यकाल नवंबर 2020 में समाप्त हो गया था। मई 2020 में, वह 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंच गए थे।
हालाँकि, 13 नवंबर, 2020 को केंद्र सरकार ने एक कार्यालय आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि, राष्ट्रपति ने 2018 के आदेश को इस आशय से संशोधित किया था कि 'दो साल' की अवधि को 'तीन साल' की अवधि में बदल दिया गया था। इस मामले को, एक एनजीओ कॉमन कॉज ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन को मंजूरी देते हुए आगे के विस्तार न करने के निर्देश के साथ सेवा विस्तार के खिलाफ अपना फैसला सुनाया था।
पिछले साल, 2021 में, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, केंद्र सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अधिनियम में संशोधन करते हुए एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें खुद को ईडी निदेशक के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने का अधिकार दिया गया था। इस अध्यादेश को, सुप्रीम कोर्ट में, चुनौती दी गई और वे याचिकाएं अभी लंबित हैं और उनकी सुनवाई चल रही है।
इस तरह की और भी याचिकायें हैं, जिनकी सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार ने एक, हलफनामा पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि, (सेवा विस्तार की) याचिकाएं राजनीतिक रूप से प्रेरित हैं, क्योंकि याचिकाकर्ता उन राजनीतिक दलों से संबंधित हैं जिनके नेता वर्तमान में ईडी के दायरे में हैं। इस प्रकार, सरकार ने सेवा विस्तार के आदेश का बचाव किया, यह कहा कि, "सेवा विस्तार इस लिए किया गया है कि, एक प्रमुख जांच और प्रवर्तन (इंफोर्समेंट) एजेंसी द्वारा जांच किए जाने वाले विशेष जांच कार्य एक सतत प्रक्रिया होते है, और संगठन का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति का कार्यकाल दो से पांच साल का होना चाहिए।"
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल द्वारा पिछले महीने याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लेने के बाद से यह मामला लंबित है। इसी बीच, इस साल 17 नवंबर को संजय कुमार मिश्रा को एक और साल का और सेवा विस्तार दिया गया था, जिसे जया ठाकुर ने अपनी इस याचिका के माध्यम से चुनौती दी है। जया की दलील में कहा गया है कि, "केंद्र सरकार इस तरह के कदम के जरिए देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को खत्म कर रही है। भारत संघ इस दलील की शरण नहीं ले सकता है कि महत्वपूर्ण विस्तार लंबित हैं।"
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि पद के लिए सक्षम अधिकारी जब उपलब्ध हैं, जो इस तरह के सेवा विस्तार के का कोई कारण नहीं है।
सेवा विस्तार का प्राविधान विशेषकर तकनीकी मामलों और ऐसे कार्यों में लगे हुए अधिकारियों के लिए किया गया है जहां, विकल्प का अभाव हो, और कार्य की प्रकृति ऐसी हो कि, उसे बीच में छोड़ा नहीं जा सकता हो। पर ईडी प्रमुख का पद न तो विकल्पहीन है और न ही उनके द्वारा संपन्न किए जा रहे कार्यों की प्रकृति ऐसी है कि, संजय मिश्र के उक्त पद पर न रहने के कारण, वह कार्य बाधित हो जाएगा। ईडी प्रमुख भारतीय राजस्व सेवा आईआरएस कैडर से आता है और इस पर आईपीएस अधिकारी भी नियुक्त हो सकते हैं। आईआरएस और आईपीएस, दोनों ही एक नियमित कैडर हैं, एक पैनल द्वारा उन कैडर्स से, कोई भी वरिष्ठ अफसर, ईडी प्रमुख के रूप में चुना जा सकता है। आखिर संजय कुमार मिश्र जी भी तो आईआरएस कैडर से ही तो अपनी योग्यता के आधार पर चुने गए हैं। तो क्या यह मान लिया जाय कि, उनके बाद अब पूरा आईआरएस या आईपीएस कैडर ही बंजर हो गया है !
ईडी के राजनीतिक दुरुपयोग की एक आम शिकायत है और अब तो हालत यह हो गई है कि, जैसे ही ईडी किसी विपक्षी नेता के घर छापे मारने जाती है वैसे ही यह धारणा बनने लग जाती है कि, यह छापा राजनीतिक उद्देश्य से अधिक प्रेरित है न कि किसी आर्थिक उद्देश्य से। इसका कारण है, पिछले आठ सालों में पड़ने वाले छापों में 94% छापे विपक्षी दलों के नेताओं पर पड़े हैं। चुनी हुई सरकार गिराने की नीति के रूप में बीजेपी का ऑपरेशन लोटस, के साथ ईडी की सक्रिय सहभागिता के आरोप अक्सर लगते रहते हैं। ऐसे आरोपों से, न केवल किसी भी जांच एजेंसी की साख प्रभावित होती है बल्कि, इससे आर्थिक अपराधी भी अपने बचाव के लिए राजनीतिक गोलबंदी में शामिल होने लगते हैं।
इस तरह का अप्रत्याशित और जिद भरा सेवा विस्तार, जो ईडी प्रमुख की अपरिहार्यता के नाम पर बार बार दिया जा रहा है, वह उनकी प्रोफेशनल अपरिहार्यता कम, बल्कि उनकी राजनीतिक दलगत निकटता अधिक प्रदर्शित करता है। सरकार का यह कहना कि, जांच प्रक्रिया में, उनके न रहने से बाधा पड़ेगी, यह तर्क गले नहीं उतरता है। या तो ईडी प्रमुख खुद ही किसी ऐसे मिशन पर हों, जिनके न रहने पर उस मिशन को नुकसान पहुंच सकता है, तब तो बात अलग है, अन्यथा उनके पद पर न रहने पर भी ईडी की कार्यप्रणाली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।
ईडी का अपना कोई कैडर नहीं है और वहां नियुक्त सभी वरिष्ठ अधिकारी, अन्य सेवाओं के कैडर से लिए जाते हैं। संजय कुमार मिश्र भी जब ईडी में आए होंगे, अपनी योग्यता के ही आधार पर आए होंगे तो क्या अब आईआरएस कैडर में ईडी निदेशक के पद के लिए कोई अन्य योग्य अफसर ही नहीं बचा है, जो इस महत्वपूर्ण पर विवादित हो रही जांच एजेंसी के प्रमुख का पद संभाल सके? एक बात और, इस तरह के जिद भरे सेवा विस्तार का असर, उसी कैडर के वरिष्ठ अफसरों के मनोबल पर भी पड़ता है।
(विजय शंकर सिंह)
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