Friday, 1 November 2019

व्हाट्सएप्प से फोन में सेंध और जासूसी / विजय शंकर सिंह


व्हाट्सएप्प मेरे पास भी है। पर उसमे सबसे अधिक सन्देश गुड मॉर्निंग के आते हैं। दरअसल यह एक आसान औपचारिकता है। नेंट से फूल पत्ती, सूरज बादल बटोरा और शब्द भी वहीं से लिये और सबको भेज दिया। सुंदर और दिलकश चित्र और सुभाषित तो होते ही हैं। कुछ पारिवारिक फ़ोटो भी आती जाती रहती हैं। मैं अपने कुछ मित्रो को अपने ब्लॉग लोकमाध्यम का लिंक भेज देता हूँ। यह मेरे लिये प्रचार का माध्यम है। कभी कभी कोई सेल्फी । अमूमन व्हाट्सएप्प कॉल से बात नहीं करता हूँ। कारण, आवाज़ भी कट जाती है और उससे बेहतर बात तो फोन से होती है। पर कल से पता चला कि कोई मालवेयर वायरस है जो फोन में घुसपैठ कर के सब चुरा रहा है और चुरा कर किसे भेज रहा है यह पता नहीं।

जासूसी दुनिया का सबसे पुराना शगल है। निंदा रस सबसे रोचक और रेचक रस है, हालांकि शास्त्रों में यह रस कहीं नहीं है। पर मुझे लगता है रसराज श्रृंगार के अनेक भावों में मान, उलाहना रूठना आदि जो भाव होंगे उनमे जासूसी की भूमिका ज़रूर होगी। चुगलखोरी इसी रस का विस्तार है। जासूसी और जासूस किस भाषा का मौलिक शब्द है यह मैं नहीं ढूंढ पा रहा हूँ, पर यह कार्य मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही अस्तित्व में है। जब आदिम समाज मे कभी राजा बने होंगे तभी से जासूसी या गुप्तचर उस राज्य के प्रमुख अंग हुये होंगे। चाहे युद्धकाल हो शांति काल, बिना गुप्तचर और जासूसी के कोई राज्य आज तक नहीं टिक सका है और न ही उसका विस्तार ही हुआ है । पुलिस का तो आधार ही जासूसी पर टिका है।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र राज शास्त्र की सबसे पुरानी पुस्तक है जिसमे राज, राज्य, राजा, प्रजा, प्रशासन, कर व्यवस्था,  आदि प्रशासन के विभिन्न अंग उपांगों के बारे में विशद रूप से लिखा गया है। उस पुस्तक में भी गुप्तचर व्यवस्था पर बहुत कुछ लिखा गया है। चाणक्य का गुप्तचर तँत्र बहुत ही सुव्यवस्थित और समर्थ था। बिना प्रतिद्वंद्वी के बारे में जाने कोई भी राजा न तो राज कर सकता है और न ही राज्य का विस्तार कर सकता है। चाणक्य के गुप्तचर तँत्र से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध की माताहारी तक पर्दे के पीछे रह कर सूचना एकत्र करने वालों का एक लंबा इतिहास रहा है। जो रोचक भी है। राजा को वहां मंत्रणा करनी चाहिये जहां कोई दीवार न हो। दीवारों के भी कान होते हैं, यह है तो एक मुहावरा ही बस लेकिन, दीवारों के कान तो सच मे नहीं होते पर दीवारों के पीछे किसी के कान हो सकते हैं ! यही इस मुहावरे का आशय है कि उस कान से बचा जाना चाहिये।

अब एक इस मैलवेयर के बारे में तकनीकी जानकारी विजय शुक्ल जो एक सायबर सुरक्षा के एक्सपर्ट हैं, द्वारा प्राप्त हुयी है पढें,
" हैकिंग का खतरा आज के युग का सबसे बड़ा चैलेन्ज है. हैकिंग से थोड़ी सी शरारत से लेकर व्यक्ति की जान, माल , देश की सुरक्षा तक को भयंकर खतरा हो सकता है. ताजा ताजा मार्केट में नया पेगासस आया है।.पेगासस नाम ग्रीक माइथोलोजी में एक पंखों वाले दैवीय घोड़े का नाम है, जो पेसिडोन नामक देवता की सन्तान है .
अगस्त 2016 में पहली बार इस स्पायवेयर  ने अपना पहला टारगेट एक मानवाधिकार एक्टिविस्ट को बनाने की कोशिश की थी।
पेगासस को इज़राइल की एक फर्म एनएस ग्रुप द्वारा विकसित किया गया है।

पेगासस हैकर को फोन के कैमरे, माइक्रोफोन, फाइलों, फोटो और यहां तक कि एन्क्रिप्टेड संदेशों और ईमेल तक पहुंच की अनुमति देता है। बहुत आसानी से. हैकर को आपके फोन को सिर्फ एक व्हाट्सएप्प कॉल ही करना होता है। आप कॉल रिसीव करो या न करो, आपकी मर्जी, पंखो वाले दैवीय अश्व महाराज आपके फोन में बैठकर आपके सभी मतलब सभी मेसेज, फोटो फलाना ढकाना सब अपने मालिक हैकर को बिना कोइ नागा किये समय समय पर भेजता रहेगा ।

व्हाट्सएप ने एनएसओ ग्रुप पर मुकदमा दायर किया है , इनके पास पेगासस के मारे सभी लोगों के नाम भी हैं । अब व्हाट्सएप और एक डिजिटल सिक्योरिटी फर्म सिटिजन लैब उन लोगों को अलर्ट मैसेज भेज रही है जो प्रभावित हुए हैं. आपको अलर्ट मेसेज नही आया , मतलब आप अभी तक बचे हो। "

इस खतरनाक वायरस पेगासस के बारे में एक और नयी बात पता चली है कि, एक व्यक्ति के व्हाट्सएप्प एकाउंट की निगरानी या जासूसी के लिये इस वायरस पर पचास लाख रुपये सालाना  व्यय आता है। अब सवाल यह उठता है कि इतनी बडी धनराशि भारत मे कौन, किसकी, जासूसी के करने के लिये व्यय कर रहा है और किसके कहने पर कर रहा है ? जासूसी भी किसी की अनवरत नहीं की जाती है क्योंकि यह भेद खुल जाने का खतरा रहता है। यह किसी खास डेटा के लिये या सूचना के लिये ही कुछ समय तक की जाती है।

जासूसी की बातें और उससे जुड़ी कहानियां बहुत रोचक होती हैं। दरअसल उसमे जो गोपन, आकस्मिकता और अब आगे क्या होगा की उत्कंठा भरी जिज्ञासा होती है वह मन को बांधे रखती है। कल से देश भर में हंगामा मचा है कि इजरायल ने कोई ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया है जो किसी के भी मोबाइल में घुस कर सारे डेटा उठा लेता है और मोबाइल वाले की जासूसी करता रहता है। ऐसी ही एक जासूसी के शिकार अरब के पत्रकार अदनान खशोगी हुये और जिनकी हत्या तक कर दी गयी।

कल ही मीडिया से पता लगा कि 1400 लोगो की जासूसी की गयी है। निश्चित ही ये महत्वपूर्ण व्यक्ति होंगे।  कुछ के नाम सार्वजनिक भी हुये हैं। जैसा कि ऊपर यह बात स्पष्ट हो गयी है कि, जासूसी करने वाला मालवेयर पेगासस, इजरायल की एक कम्पनी द्वारा विकसित किया गया है और वही बनाती भी है और फिर वह उसे सरकारों को बेच देती हैं। सरकारें उसका उपयोग किस काम मे करती हैं यह न तो उस कम्पनी को पता है और न उसका सिरदर्द है। वैसे ही जैसे बंदूक बनाने वाली फैक्ट्री ने बंदूक बना दिया और बेच दिया, अब यह बंदूक खरीदने वाले के ऊपर है कि वह उसका कैसे उपयोग करे। अब सरकार को यह बताना है कि उस पेगासस से किसने, किनकी, और क्यों जासूसी की गयी। कंपनी के मालिकों ने साफ कहा है कि उन्होंने यह सॉफ्टवेयर सरकारों को ही बेचा है। फिर  सरकार व्हाट्सएप्प के मालिकों से किस बात की पूछ ताछ कर रही है ? 

व्हाट्सएप्प अपने ग्राहकों की सुरक्षा नहीं कर पाया यह उसकीं विफलता है। पर उस स्पायवेयर से घुसपैठ कर के जासूसी किसने और किसके हित मे की है यह सरकार को बताना है। यह भी एक खबर आज आयी है कि सरकार डेटा सुरक्षा को मजबूत करने के लिये एक सख्त कानून लाने जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण ने इस जासूसी मामले के खुलासे के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर के सम्पूर्ण प्रकरण की जांच कराने की मांग करने की बात कही है। जब पीआईएल दायर हो तो सही स्थिति स्पष्ट होगी। सरकार भी जांच कराने की बात कर रही है। हालांकि सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जब आधार पर निजता के अधिकार पर बहस चल रही थी तो यह तर्क दिया था कि व्यक्ति के शरीर पर भी राज्य का अधिकार है। हालांकि इस अजीबोगरीब तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने माना नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार की बात को माना था।

निजता सुरक्षित रहनी चाहिये। उस पर राज्य का दखल तब तक नहीं होना चाहिये जब तक कि कोई अपराध या उस निजता के अधिकार के दुरुपयोग की बात सरकार के संज्ञान में न आवे। वैसे हमे अपने डेटा के लिये चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि आधार कार्ड के संबंध में सुनवाई करते हुये सरकार ने यह भी सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उसने 12 फीट ऊंचे दीवार से सारे डेटा सुरक्षित रख रखे हैं। सरकार ने भले ही निश्चित कर दिया हो, पर मैं तो आधार की एक फोटो कॉपी बराबर अपने साथ रखता हूँ,  ताकि, ना जाने किस भेष में नारायण मिल जाँय !

एक बात मेरे समझ मे आज तक नहीं आयी थी कि आखिर लोगों के फोन नम्बर, फ़ोटो, आदि लेकर कोई करेगा क्या और उसे कोई इतने अधिक धन देकर खरीदेगा भी क्यों ? यह सवाल उन मित्रों से है जो सूचना तकनीक के विद्वान हैं । लेकिन अब धीरे धीरे पता लग रहा है कि यह डेटा भी एक व्यापार है और बहुत बड़ा व्यापार है। इससे मार्केटिंग के धुरंधर, लोगों की आदतें, क्रयशक्ति, क्रयइच्छा, रुचि आदत आदि का व्यापक अध्ययन करते हैं और फिर अपने उत्पाद की उसी प्रकार मार्केटिंग भी करते हैं। यह मार्केटिंग स्ट्रेटजी कहलाती है। पूंजीवाद ने घर बाहर, खानपान, लिखना पढ़ना, सोना उठना, मनोरंजन, धर्म, कर्मकांड, पूजापाठ, गीत संगीत, सिनेमा सीरियल, शुभकामनाएं और बधाई संदेश, आदि सब कुछ बाजार बना दिया है। लाभ पर आधारित एक चमकदार पर हृदयहीन बाज़ार । बिलकुल रिसेप्शनिस्ट की ओढ़ी हुयी मुस्कुराहट की तरह जो बस एक औपचारिकता की तरह।

हम हैं मताये कूचा ए बाज़ार की तरह,
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह !

तमाम जासूसी की खबरों के बीच मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर याद आया है, जब आपने इतनी धैर्य से यह लेख पढ़ ही लिया हैं तो यह शेर भी पढ़ लें ।

चंद तस्वीर ए बुतां, चंद हसीनों के खतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामां निकला !!

अब कोई हुक़ूमत क्या जासूसी करेगी इनकी ? इस शेर पर भी दो मत हैं। एक मित्र का कहना है कि यह शेर किन्ही बज़्म अकबराबादी का है और एक मित्र का कहना है कि यह ग़ालिब का है। मैं भी यही जासूसी अभी कर रहा हूँ कि, आखिर यह शेर है किसका, जिसके घर मे बस कुछ तस्वीर ए बुतां हैं और कुछ हसीनों के खतूत हैं। आप को भी पता चले तो बताइएगा।

बहरहाल, डेटा चोरी का यह मसला  बहुत ही गंभीर है। इसके तार व्यक्ति की निजी सुरक्षा से लेकर देश की सुरक्षा तक से जुड़ते हैं। देश से जुड़े बहुत से आंकड़े, सूचनाएं गोपनीय होती हैं और वह सब आजकल कम्प्यूटर में ही रखी जाती हैं। जिस तरह से दिनोदिन तकनीकी प्रगति होती जा रही है ऐसे दस्तावेज और भी अधिक सुरक्षित रखे जाने की ज़रूरत है। सायबर अपराध एक नया विषय है और अभी उसकी जांच के लिये पुलिस तंत्र भी बहुत अधिक प्रशिक्षित और दक्ष नहीं है। अब जाकर सरकार ने इधर इस विंदु पर  भी गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया है।

© विजय शंकर सिंह 

No comments:

Post a Comment