1928 के एमस्टर्डम ओलंपिक खेलों में भारत को पहली बार हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा थे. ये अलग बात है कि उनका व्यक्तित्व और योगदान खेल के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण है। 1928 में ही वे आईसीएस की परीक्षा में भी सफल हुये थे।
1928 के ओलंपिक टीम में एक विवाद भी हुआ था, जिसके कारण जयपाल मुंडा ने टीम को छोड़ दिया। यह विवाद रंगभेद का था। जब वे कप्तान बनाये गए तब इसे लेकर अंग्रेज खिलाड़ियों में रोष था और उनका विरोध शुरू हो गया। इस विरोध के कारण उन्होंने क्वार्टर फाइनल में टीम की कप्तानी छोड़ दी और खेल से अलग हो गए, तब अंग्रेज खिलाड़ी, एरिक पिंनिंगर को हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया।
जयपाल सिंह मुंडा का जन्म रांची जिले के पास उसी खूंटी जिले में हुआ था, जिसमें आदिवासियों के भगवान माने जाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। जयपाल सिंह का जन्म बिरसा मुंडा की मृत्यु के तीन साल बाद, 3 जनवरी, 1903 को तपकरा गांव में हुआ था।
जयपाल सिंह मुंडा ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और वे हॉकी के उत्कृष्ट खिलाड़ी थे। उनकी प्रतिभा के कारण, उन्हें 1928 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया। मरंग गोमके (ग्रेट लीडर) के नाम से प्रख्यात मुंडा ने 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन किया।
यहां यह बात भी बतानी जरूरी है कि हॉकी टीम में चयन के बदले उन्हें आईसीएस छोड़नी पड़ गई थी. बाद में हालांकि, उनकी प्रोबेशन अवधि बढ़ाकर उन्हें फिर से आईसीएस में शामिल होने का मौका दिया गया था, लेकिन इस प्रस्ताव को उन्होंने अपना अपमान मानकर ठुकरा दिया था।
मध्य-पूर्वी भारत में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए उन्होंने अलग आदिवासी राज्य बनाने की मांग की. उनके प्रस्तावित राज्य में वर्तमान झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ हिस्से शामिल थे।
हालांकि, करीब साठ साल बाद वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के निर्माण के साथ उनकी मांग आंशिक रूप से पूरी हुई, लेकिन तब तक आदवासियों की संख्या राज्य में घटकर करीब 26 फीसदी बची, जबकि 1951 में ये आबादी 51 फीसदी हुआ करती थी।
( यह तथ्य द प्रिंट और द हिन्दू में छपे लेखों से साभार लिए गए हैं। )
( विजय शंकर सिंह )
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