Tuesday, 12 March 2013

राम सिंह की आत्म ह्त्या ??



राम सिंह की आत्म ह्त्या ??
दामिनी बलात्कार और ह्त्या के मामले में अभियुक्त राम सिंह ने तिहाड़ जेल दिल्ली में फांसी लगाकर आत्म ह्त्या कर ली . राम सिंह देश को दहला देने वाली इस जघन्य हयाकांड का एक अभियुक्त था और उस पर अभी मुक़दमा भी चल रहा था . उस का दोष अभी प्रमाणित नहीं हुआ था . इस घटना की अलग अलग तरह से व्यापक प्रतिक्रया हुयी . किसी ने इसे अपराध के प्रयाश्चित के तौर पर देखा , किसी ने क़ानून की नाकामी की और इंगित किया , किसी ने जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार को दोष दिया और राम सिंह के वकील और उस के घर वालों ने इसे हया की साज़िश मानी है . नियमानुसार जेलों में और पुलिस हिरासत में होने वाली ऐसी मौतों की मजिस्ट्रेटी जांच होती है  और इस घटना की भी हो रही है . जांच रिपोर्ट के आने तक किसी भी अनुमान की कल्पना करना और अंतिम निष्कर्ष  निकालना उचित नहीं होगा .

फिर भी जिस घटना के कारण इतना बड़ा स्वयं स्फूर्त आन्दोलन खडा हुआ हो  , और व्यापक जन दबाव को देखते हुए , एक नया क़ानून बनने जा रहा हो , से जुड़े एक अभियुक्त की इस प्रकार की मृत्यु पर चुप भी नहीं रहा जा सकता . जिन परिस्थितियों में राम सिंह की मृत्यु हुयी है , वह प्रथम दृष्टया जेल प्रशासन की लापरवाही की ओर इंगित करती है . अगर इसे आत्म हया भी मान लें तो जेल प्रशासन को कई सवालों के जवाब खोजने पड़ेंगे . जैसे रस्सी कैसे बनायी गयी और उसे खुद के लटकने योग्य कैसे बनाया गया .आदि आदि . कुछ लोग इसे अपराध बोध जनित कुंठा और मीडिया में लगातार इस मामले को उछाले जाने से होने वाले मानसिक त्रास को भी दोषी ठहरा रहे हैं .

मीडिया निश्चित रूप से अब समाचार पहुंचाने का ही माध्यम नहीं रहा है , बल्कि किसी भी घटना की यह खुद भी  विवेचना  करने लगता है , इस से एक पूर्वाग्रह से युक्त मानसिकता भी बन ने लगती है . अब जब कि समाचार चैनेल्स की संख्या निरंतर बढ़ रही है , तो एक प्रकार की स्पर्धात्मक विवेचना शुरू हो गयी है , और जल्द से जल्द निष्कर्ष निकालने की होड़ भी लग जाती है . सोशल मीडिया भी इस तरह का निष्कर्ष निकालने में भी पीछे नहीं रहता है . जब कि क़ानून के अनुसार मुक़दमे के विचारण में इस तरह की विवेचना और जंतर मंतर के आन्दोलन का  कोई भी प्रभाव प्रत्यक्षतः नहीं पड़ता है . वहाँ सिर्फ न्यायाधीश के समक्ष पेश हुए सबूतों पर ही फैसला सुनाया जाता है . लेकिन न्यायाधीश भी मनुष्य ही होते हैं , और इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उन पर मीडिया विचारण का कोई असर पडा है कि नहीं . मीडिया को और हम सभी को , इस विचारण से बचना चाहिये और हमें भी टू मिनट्स नूडल्स के तर्ज़ पर तत्काल किसी निष्कर्ष पर नहीं  पहुंचना चाहिये . कोई तंत्र इसे नियंत्रित करे , इस से बेहतर है , हम खुद ही आत्म नियंत्रण करें . मीडिया भी और हम भी .

यह घटना कानून की कमजोरी नहीं है . क्यों कि इस घटना से चल रहे विचारण पर कोई भी प्रभाव नहीं पडेगा . लेकिन अन्य अभियुक्तों की भी सुरक्षा जेल प्रशासन को करनी चाहिए , इस अभियोग का समापन कानूनी रूप से हो न कि इस प्रकार की दुर्घटनाओं से .

1 comment:

  1. yadi ram singh ne sucide kiya hai to bhi aur nahi kiya hai to bhi usko phansi to honi hi thee.

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