Sunday, 22 August 2021

अवधेश पांडेय - गांधीजी की माउंटबेटन से मुलाकात (3)

गांधीजी ने  आखिर क्यों कहा कि लार्ड माउंटबेटन भारत के गवर्नर जनरल  बने रहेंगे।

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गांधीजी की माउंटबेटन से मुलाकात (3)

पिछली दो कड़ियों में मैंने भारत विभाजन को लेकर माउंटबेटन द्वारा गांधीजी के सामने रखे गए तर्कों को आप सभी के समक्ष रखा था। भारत का विभाजन भी मकड़ी की तरह एक उलझा हुआ जाला है इस जाले में जो महीन धागे हैं उनसे आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि कौन सा धागा कहाँ से आया और कहां चला गया। ठीक इसी प्रकार विभाजन में  किसने क्या भूमिका निभाई और कहां खिसक लिया आप अंदाजा नहीं लगा सकते।  लोगों में अफवाह की शक्ल में 70 सालों से एक छिछली समझ है कि गांधीजी चाहते तो भारत का विभाजन रुक सकता था। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि जब भारत में महात्मा गांधी अंग्रेजों से लड़ रहे थे उस समय तक साम्प्रदायिक ताकतें एक दूसरे के प्रति इतना जहर भर चुकी थी कि विभाजन एक कड़वी सच्चाई बन गया था।   

लोगों का कहना है  कि गांधीजी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा फिर विभाजन कैसे हो गया? गांधीजी से नफरत करने वालों का मानना है कि गांधी उसी समय मर क्यों नहीं गए और अगर जिंदा रहे तो यह बड़ी अफसोसजनक बात है। हमें इस ओछेपन से बाहर निकलकर उस दौर में झांकने की निष्पक्ष कोशिश करनी चाहिए। 1947 में गांधी क्या सोच रहे थे क्या लिख रहे थे और क्या बोल रहे थे इसे जानने के लिए हम किसी के पास न जाकर सीधे गांधी के पास जाएं और गांधी  मौजूद हैं आपके हर प्रश्न का उत्तर देने के लिए। 

गांधीजी ने विभाजन रोकने के लिए अपनी ऐड़ी चोटी की पूरी ताकत झोंक दी। वायसराय से दो दौर की बातचीत के बाद गांधी इस नतीजे पर पहुंचते हैं अब विभाजन उनकी लाश पर भी नहीं रूकेगा। ऐसी स्थिति में कोई अंतिम उपाय अगर वे करते तो उनकी लाश की जगह हजारों लाशें बिछ जातीं और कदम उल्टे पड़ जाते। उन्होंने कहा भी  कि मैं विभाजन के बिल्कुल ही खिलाफ था लेकिन जब राजगोपालाचारी मेरे पास प्रस्ताव का फार्मूला लेकर आये तो मैं तुरन्त सहमत हो गया। क्योंकि बंटबारे का फैसला हो चुका था और इसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जब पूर्वी पाकिस्तान (बांग्ला देश)  के खुलना के कांग्रेसी उनसे चिठ्ठी लिखकर पूछते है कि बापू यहां जब 14 अगस्त की रात को पाकिस्तान का झंडा फहराया जाएगा तब हमें क्या करना चाहिए। और गांधी कहते हैं कि आपको पाकिस्तान के झंडे का अभिवादन करना चाहिए। क्योंकि अब हमें इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए। वे अंग्रेजी में लिखते हैं कि An award is an award wheather we like it or not like it. इसका हिंदी में अर्थ है कि
एक समझौता हो चुका है हमें इस समझौते की इज्जत करनी चाहिए भले हम इसे पसंद करें या न करें। 

गांधीजी ने यह भी कहा कि आजाद भारत के गवर्नर जनरल माउंटबेटन ही रहेंगे। इस पर उनसे पूछा जाता है  कि  " मुहम्मद अली जिन्नाह अब पाकिस्तान के गवर्नर जनरल हैं। लेकिन भारत में लार्ड माउंटबेटन गवर्नर जनरल क्यों रहेंगे?" इस पर  गांधी ने कहा हां हमने ये फैसला किया है कि " लार्ड माउंटबेटन को अपना गवर्नर जनरल बनाएंगे। लेकिन ध्यान रहे कि ये फैसला हमने किया है। अभी तक लार्ड माउंटबेटन वायसराय के रूप में ब्रिटिश हुकूमत के नुमाइंदे थे लेकिन अब वो हमारे नौकर हैं। हमने उन्हें गवर्नर जनरल बहाल किया है। वे अंग्रेजी में कहते हैं कि  Now Mountbatten is our servent,and he is accepted being as a servent." 

गांधीजी के इस दूरदर्शी सोच पर मुहर लगाते हुए बाद में नेहरू ने कहा कि बापू के इस कदम में  एक गहरा अर्थ और संदेश इसमें छिपा हुआ है कि जो अब तक हमारा शासक था वह अब हमारी सलाह पर हमारे सेवक के रूप में हमारे हितों के अनुसार काम करने के लिए तैयार है। नेहरू ने कहा कि बापू का अटल सिद्धांत था कि हम सभी के अंदर एक दैवीय अंश छिपा हुआ है। जरूरत उस दैवीय अंश के दीपक की लौ को उभारने वाले और लंबे समय तक उस लौ को बनाये रखने वाले हाथों की है। कई उंगलियां ऐसी होती हैं जो दीपक की लौ को बुझा देती हैं। बापू ने भारत माता की इस लौ को अपने कोमल हाथों से अपनी अंतिम सांस तक सहेजा।

1947 के गांधी को जब आप पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि वे अंतिम वर्ष में क्या कह रहे हैं । उनसे प्रश्न किया जाता है कि " आप मोक्ष की बात करते हैं  तो आपका यह मोक्ष क्या व्यक्ति के लिए है या समाज के लिए ?" और गांधी उत्तर देते हैं कि, "मुझमें समाज की दिलचस्पी क्यों होगी? समाज मुझे वृक्ष समझकर  फल चाहेगा । लेकिन वृक्ष की की जड़ यदि मजबूत नहीं रहेगी तो वह फल नहीं दे पायेगा। इसलिए मुझे हिमालय पर तपस्या करने की जरूरत नहीं।  मेरा मोक्ष इसी बात में है कि मैं अपनी जड़ें मजबूत कर समाज को फल दे सकूं। मेरी रुचि किसी परम् सत्ता में विलीन होने की नहीं है।" 

लेकिन हम जानते है कि गांधी ऐसी नफरत से लड़ रहे थे जो उनसे भी कहीं अधिक बड़ी थी। गांधी को पता था कि उस नफरत के आगे उनकी ताकत बहुत कम है, फिर भी वे अंतिम सांस तक  लड़े। क्योंकि उनका कहना था कि अगर नफरत सच्ची है तो मेरी लड़ाई भी उतनी ही सच्ची है। अगर मेरी यह लड़ाई सच्ची है तो तो इसे भी अपने वजूद के साथ व्यक्तित्व के साथ  सामने लाना होगा।

इटली की नाटककार  हेलन सिकसू अपनी किताब में   लिखती हैं कि  " यह कहा जाता है कि  भारत में लोग  गांधी से प्रेम करते हैं, उनका आदर करते हैं। सच्चाई ठीक इसके उलट है। भारत में उच्च वर्ग के अधिकांश  लोग गांधी से नफरत करते हैं।उस नफरत का कारण यह है कि गांधी ने उन लोगों को जिन्हें दलित जाति कहते हैं, गटर से निकाल कर बराबरी की इज्जत और सम्मान से रहने का अधिकार दिया। उन्हें वोट देने का अधिकार दिया।  चूंकि उन्होंने  ऐसा किया तो उनके खिलाफ नफरत उच्च जाति के लोगों के दिमाग में धंस गयी। इसलिए गांधी के खिलाफ जो नफरत थी, जो घृणा थी उसका एक सिरा मुस्लिम विरोध से जुड़ता है तो दूसरा सिरा  दलित विरोध से भी जुड़ता है।"  
( समाप्त )

© अवधेश पांडे
15 जून 2021

गांधी की माउंटबेटन से मुलाक़ात (3)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/08/2_21.html
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