Monday, 6 September 2021

प्रवीण झा - भारतीय पुनर्जागरण का इतिहास - दो (2)

          ( रबीन्द्रनाथ टैगोर, जर्मनी में )

विवेकानंद, जगदीशचंद्र बोस, प्रफुल्लचंद्र रे लगभग एक ही बैच के थे। इनमें सबसे बड़े बोस थे। यही कारण था कि जब विवेकानंद पेरिस में थे, तो अपने सीनियर के भाषण को सुनने पहुँचे। इन तीनों की प्रतिभा कलकत्ता के स्कूल-कॉलेज में विख्यात थी। तीनों तेजस्वी ग्रैजुएट। 

इन्हीं के समय स्कूली मानकों से कमजोर एक विद्यार्थी थे रवींद्रनाथ। जब सत्रह वर्ष के बोस सेंट ज़ेवियर में पढ़ते थे, तो चौदह वर्ष के रवींद्रनाथ भी उसी स्कूल में थे। मुमकिन है कि रवींद्र बैक-बेंचर श्रेणी में रहे हों, जिन्होंने स्कूल बीच में ही छोड़ दिया। भविष्य में यह विद्यार्थी नवजागरण के सबसे बड़े प्रतिनिधि बने। इन कॉलेज ड्रॉप-आउट ने अपना विश्वविद्यालय ही स्थापित कर दिया, और गुरुदेव कहलाए। 

ऐसा नहीं कि रवींद्रनाथ स्कूल में एक गुमनाम विद्यार्थी होंगे। वह ऐसे परिवार से थे, जिन्हें कलकत्ता का बच्चा-बच्चा जानता होगा। उनके पितामह द्वारकानाथ टैगोर तो राजा राममोहन राय के ख़ास थे। बंगाल के सबसे धनी जमींदारों में एक द्वारकानाथ ईस्ट इंडिया कंपनी के ठेकेदार रहे थे, और उस जमाने में महारानी विक्टोरिया और चार्ल्स डिकेंस के साथ बैठ भोजन कर चुके थे। वह भी भद्रलोक समाज में अध्ययन और विमर्श से जुड़े, लेकिन मुख्यत: व्यवसायी मानसिकता के थे। कहा जाता है कि अपनी रईसी शौकों की वजह से बाद में वह कर्ज में जाने लगे, जिसका बोझ उनके बेटे देवेंद्रनाथ पर आ गया।

देवेंद्रनाथ टैगोर अपने पिता के ठीक विपरीत वेदों और उपनिषदों में समय बिताने वाले संन्यासी मिज़ाज के व्यक्ति थे। वह भद्रलोक समाज में ‘महर्षि’ नाम से जाने जाते और रामकृष्ण परमहंस एवम् ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसों से संपर्क था। संन्यासी का अर्थ यह नहीं कि वह फक्कड़ थे, बल्कि वह अपने पिता से अधिक उद्यमशील और धनी हुए। हालाँकि उनकी निजी उपलब्धियों से अधिक उनके संतानों की उपलब्धियाँ जानी जाती है।

सबसे बड़े संतान द्विजेंद्रनाथ टैगोर गणितज्ञ और दार्शनिक तो हुए ही, उन्होंने बंगाली की पहली संगीत स्वरलिपि तैयार की। उन्होंने ही महेंद्रनाथ सरकार के साथ मिल कर कलकत्ता का विज्ञान संस्थान IACS भी स्थापित किया।

उनसे छोटे सत्येंद्रनाथ टैगोर तो अपनी जीवन-शैली से अंग्रेज़ों में अंग्रेज़ थे। वह पहले भारतीय बने जिन्होंने ICS (सिविल सेवा) परीक्षा उत्तीर्ण की। 

ज्योतिंद्रनाथ टैगोर को सबसे आकर्षक और प्रतिभावान संतान माना जाता है, जिन्होंने अनेक नाटक और अनुवाद किए। वह एक उम्दा चित्रकार और संगीतकार भी थे। 

उनकी छोटी बहन स्वर्णकुमारी ने राष्ट्रवादी उपन्यास ‘दीपनिर्वाण’ लिखा, और स्त्री बंकिमचंद्र कहलायी।

ऐसे घर में अपने सभी भाइयों और बहनों में सबसे छोटे रवींद्रनाथ बड़े हो रहे थे। जोड़ासाँको के उस विशाल बंगले में दलान पर बैठे उनसे इक्कीस वर्ष बड़े भाई अंग्रेज़ी कविताएँ रच रहे होते। वहीं अंदर एक कमरे में सत्येंद्रनाथ किताबों में डूबे सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे होते।

बाद में रिश्ते में एक भतीजे अवनींद्रनाथ भी अक्सर वहीं होते, जिन्होंने बाद में चित्रकला में नयी ऊँचाइयाँ पायी और बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट की नींव रखी। 

लेकिन, संभव है कि किशोर रवींद्र को सबसे अधिक आनंद ज्योंतिंद्रनाथ के कमरे में आता हो, जहाँ वह कभी चित्रकारी में लीन होते, तो कभी पियानो पर बैठ संगीत रच रहे होते, और कभी किसी नाटक की तैयारी कर रहे होते। रवींद्र को प्रेमवत स्नेह उनकी पत्नी कादंबरी से था, जो दस वर्ष की अवस्था में विवाहित होकर वहाँ आ गयी थी। वह रवींद्र से दो वर्ष छोटी थी और इस कारण साथ ही पढ़ती-खेलती। अगर वह न होती, तो संभव है कि रवींद्रनाथ वह न बन पाते, जो हम आज जानते हैं। रवींद्र के जीवन का वह ‘टर्निंग प्वाइंट’ था, जब उनके विवाह के कुछ ही महीनों बाद कादंबरी ने आत्महत्या कर ली।
(क्रमश:) 

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

भारतीय पुनर्जागरण का इतिहास - दो (1)
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