Thursday 31 October 2013

सरदार पटेल - एक विनम्र स्मरण


सरदार पटेल को सरदार नाम , महात्मा गांधी ने दिया था .वारदोली में किसान आंदोलन का सफलता पूर्वक नेतृत्व करने के कारण गांधी बहुत प्रभावित थे .उन्होंने इस सत्याग्रह में इनकी अद्भुत भूमिका को देखते हुए इन्हे सरदार के नाम से सम्बोधित किया जो बाद में उनका पर्याय बन गया .

आज़ादी के बाद जब देश बंटवारे से उत्पन्न भयानक और हैवानियत भरे दंगों से गुज़र रहा था, तो उस समय पटेल ने अपनी अद्भुत प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया था . उसी समय 600 देसी रियासतों का प्रश्न सामने था . अंग्रेज़ों ने आज़ाद करते समय इन देसी रियासतों को यह विकल्प दिया था कि वह या तो भारत में शामिल हो जाएँ या पाकिस्तान में या स्वतंत्र हो जाएँ . जो रियासतें बहुत छोटी थीं और अक्षम थी वे तो अपने अपने भौगोलिक स्थिति के कारण भारत या पाकिस्तान में शामिल हो  गयीं .  .

किन्तु बड़ी रियासतें जैसे हैदराबाद , जूनागढ़ , कश्मीर , त्रावणकोर आदि रियासतों को भारत में शामिल करने का भार सरदार पटेल ने अपने कंधों पर लिया . तीन रियासतें समस्या बनीं . जूनागढ़ , कश्मीर और हैदराबाद . . जूनागढ़ के दीवान , ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के पिता  थे . वहाँ के नवाब पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे . क्यों कि जूनागढ़ सिंध से लगा हुआ था . लेकिन वहाँ की  जनता के विरोध और विद्रोह के कारण नवाब और दीवान दोनों पाकिस्तान भाग गए . और इस रियासत का भारत में विलय हो गया .

ऐसे ही हैदराबाद का निज़ाम पहले पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था , पर अपनी भौगोलिक स्थिति से मज़बूर था तो उस ने  खुद आज़ाद रहने का निश्चय  किया . पटेल ने एक दृढ और तत्काल निर्णय लिया  हैदराबाद में रज़ाकारों और स्थानीय लोगों में संघर्ष हुआ और हलकी फुलकी सैन्य कार्यवाही के बाद इसका विलय भारत संघ में हो गया . इस सैन्य कार्यवाही में उत्तर प्रदेश कि पी सी की भी भूमिका थी . यह विलय पटेल के अद्भुत प्रशासनिक कौशल का एक उदाहरण है

कश्मीर का मामला थोड़ा पेचीदा था . वहाँ के महाराजा हरी सिंह कश्मीर के आकार , भौगोलिक स्थिति को देखते हुए खुद आज़ाद रहना चाहते थे . पर वहाँ मुस्लिम बहुल आबादी के कारण पाकिस्तान की निगाह उस पर लगी थी .महाराजा के तुरंत निर्णय लेने के कारण पाकिस्तान ने सीमावर्ती कबायलियों को उकसा कर उनकी आड़ में कश्मीर पर हमला कर दिया . जब पाकिस्तानी सेना श्रीनगर तक गयी तो महाराज जम्मू भाग गए और उन्होंने भारत से सैनिक सहायता माँगी . पटेल ने सहायता के पहले भारत में विलय कि शर्त रखी  शेख अब्दुल्ला उस समय कश्मीर के प्रधान मंत्री थे . भारत में विलय कि शर्त मानते ही भारत ने सैन्य बल रवाना किया और पाकिस्तानी सेना को वहाँ से बाहर निकालना प्रारम्भ  किया . उस समय सेना का कमांडर इन चीफ अँगरेज़ था , उसने एक सीमा के बाद बढ़ने से इंकार कर दिया . इसी बीच नेहरू ने इस मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सुलझाने कि बात कह कर इसे उलझा दिया . इसके बाद युद्ध विराम हो गया . युद्ध विराम के समय जो सेनाएं जहां थी , वहीं रुक गयीं और वह स्थान नियंत्रण रेखा एल सी कहलाया .पाकिस्तान के पास गिलगित रहा जो  सामरिक  दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था . इन्ही में से उसने कुछ क्षेत्र अक्साई चिन , चीन को दे दिया . तभी से यह समस्या बनी है . पटेल नेहरू के कारन कश्मीर पर ध्यान नहीं दे सके .कश्मीरी होने के कारण नेहरू का कश्मीर से भावनात्मक लगाव था .यह समस्या आज भी भारत पाक झगडे का मुख्य कारण है .

नेहरू और पटेल में अनेक मसलों पर .मतभेद थे . दोनों के विभिन्न विषयों पर ये मतभेद उनके पत्रों के आधार पर प्रकाशित एक पुस्तक से स्पष्ट होते हैं . मतभेद तो थे ही पर शालीनता और परस्पर सम्मान का कोई अभाव नहीं था . .यह दोनों कि महानता थी . आज राजनितिक मतभेदों के वातावरण में जिन शब्दावली से हम आये दिन रु रु होते हैं वह हमारे गिरते मानसिक स्तर की और इंगित करता है .

सरदार सच में सरदार थे . मितभाषी और अदम्य इच्छा शक्ति से परिपूर्ण इस महान देश भक्त ने जो किया उसका प्रमाण और परिणाम हमारा मानचित्र है .आज उनकी जन्म तिथि है , ईश्वर ने उन्हें आज़ादी के बाद जल्दी उठा लिया और हम इस महान  नेता के नेतृत्व से वंचित रह गए .

गुजरात में नर्मदा के तट पर उनकी एक भव्य और विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा के निर्माण का शिलान्यास हुआ है  एकता की प्रतिमा के बनाये जाने का कोई विरोध नहीं है .किन्तु यह प्रतीक केवल प्रतीक ही रहे देश की  एकता और अखण्डता को बनाये रखने के लिए अगर लोहे की भुजाएं चाहिए तो समुन्दर सा दिल भी चाहिए .

इस अवसर पर हम सरदार बल्लभ भाई पटेल का स्मरण करें और मनसा वाचा कर्मणा ऐसा एक भी कृत्य करें  जिस से देश का सामाजिक ताना बाना टूटे . देश में एका और शान्ति बनी रहे सरदार के प्रति यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी .  






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