राजनीति में अपराधीकरण एक व्यापक समस्या है. आपात काल
के समय जब संजय गांधी का वर्चस्व कांग्रेस पर बढ़ा तो पहले कुछ मनबढ़ और फिर दबंग
परवित्ति के लोगों का प्रवेश राजनीति में हुआ. युवा कांग्रेस उस समय कुछ स्कूली
दबंग छात्रों का गिरोह भी बनी. सभी राजनीतिक दलों के
अपने अपने युवा संगठन थे. समाजवादियों के, समाजवादी युवजन सभा, जन संघ और फिर भाजपा
का विद्यार्थी परिषद्, साम्यवादी दलों का स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया और आल इंडिया स्टूडेंट
फेडरेशन, कांग्रेस का एन एस यु आई. आदि . मैं जब बी एच यूं मैं पढ़ता था तो, उस समय छात्र
राजनीति में दो ही दलों का प्रभाव था. एक एस वाय एस और दूसरा विद्यार्थी परिषद्.
दोनों ही दलों की अपनी विचार धारा थी. छात्र नेता भी अधिकतर आपराधिक पृष्ठभूमि के
नहीं थे. यह देश भर के छात्र राजनीति या युवा राजनीति का स्वरुप थे.
धीरे धीरे जब राजनीति में अपराधी तत्वों का प्रवेश होने लगा और कुछ अपराधी तत्व अपनी दबंगई और अपराधिक कुख्याति से चुनाव जीतने लगे तो राज्नीतीं दलों ने अपनी विचार्धारों को दर किनार कर इन तत्वों को संसद और विधान सभाओं में भेजना शुरू कर दिया. अपराधी तत्वों के खिलाफ जाहिरा तौर पर सभी दल दिखेंगे, लेकिन उन्हें टिकट सभी देंते हैं. और यह तर्क देते हैं कि उन्हें किसी अदालत ने सज़ा नहीं दी है. इसी को देखते हुए मा सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर हुयी. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्याय्सलयों ने कुछ अत्यंत प्रभावी आदेश पारित किये. जिस से यह आशा बंधी कि शायद राजनीति अब थोड़ी साफ़ हो.
लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या अदालतों के समक्ष एक बड़ी चुनौती की तरह हैं. दबंग, और प्रभावशाली अभियुक्त कभी धन के बल पर तो कभी अपने संबंधों के बल पर और कभी वकालत के हुनर के बल पर मुकदमों को लटकाए रखते हैं.ऐसी परिस्थितियों में मा सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि विधायकों और सांसदों के विरुद्ध अदालतों में जो आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं, उनकी सुनवाई एक वर्ष में पूरी कर के मामलों का निस्तारण किया जाय.
यह भी दुर्भाग्य है कि जो कदम राजनीति की शुचिता के लिए विधायिका को उठाने चाहिए, वह कदम कुछ जागरूक संगठनों की पहल और जन हित याचिकाओं पर न्याय पालिका द्वारा उठाया जा रहा है...
The Supreme Court
on Monday today set a deadline of one year for lower courts to complete trial
in cases involving MPs and MLAs. "Trials in cases involving MPs and MLAs
are to be conducted on day-to-day basis," the apex court ruled.
"The trial judge will have to explain to the Chief Justice of high court if he fails to complete trial within a year of framing of charges," the court further said.
Last year, the apex court had struck down a provision in the electoral law that protects a convicted lawmaker from disqualification on the ground of pendency of appeal in higher courts.
Following the apex court ruling, convicted MPs and MLAs stand disqualified immediately upon their conviction. The verdict sought to remove the discrimination between an ordinary individual and an elected lawmaker who enjoys protection under the Representation of People Act.
Under Sec 8(3) of the Act, a person convicted of any offence and sentenced to imprisonment for not less than two years shall be disqualified for that and a further six years after release.
The apex court's verdict came on the petitions filed by Lily Thomas and NGO Lok Prahari through its secretary S N Shukla who had sought striking down of various provisions of RPA on the ground that they violate certain constitutional provisions which, among other things, expressly put a bar on criminals getting registered as voters or becoming MPs or MLAs.
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