गोडसे को हिन्दू ह्रदय सम्राट की उपाधि से विभूषित किया जा रहा है ! उसे पंडित नाथू राम गोडसे कह कर संबोधित किया जा रहा है ! मेरठ में उसका मंदिर बनाने की बात की जा रही है । और यह कहा जा रहा है कि उन्होंने धर्म को उबार लिया। सनातन धर्म जिसे कभी विदेशियों ने हिन्दू धर्म के नाम से संबोधित किया , वह अंग्रेज़ी में हिन्दुइज्म होते होते कुछ सालों से हिंदुत्व में रूपांतरित हो गया। गोडसे इसी हिंदुत्व वाले हिन्दू धर्म का ह्रदय सम्राट घोषित किया गया है ! यह एक प्रकार का वैचारिक स्खलन है।
हिन्दू धर्म के अनादि काल से चले आ रहे कालातीत इतिहास में हिन्दू ह्रदय सम्राट की उपाधि से किसी भी महानुभाव को मूर्धाभिषिक्त नहीं किया गया है। अत्यंत समृद्ध मनीषा की परंपरा में अपना अलग स्थान रखने वाले आदि शंकर को भी यह सम्मान ( ? ) नहीं मिला, जिन्होंने सच में अपनी उर्वर मेधा और अद्भुत पांडित्य से इस महान धर्म को समयानुसार अतीत की जड़ता से निकाल कर पुनः इस वैश्वानर को प्रज्वलित किया था, और गोडसे को छल पूर्वक एक बूढ़े व्यक्ति , जिसने देश को दासता के विरुद्ध जगाने का कार्य किया था, की हत्या करने पर आज दिया जा रहा है। यह विचारों का एक प्रकार का खोखलापन ही है।
गांधी की हत्या के बाद जब आर एस एस पर सरदार पटेल ने प्रतिबन्ध लगाया तो तुरंत यह प्रतिक्रिया आयी कि, गोडसे आर एस एस का नहीं था। वह हिन्दू महासभा का था। इस हत्या से हिन्दू धर्म कैसे बच गया यह मैं आज तक समझ नहीं पाया हूँ। गोडसे , कुछ की विचारधारा के अनुसार, सही होगा, पर उसे इस महान धर्म के रक्षक के तौर पर प्रस्तुत करना एक छल और प्रपंच है।
फेसबुक पर एक नक़्शा कुछ गोडसेवादी , गांधी की हत्या को उचित ठहराने के लिए पोस्ट कर रहे हैं। उस नक़्शे में पाकिस्तान के दोनों भाग, पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है को मिलाने वाला गलियारा दिखाया गया है। उस पोस्ट में यह दिखाने और सिद्ध करने की कोशिश की गयी है कि, गांधी दोनों पाकिस्तानों के बीच एक गलियारा देने को राज़ी थे। इसी कारण उनकी हत्या कर दी गयी। हर अपराधी अपने अपराध का औचित्य सिद्ध करता रहा है। गोडसे भी इसका अपवाद नहीं है। आज उसी बीमार मानसिकता के लोग इसी मिथ्या धारणा से गांधी को आरोपित करते हुए, गोडसे के अपराध को उचित साबित करने के लिए येन केन प्रकारेण प्रयास रत है।
भारत पाक बंटवारे की जितनी भी वार्ता हुयी थी, उस में मुख्यतः तीन पक्ष ही शामिल थे। कांग्रेस की और से नेहरू, पटेल, और आज़ाद, मुस्लिम लीग की तरफ से जिन्ना और लियाक़त अली, और ब्रिटिश साम्राज्य की ऒर से लार्ड माउंटबेटन। तीनों के बीच ही बंटवारे और पाकिस्तान के स्वरुप पर चर्चा हुयी थी। जब बंटवारा अंतिम विकल्प के रूप में उभर कर सामने आया और पाकिस्तान का गठन अनिवार्य हो गया तो दोनों पाकिस्तानों के बीच आने जाने के लिए जिन्ना ने एक दस किलोमीटर चौड़े गलियारे की मांग की। यह गलियारा दोनों पाकिस्तानों को तो जोड़ता था पर यह पूरे उत्तर भारत को दो हिस्सों में बाँट भी देता था। यह मांग प्रत्यक्षतः अव्यावहारिक थी। और इसे वायसराय ने खारिज भी कर दिया । जिन्ना भी जानते थे कि यह मांग मानी नहीं जायेगी और अव्यावहारिक होने के साथ साथ हास्यास्पद भी है। वी पी मेनन, उस समय वायसराय के सचिव थे और बंटवारे की सभी घटनाओं के वे प्रत्यक्ष साक्षी भी थे। उन्होंने उस समय की घटनाओं पर एक बहुत ही प्रामाणिक पुस्तक , The Transfer of Power , लिखी है। उस में इसका ज़िक्र है।
उसी को तोड़ मरोड़ कर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि गांधी उस गलियारे के पक्ष में थे। देश के बंटने और बंटवारे के प्रारूप पर अंतिम निर्णय जून 1947 तक हो गया था। गलियारा कभी भी गंभीर चर्चा का विन्दु नहीं रहा है।15 अगस्त को दोनों ही देश ब्रिटिश साम्राज्य की आधीनता से मुक्त भी हो गए। और गांधी की हत्या होती है 30 जनवरी 1948 को। तब यह कहना कि गांधी कुछ दिन और जीवित रह जाते तो यह गलियारे अस्तित्व में आ जाता, बेहद मिथ्या और शरारत भरा तर्क है। जब दोनों देश सार्वभौम और स्वतंत्र हो गए और अंग्रेज़ चले भी गए तब वह गलियारा कौन बनाता और कौन मानता ? किन्तु, गोडसे को ऐसा कह के केवल महिमा मंडित किया जा रहा है। गोडसे जिस विचारधारा का था, वह जिन्ना के ही विचारधारा की प्रतिछाया थी। जिन्ना भी धर्म और राष्ट्र को एक ही मानते थे यह लोग भी धर्म और राष्ट्र को एक ही मानते हैं। इनके अनुसार पाकिस्तान अगर मुस्लिमों का देश बन रहा है तो, हिंदुस्तान , हिंदुओं का ही होना चाहिए। उधर मास्टर तारा सिंह , सिखों के लिए अलग देश की मांग कर ही चुके थे। पर कांग्रेस ने सर्व धर्म सम भाव पर आधारित एक देश की कल्पना की थी। स्वातंत्र्य समर में भारत में रहने वाले सभी धर्म और जाति के लोगों ने कंधे से कन्धा मिला कर संघर्ष किया था। आज़ाद भारत पर सब का समान अधिकार था। जिन्ना का सिद्धांत ही आधारहीन और गलत था। किसी आधारहीन और गलत सिद्धांत के जवाब में आप आधार हीन और मिथ्या समाधान नहीं प्रस्तुत कर सकते ।
समस्या यह है कि गोडसे आज भी उनकी विचारधारा को सूट करता है। पर गांधी के अत्यंत विराट और लोकप्रिय व्यक्तित्व के आगे उनके में इतना साहस भी नहीं है कि वे गोडसे की खुल कर प्रशंसा कर सकें। वे इतिहास को विकृत करते हैं और जीवन भर अंग्रेजों की तरफदारी करने वाले संगठन अब खुद को महान राष्ट्र भक्त के रूप में प्रस्तुत करते हुए नहीं अघाते हैं।
( विजय शंकर सिंह )
No comments:
Post a Comment