Sunday, 6 December 2015

अयोध्या , 6 दिसंबर 1992 - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह





कुछ के लिए आज शौर्य दिवस है .
यह शौर्य , किस शत्रु के पराभव पर प्रदर्शित हुआ था ?
वह युद्ध किस से लड़ा गया था ?
कौन शत्रु खेत रहा ?
क्या मिला इस शौर्य से देश को ?
यह सारे सवाल मेरे ही नहीं , आने वाली पीढ़ियों के मन में सदैव खटकते रहेंगे.
6 दिसंबर 1992 को , एक अत्यंत उन्मादित भीड़ जो देश भर से , देश के आराध्य राम के नाम पर बटोर कर लायी गयी थी द्वारा अयोध्या स्थित राम जन्म भूमि / बाबरी मस्ज़िद या सरकारी भाषा में कहें तो, विवादित ढांचा को गिरा दिया गया था. अयोध्या में दोराही कुंआ से जब सीता रसोई की और चलेंगे तो सीता रसोई के सामने एक बड़े से टीले पर कभी तीन गुम्बदों वाली एक इमारत खड़ी हुआ करती थी. बीच का गुम्बद बड़ा और अगल बगल के दोनों गुम्बद थोड़े छोटे थे. गुम्बदों पर काई जमी रहती थी. इमारत के अंदर तीन बड़े बड़े दालान थे जो आपस में मिले हुए थे. इमारत के चारों तरफ एक दीवार थी. मोटी और सादी. इमारत के दायीं या उत्तर की तरफ एक छोटा सा लोहे का दरवाज़ा , जैसा अक्सर ब्रिटिश कालीन थानों की हवालात में होता है , था. यह इमारत मीर बाक़ी नामक एक सूबेदार द्वारा बनवाई गयी थी. मीर बाक़ी , मुग़ल बादशाह , बाबर का अधीनस्थ था. यह इमारत 1528 / 29 में खड़ी की गयी थी. जिसे बाबरी मस्ज़िद कहा जाता था. बाबर के अयोध्या या फैज़ाबाद आने का कोई भी प्रमाण इतिहास में नहीं मिलता है. न तो बाबर की आत्मकथा बाबरनामा या तुजुक ए बाबरी में या उसकी बेटी गुलबदन द्वारा लिखी पुस्तक हुमायूँनामा में. पर इस इमारत को बाबर के नाम पर बाबरी मस्ज़िद कहा गया . जन श्रुति है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था.
अयोध्या राम की जन्म भूमि है और यह तथ्य अविवादित है. यह भी कहा जाता है कि , मीर बाक़ी ने जहां यह इमारत खड़ी की, वहाँ एक भव्य मंदिर हुआ करता था. जिसे उसने तोड़ कर यह मस्ज़िद खड़ी की. अयोध्या धर्म क्षेत्र है. यहां बहुत से मंदिर हैं . इस स्थान पर भी हो सकता है मंदिर रहा हो. पुरातात्विक उत्खनन इस ओर संकेत भी करते हैं. पर यह मस्ज़िद अयोध्या की अन्य मस्ज़िदों के समान नमाज़ के लिए बहुत अधिक उपयोग में नहीं आती रही है. जुमा की ही नमाज़ यहां पढी जाती रही है. पर 1936 से इस मस्ज़िद में कोई भी नमाज़ नहीं पढी गयी है.
इसी वीरान मस्ज़िद में 22 दिसंबर 1949 को कुछ साधुओं और बाबाओं ने बाल रूप श्री राम , जिन्हें आज राम लला कहा जाता है, की एक छोटी सी प्रतिमा इसके अंदर रख दी. और यह प्रचारित भी कर दिया गया कि राम स्वतः प्रकट हो गए है. बाद में विवाद होने पर , यह इमारत धारा 147 सी आर पी सी के अंतर्गत कुर्क कर दी गयी. मूर्ति की पूजा अर्चना की भी अनुमति दे दी गयी. इस प्रकार एक यथास्थिति बनाये रखे गयी. जो मैं लिख रहा हूँ,वह इतना संक्षिप्त और सरल घटनाक्रम भी नहीं है. यह बहुत रोचक है. उस पर विस्तार से फिर कभी लिखूंगा, क्यों कि उसके लिए थोडा शोध भी करना पड़ेगा.
1986 तक यह मामला शांत रहा. अयोध्या के अन्य मंदिरों की तरह यह स्थान न तो उतना गुलज़ार रहता था और न ही उतनी भीड़ जुटती थी. लोग यहां उत्कण्ठा वश ही अधिक आते थे. तभी एक मुक़दमे का फैसला आता है और इस मंदिर का ताला खुल जाता है. यह भी लोग देख लेते हैं कि, जो जज साहब यह फैसला दे रहे थे तो उनकी अदालत के ऊपर एक बन्दर बैठा था, जो कुछ को हनुमान नज़र आये थे. इसी साल से राम का राजनीति में दुरुपयोग शुरू हुआ. पहले कांग्रेस ने राम और राम मंदिर का राजनैतिक दुरूपयोग किया, और फिर बाद में भाजपा ने तो यह सिलसिला आज तक बनाये रखा है. 1989 में राजीव गांधी की सरकार के समय शिलान्यास का कार्यक्रम रखा था और 1990 में जब लाल कृष्ण आडवाणी की बहु प्रचारित रथ यात्रा प्रारम्भ हुयी तो उनके अयोध्या पहुँचने के दिन कारसेवा का कार्यक्रम रखा गया. 1990 में ही सबसे पहली बार विवादित ढाँचे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गयी थी पुलिस को गोली चलानी पडी थी. कुछ लोग उसमे मरे भी थे.
1991 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होता है. भाजपा अपने दम पर जीत कर सरकार में पहली बार आयी. कल्याण सिंह मुख्य मंत्री बने. सारी कैबिनेट अयोध्या जाती है, और वहाँ यह वादा कर के आती है कि राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे. फिर आती है तारीख 6 दिसंबर 1992. यह दिन तय होता है अयोध्या में कार सेवा का. लाखों लोगों को वहाँ इकठ्ठा किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल की सुरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से हलफनामा दाखिल कर आश्वस्त करने को कहा. सरकार ने विवादित स्थल को सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया. और यह भी कहा कि सरकार या मुख्य मंत्री , अयोध्या में किसी भी परिस्थिति में गोली चलाने का आदेश नहीं देंगे. मैं इतनी लंबी पुलिस सेवा के बाद आज भी यह समझ नहीं पाया हूँ कि सी आर पी सी के किस सेक्शन में सरकार या मुख्य मंत्री को , पुलिस को, क़ानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिए, गोली चलाने या न चलाने के लिए आदेश देने का अधिकार कहाँ उल्लिखित है. हमने तो यही पढ़ा है कि यह अधिकार मौके पर उपस्थित मैजिस्ट्रेट का ही है ! कल्याण सिंह को संविधान की रक्षा , शपथ लेकर भी न करने के कारण बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सजा भी दी.
भीड़ को उत्तेजित किया गया. भीड़ अनियंत्रित हुयी. पुलिस ने रोकने का प्रयास अवश्य किया पर वह असफल रही. गोली चलनी नहीं थी. गोली चली भी नहीं. और वह इमारत गिरा दी गयी. जब कोई प्रतिरोध ही नहीं, तो शूरता किस पर और जब शूरता ही नहीं तो शौर्य किसका. और शौर्य दिवस किस लिए ? फिर तो जो होना था, हुआ ही. शाम तक कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी गयी. अयोध्या के ज़िला मैजिस्ट्रेट और एस एस पी निलंबित कर दिए गए. बाद में एस एस पी , भाजपा के टिकट पर सांसद भी हुए. पर जो गलती एक प्रशासक और पुलिस अफसर के रूप में इन्होंने की थी, वह सेवा के आदर्शों के सर्वथा विपरीत थी.
1991 के चुनाव के बाद जितने भी चुनाव उत्तर प्रदेश में हुए उसमे भाजपा फिर अपने दम पर कभी सरकार नहीं बना पायी. मैं इसे राम का ही कोप मानता हूँ. राम मंदिर न तो भाजपा को बनाना था, और न ही उन्हें बनाना है. भाजपा को एक भावनात्मक मुद्दा चाहिए था. राम से अधिक किसने जन मानस को छुआ है ? तो वे राम को ही ले कर चले. बड़ी बड़ी बातें की गयी. पर जब इमारत गिर गयी तो , सब हमने नहीं गिराया के मोड़ में आ गए. जो मुक़दमा 1949 से अदालत में भूमि के स्वामित्व का चल रहा था आज भी वह सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. राम , मस्ज़िद ही कह लें , फिर भी, एक इमारत में तो थे. वहाँ उनकी विधिवत पूजा अर्चना तो होती थी. जिन्हें आस्था थी, वे नज़दीक से उनका दर्शन तो कर लेते थे. इमारत के ठीक बाहर , राम चबूतरे पर न जाने कब से , अखंड हरिकीर्तन तो हो रहा था. मेला लगा हुआ था. अयोध्या का बाज़ार चमक गया था और फल फूल रहा था. बंदर तो भूखे नहीं मर रहे थे. जैसे आज सब गिरा पड़ा कर , तम्बू में राम को रख कर , मुक़दमे के फैसले का सब इंतज़ार कर रहे हैं. तब वैसे भी इंतज़ार किया जा सकता था. कम से कम राम तो टेंट में नहीं रहते! लेकिन तब भाजपा की सरकार कैसे बनती !! उद्देश्य तो सत्ता में आना था. मंदिर बनाना नहीं. इस लिए जब जब चुनाव निकट आता है, राम याद आने लगते हैं.
अयोध्या में राम को अपने सभी भाइयों सहित आत्म हत्या करनी पडी थी. इतिहास की एक त्रासदी यह भी है. राम ने अपने और अपने सभी भाइयों के , पुत्रों को वहाँ से दूर जाने को कह दिया. और खुद भाइयों सहित वे सरयू में समाहित हो गए. राम कभी कैकेई मंथरा द्वारा, तो कभी मारीच, तो कभी अयोध्या के प्रजा द्वारा छले गए. और अब भी छले जा रहे हैं. राम स्वयं तय कर देगे कि, उनका आश्रय गिरा कर पूरे देश में आग लगाना , शौर्य था या नहीं . राम सब को सद्बुद्धि दें. आज यही प्रार्थना है. 
( विजय शंकर सिंह )


   

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