दिल्ली पुलिस की आई पी एस अधिकारी मोनिका भारद्वाज की डॉ नारंग की हत्या के बाद जारी ट्वीट पर कुछ मित्र सवाल जवाब उठा रहे हैं । कुछ का कहना है कि,
1. यह ट्वीट एक पुलिस अधिकारी को नहीं करना चाहिए, यह उसके द्वारा अधिकारों का अतिक्रमण है ।
2. कुछ का कहना है यह ट्वीट तथ्यात्मक रूप से गलत है ।
3. यह ट्वीट गुमराह करने वाला है और घटना को दबाने के उद्देश्य से किया गया है ।
मैं एक पुलिस अधिकारी के अनुभव और कर्तव्य तथा दायित्व के सन्दर्भ में इन आक्षेपों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करूँगा ।
पुलिस अधिकारी का मौलिक कर्तव्य यह है कि उसके क्षेत्राधिकार में क़ानून व्यवस्था की स्थिति ठीक बनी रहे और अपराध कम से कम हों और जो भी हों वह जल्दी से जल्दी खुल जाए और दोषी पकडे जाए। उस रात जब डॉ नारंग की हत्या झुग्गी झोपड़ी वालों ने कर दी तो उस समय सोशल मिडिया पर यही प्रचारित हुआ कि यह एक साम्प्रदायिक घटना है और इसका तात्कालिक कारण भारत की बांगला देश पर विजय है । हमलावर बांग्लादेशी थे, और वे अपने मूल देश की पराजय से उत्तेजित थे और उन्होंने इसका बदला लेने के लिए यह काम किया । सुबह तक दिल्ली में क्या हुआ यह तो मैं नहीं जानता पर सोशल मिडिया पर सीधे सीधे हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिकता की बात होने लगी। तभी मोनिका का वह ट्वीट आ गया जिसमें उन्होंने इसे साम्प्रादायिक घटना न माने जाने की बात की और गिरफ्तार 9 अभियुक्तों का ब्रेक अप दे दिया जिसमे हिन्दू मुसलमान दोनों थे । बाद में दिल्ली पुलिस ने भी इसे सांप्रदायिक घटना मानने से इनकार कर रोड रेज़ कहा । मोनिका का वह ट्वीट बहुत शेयर भी हुआ, और जब सोशल मिडिया में घटना का यह पक्ष भी सामने आया तो तनाव भी कम हुआ और दिल्ली का वातावरण भी शांत रहा ।
मोनिका का यह कदम क़ानून और शान्ति व्यवस्था की दृष्टि से न केवल सराहनीय रहा बल्कि उन्होंने एक बड़ा खतरा बचाया । एक मित्र ने कहा कि क्या उनका ट्वीट करना उचित था ? क्या यह क़ानून के दायरे में है ? मेरे वे मित्र जिन्होंने दंगा अपनी नौकरी के दौरान झेला है वे इसकी गंभीरता को भली भाँति समझ सकती हैं । अधिकतर दंगे अफवाहों और गलत फ़हमियों के कारण फैलते हैं और ये अफवाहें फैलायी जाती हैं और गलत फ़हमियों पैदा की जाती हैं । जिनको इन दंगों से लाभ होता है वे ऐसा कृत्य करते हैं । वे दंगे फैला कर फिर क़ानून की बातें करते हैं और क़ानून की आड़ लेते हैं । इन अफवाहों से निपटने के लिए आवश्यक है कि इन का न सिर्फ जोरदारी से खंडन किया जाय बल्कि सारे तथ्यों को तत्काल प्रेस के माध्यम से जनता के सामने रखा जाय । पहले सोशल मिडिया नहीं था, अफवाहें लैंड लाइन के फोन या कानाफूँसी से फैलायी जाती थी । और पुलिस या प्रशासन इनका खंडन प्रेस कॉन्फरेंस या प्रेस विज्ञप्ति के ज़रिये करता था । आज भी बड़ी घटना होने पर प्रदेश स्तर पर डीजी और प्रमुख सचिव प्रेस को तथ्य बतातें हैं और जनपद स्तर पर यही काम जिला मजिस्ट्रेट और एस पी करते हैं । कभी कभी प्रेस का सहयोग भी माँगा जाता है, और प्रेस अपना सहयोग देते हुए नकारात्मक रिपोर्टिंग से बचता भी है । क्यों कि शहर का अमन चैन बना रहे यह सबके लिए महत्वपूर्ण है । अब जब फेस बुक, ट्वीटर, और व्हाट्सएप्प जैसे त्वरित जन संचार के साधन उपलब्ध हैं तो, इनका उपयोग किए जाने में कोई बुराई नहीं है बल्कि इनका उपयोग किया जाना चाहिए ।मोनिका ने यही किया है और उनका यह कृत्य गैर ज़िम्मेदाराना बिलकुल नहीं है ।
कुछ मित्रों का कहना है कि यह ट्वीट तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है। मुझे यह पता नहीं कि पुलिस के अतिरिक्त तफ्तीश करने का अधिकार कुछ मित्रों को कैसे मिल गया और किसने दे दिया । अगर आप के पास तथ्य हैं और उसके समर्थन में सुबूत हैं तो दिल्ली पुलिस को दे । सोशल मिडिया पर भले ही यह सुबूत और तथ्य पोस्ट करे पर दिल्ली पुलिस को भी दे ।
यह ट्वीट गुमराह करने वाला नहीं है बल्कि गुमराह होने वालों को रोकने के लिए है । आखिर अगर दंगा होता तो किसकी जन धन हानि होती ? आज डॉ नारंग की हत्या हुयी है अगर इसी बात पर दंगा भडकता तो, नारंग जैसे लोग जो उस पॉश कॉलोनी में रहते उनके घर ही लुटते और वह लोग भी हताहत होते । पॉश कॉलोनी के बाशिंदे तब सड़क पर घर से निकलते हैं जब वे यह देख लेते है कि पुलिस आ गयी है । और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले आपराधिक तत्व ऐसी अफवाहों और तनावों का पूरा फायदा उठाते हैं ।डॉ नारंग पीते जाते रहे क्यों नहीं उनके पड़ोसी निकल कर सामने आये या 100 नम्बर पर पुलिस को खबर किया ? यह महानगरों की अपार्टमेंटल और डिजिटल संस्कृति है ।
आखिर दंगे से फायदा किसको होता है ?
जब समाज का ताना बाना मसकता है तो समाज में वैमनस्य फैलता है तो उसका लाभ कौन उठाता है ?
कौन फ़र्ज़ी सहानुभूति के दो बोल बोल कर और उसे प्रचारित कर के खुद को सबके सामने अपनी अहमियत बनाये रखता है ?
ज़रा रू ब रू होइएगा इन सवालों से तो पाइएगा कि , बिल्लियों को आपस में लड़ा कर उनकी रोटी बन्दर ही खा जाता है !
ऐसे बंदरों की मनोवृत्ति और कुटिलता से बच के रहिये । सामाजिक सद्भाव बनाये रखना ही सबसे बड़ी देश भक्ति है । नारा लगाना सिर्फ दिखावा है ।
( विजय शंकर सिंह )