सोमवार 15 मार्च को हमने ग़ाज़ियाबाद रेलवे स्टेशन से 08310 यानी जम्मू तवी-सम्बल पुर स्पेशल ट्रेन पकड़ी थी। कोरोना काल के पहले जब तक यह स्पेशल नहीं थी, इसे मूरी एक्सप्रेस कहते थे। निहायत ही थर्ड क्लास ट्रेन होती थी। यूँ भी जिन ट्रेन का शुरुआती नंबर 5 या 8 हो उनकी स्पीड का औसत 45 किमी प्रति घंटा होता है। इसका तो रूट भी क़रीब ढाई हज़ार किमी का है इसलिए अपने गंतव्य तक पहुँचने में यह क़रीब 50 घंटे का समय लेती है। लेकिन जब इसकी टाइमिंग चेक की तो एक हफ़्ते में एक भी दिन यह लेट नहीं दिखी। ग़ाज़ियाबाद यह अपने निर्धारित समय सुबह 7.26 पर आई और 7.28 पर चली भी। साफ़-सफ़ाई भी ठीक और टॉयलेट्स भी साफ़-सुथरे। मुझे लगा कि कुछ भी हो मोदी सरकार ने ट्रेन का टाइम-टेबल तो दुरुस्त किया है। वर्ना पहले इस तरह की ट्रेनें आठ से दस घंटे लेट चला करती थीं। अलीगढ़ भी यह ट्रेन वक्त से पहले पहुँची और वहाँ पर हम लोगों के मित्र श्री जीशान अहमद नाश्ते के लिए पूरी-सब्ज़ी, रायता तथा लस्सी ले आए और लंच तथा डिनर भी पैक करवा कर दे गए। यहाँ स्टॉपेज़ कुल दो मिनट का है, परंतु ट्रेन 15 मिनट पहले पहुँच गई थी। इसके बाद टूंडला, शिकोहाबाद, इटावा, झींझक, कानपुर और फ़तेहपुर रुकती हुई ट्रेन इलाहाबाद (प्रयागराज) आधा घंटा पहले पहुँच गई। वहाँ पर रेलवे पुलिस बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने चाय, समोसे और बिस्कुट भिजवा दिए। जो हम दोनों लोगों के लिए बहुत अधिक थे, इसलिए हमने सहयात्रियों में बाँट दिए। इसका लाभ यह हुआ कि हमारी साइड अपर की बर्थ में वे यात्री चले गए, जिनकी बर्थ मेन कूपे में लोअर थी। अब हमें ऊपर-नीचे नहीं करना पड़ा। इसके बाद मेजा रोड ट्रेन रुकी फिर विंध्याचल और तत्पश्चात मिर्ज़ा पुर। यहाँ तक गाड़ी फ़र्राटे से चली और हर जगह समय से पूर्व पहुँची।
हमारे सहयात्री टंडन जी, जो रेलवे में इंजीनियर थे, ने बताया कि अब ट्रेन लेट होनी शुरू होगी। चूँकि हमारा गंतव्य लातेहार रात पौने तीन पर आने वाला था इसलिए हम और साँसत में पड़ गए। हमने पूछा क्यों लेट होगी? उन्होंने बताया कि एक तो आगे गढ़वा रोड तक सिंगल ट्रैक है, ऊपर से ट्रेन अब कोयिलरी कॉरिडोर में प्रवेश कर गई है। इसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि अब ट्रैक कोयिलरी का है। यहाँ सवारी ट्रेनों से अधिक तरजीह कोयले से लदी माल गाड़ियों को मिलती है। अब इन गुड्स ट्रेनों को निकालने के लिए इसे रोकते रहेंगे। और यही हुआ भी चुनार तक पहुँचने में डेढ़ घंटे लगे। टंडन जी ने बताया कि कि DFC (डेडिकेटेड फ़्रेट कॉरिडोर) बन जाने के बाद गुड्स ट्रेनों के लिए अलग पटरियाँ होंगी। वे फिर इन पटरियों पर नहीं दौड़ेंगी न सवारी गाड़ी के चक्कर में वे लेट होंगी। अभी तो किसी भी सूनसान स्टेशन पर उन्हें खड़ा कर दिया जाता है और उनके ड्राइवर व गार्ड भारी शीत व गर्मी ट्रेन में अकेले बैठे रहते हैं। माल राम भरोसे रहता है। कोई डब्बों में घुस कर माल ले जाए तो ले जाए। जबकि रेलवे को कमाई इन गुड्स ट्रेनों से ही होती है। सवारी गाड़ी में तो भारी ताम-झाम रहता है। और किराया बहुत कम। उसमें भी लाखों लोग फ़्री सेवाएँ लेते हैं, सब्सिडी लेते हैं। ऊपर से हर सवारी गाड़ी के हर कोच में चार टॉयलेट्स, बिजली-पानी की व्यवस्था, टीटीई, आरपीएफ और जीआरपी के लोग। हर स्टेशन पर ट्रेन रोको, चलाओ। किंतु मालगाड़ियों में ड्राइवर व गार्ड के लिए भी टॉयलेट्स नहीं होता। इसके अलावा माल-भाड़ा में कोई छूट नहीं। इसलिए अब उनका रूट अलग होगा।
अब गुड्स ट्रेनों के लिए जो DFC कॉरिडोर बनेंगे, वे दो होंगे, एक ईस्टर्न कॉरिडोर और दूसरा वेस्टर्न कॉरिडोर। कोलकाता के पास दानकुनी से लुधियाना तक के रूट को ईस्टर्न कॉरिडोर कहा जाएगा और ग़ाज़ियाबाद के समीप दादरी से मुंबई तक के लिए वेस्टर्न फ़्रेट कॉरिडोर बन रहा है। इन पर गुड्स ट्रेनें सौ की स्पीड पर दौड़ेंगी। वह भी 160 डिब्बों वाली डबल डेकर। इनके स्टेशन भी अलग होंगे, जिनके प्लेटफ़ॉर्म दो-दो किमी लंबे होंगे। ताकि माल से लदे कंटेनर की लोडिंग, अनलोडिंग में दिक़्क़त न हो। इन ट्रेनों को खींचने के लिए WAG-12 इंजिन लगेंगे और सपोर्ट के लिए इन गुड्स ट्रेनों के बीच में एक नॉर्मल इंजिन भी रहेगा। इन ट्रेनों के संचालन के लिए इलाहाबाद में एक सिग्नलिंग सेंटर होगा। जो दोनों कॉरिडोर पर दौड़ रही गुड्स ट्रेनों को संचालित करेगा।अब जो नई बात होगी, वह होगी लॉजिस्टिक क्षेत्र में धड़ाधड रोज़गार पैदा होंगे।
चुनार के बाद सोनभद्र और फिर रात साढ़े ग्यारह बजे चोपन आया। वहाँ पर अपने मित्र अजय श्रीवास्तव डिनर ले आए। जबकि डिनर हम ले चुके थे। लेकिन इतनी रात को कोई आठ किमी बाइक चला कर आए, उसे वापस करना कितना ख़राब लगता। वे डिनर ही नहीं एक डिब्बा चमचम भी लाए। हमने इस भोजन को सुबह के लिए सहेज लिया। इसके बाद रेणुकूट और फिर तीन स्टेशन बाद रात ढाई बजे गढ़वा आया और 15 मिनट बाद गढ़वा रोड। वहाँ पर मित्र कुमार नयन आ गए। वे चाय तो लाए ही, काजू-कतली का एक डिब्बा दे गए। फिर आया डाल्टन गंज (जिसे अब मेदिनी नगर का नाम मिला है) और यहाँ पाँच मिनट गाड़ी रुकी। अगले स्टेशन पर दस मिनट ट्रेन रुकी और आधा घंटे बाद सुबह साढ़े चार बजे ट्रेन लातेहार पहुँची। स्टेशन पर ही वहाँ के डीसी (कलेक्टर या ज़िलाधिकारी) द्वारा भेजा गया ड्राइवर मौजूद था। वह सामान लेकर बाहर खड़ी बलेरो गाड़ी तक आया। हम बैठे और वहाँ से आठ किमी दूर लातेहार शहर में स्थित सर्किट हाउस में पहुँचे, तब तक पाँच बज चुके थे। वहाँ के केयर टेकर ने फ़ौरन दो सजे (पूरी तरह सैनीटाइज्ड किए गए) दो सुइट खोले। हम दोनों अपने-अपने सुइट में जाकर पसर गए।
(बाक़ी अगली किस्त में)
© शंभूनाथ शुक्ल
#vss
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