सफर करने के दौरान मैं बार-बार जेब से टिकट निकाल कर चेक करता रहता हूं। मुझे लगता है कि टिकट, टिकट नहीं है, कोई चिड़िया है जिसे मैंने जेब में रखा हुआ है और वह मौका पाते ही उड़ जाएगी।
मैंने तीसरी बार मुल्तान से कराची जाने का टिकट निकाल कर बहुत ध्यान से पढ़ना शुरू किया। टिकट के पीछे उर्दू में साफ-साफ लिखा हुआ था की टिकट चेकर आईडी चेक करेगा। मैंने अपने टिकट पर लिखी आईडी देखी तो मेरे होश उड़ गए। जाफरी साहब के नौकर ने टिकट खरीदा था और टिकट पर अपनी आईडी लिखवा दी थी। अब टिकट चेकर जब देखेगा कि टिकट पर लिखी आईडी दूसरी है और मेरी आईडी एक हिंदुस्तानी पासपोर्ट है तो वह क्या करेगा? फौरन पुलिस को रिपोर्ट करेगा कि एक हिंदुस्तानी या भारतीय फेक आईडी पर यात्रा कर रहा है । पुलिस को जैसे ही यह जानकारी मिलेगी वह मुझे ट्रेन से उतार लेगी। फेक आईडी पर कौन सफर करते हैं? जासूस या अपराधी या भगोड़े ।और इन तीनों को सजा दी जाती है। मुझे गिरफ्तार करते ही पुलिस किसी स्टेशन के हवालात में बंद कर देगी।
ट्रेन के फर्स्ट क्लास कूपे का जब यह हाल है तो हवालात कैसा होगा इसकी कल्पना करना बहुत मुश्किल न था।
पुलिस जब यह पूछेगी कि आपको वीजा तो दिया गया था लाहौर में फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' के जन्म शताब्दी समारोह में शामिल होने का।आप मुल्तान में क्या कर रहे थे? क्यों गए थे? और फिर कराची क्यों जा रहे हैं? क्या करेंगे ? इन सब सवालों का मेरे पास कोई जवाब न होगा तब मेरे ऊपर मुकदमा शुरू हो जाएगा। पता नहीं कितना लंबा चलेगा। फिर सजा होगी। वह भी पता नहीं कितनी होगी। मोहनलाल भास्कर की किताब 'मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था' मेरी निगाहों के सामने से गुजरने लगी। मोहनलाल भास्कर को जितना टॉर्चर किया गया था उसका पांच परसेंट भी मुझे किया गया तो मैं पाकिस्तान से ही नहीं दुनिया से गुज़र जाऊंगा। ये यह सब सोचकर चक्कर आने लगे । सबसे बड़ी मुश्किल तो यह थी कि अब कुछ न किया जा सकता था। मैं अगर जाफरी साहब को फोन भी करता तो वह क्या कर सकते थे?
मैं सिर पर कफ़न बांधे बैठा था कि टिकट चेकर आ गए। उन्होंने बैठते ही अपना चार्ट फैला दिया। मैंने अपना टिकट बढ़ाया। उन्होंने चार्ट पर ज्यादा गौर किया मेरे टिकट पर कम । और फौरन ही टिकट पर हिंदी के चार जैसी लाइन खींच कर टिकट मुझे वापस कर दिया और बग़ैर कुछ कहे उठ कर चले गए। मेरी जान में जान आई।
मुझे लगा आस्थावान हो जाने का एक मौका मैंने खो दिया है। अगर टिकट चेकर के आने से पहले कोई मन्नत, मनौती मान ली होती तो कितना अच्छा होता है।
जैसे-जैसे रात बढ़ रही थी वैसे वैसे सर्दी लगना शुरू हो गयी थी । मेरे पास कोई गरम कपड़ा न था इसलिए एक कमीज के ऊपर दूसरी कमीज पहन ली। कुछ देर बाद फिर सर्दी लगने लगी तो तीसरी कमीज पहन ली। एक पेंट के ऊपर दूसरी पैंट पहन ली।
इतना सब कुछ पहनने के बाद मैंने सोचा कि अगर इस कूपे में कोई दूसरा मुसाफ़िर आया तो मुझे यकीनी तौर पर पागल समझेगा।
लेकिन मुश्किल यह थी कि मैं और कुछ न कर सकता था। वैसे कूपे की रोशनी मेरा साथ दे रही थी।
रात आधी से ज़्यादा गुज़र चुकी थी। अब तक कूपे में अकेला मैं किसी संभावित खतरे की शंका से मुक्त नहीं हो पाया था। कराची बहुत दूर थी।
( जारी ......)
असग़र वजाहत
© Asghar Wajahat
पाकिस्तान में ट्रेन का सफर (1)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/09/1_19.html
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