रूस स्वयं एक रहस्य है। ऐसा नहीं कि इतिहास की किताबों में रूस नहीं, मगर वह बीसवीं सदी के बाद का इतिहास है। हमारे जुबान पर लेनिन-स्तालिन तो हैं, मगर उससे पूर्व का इतिहास दब गया। वहाँ के सम्राटों (ज़ार) का ऐसा आततायी चित्रण हुआ कि उन्हें पढ़ा-पढ़ाया नहीं गया। दुनिया के सबसे बड़े देश के विषय में हम सबसे कम जानते हैं। जबकि अगर तफ़्तीश की जाए, तो शायद उन साइबेरिया और स्टेपी घास मैदानों से भारतीयों का भी कुछ रिश्ता निकल जाए।
मैं नॉर्वे में एक संग्रहालय में यहाँ के वाइकिंगों के बनाए जहाज देख रहा था। उनके देवताओं को देखा। यूँ लगा जैसे कि किसी चोल राजा का जहाज़ यहाँ बह कर आ गया। यूरोपीय इतिहासकार इन वाइकिंगों को खूँखार समुद्री लुटेरे कहते रहे हैं। उसका भी अपना स्वार्थ है। सच यह है कि नौवीं सदी में यूरोप पर वाइकिंग की दबंगई चरम पर थी। वे उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम लूट-पाट करते हुए गुजरते। कोई उन्हें वाइकिंग कहता, कोई वंगैरियन, और कोई कहता रूस!
● रूस का एक अर्थ है- जो नाव चला कर (row) आए।
नौवीं सदी में एक दिन एक वाइकिंग सरदार रुरिक अपने दो भाइयों और दल-बल के साथ कीव (आज के यूक्रेन) पहुँचे, और उन्होंने एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। वाइकिंग को अपना राजा बनाने में वहाँ के लोगों का स्वार्थ भी था। वे पूरब के मंगोल कबीलाई हमलों से त्रस्त थे। वाइकिंग के आने के बाद अब टक्कर बराबर की थी।
रूरिक (या रुरिकोविच) वंश से ही रूस एक देश के रूप में आगे बढ़ा। कयास लगते हैं कि उस समय वहाँ वाइकिंग और कुछ अन्य स्लाव और तुर्क देवों की मूर्ति पूजा होती थी, स्वास्तिक भी उपयोग में था।
रूस अपनी दुनिया में जी रहा था। लेकिन, वहाँ से दक्षिण धर्मयुद्ध (क्रूसेड) शुरू हो रहा था। ईसाई और इस्लाम के मध्य जंग छिड़ने वाली थी, और दुनिया के विभाजन की नींव पड़ रही थी। एक तरफ अरब के ख़लीफ़ा, दूसरी तरफ़ बैजंटाइन साम्राज्य का ईसाई झंडा। जो धर्म जीतता, उसी का राज होता।
ईसाइयों पर हार और समूल नाश का खतरा मंडरा रहा था। रोम पहले ही गिर चुका था, बैजंटाइन कमजोर पड़ रहा था। इन घटनाओं से महफ़ूज़, दसवीं सदी में रूस के राजा व्लादीमीर अपनी राजधानी में एक भव्य मंदिर का निर्माण कर रहे थे।
बैजंटाइन की राजधानी कुस्तुनतुनिया दरबार में बैठे धर्मगुरु शायद यह सुझाव दे रहे हों, “अगर ये उत्तर के खूँखार वाइकिंग और रूस ईसाई धर्म अपना लें तो हम अजेय हो जाएँगे। फिर हमें इस धर्मयुद्ध में कोई नहीं हरा सकता!”
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास (1)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/09/1_25.html
#vss
No comments:
Post a Comment