Wednesday, 25 August 2021

प्रवीण झा - भारतीय पुनर्जागरण का इतिहास - एक (14)


अब तीन महिलाओं की कथा लिखता हूँ। उनमें भी माइकल मधुसूदन दत्त से ईश्वरचंद्र विद्यासागर के रूप मिल सकते हैं, लेकिन सनद रहे कि ये उन्नीसवीं सदी की भारतीय लड़कियाँ थी।

                       ( तरुदत्त )

पहली लड़की वह थी, जो मात्र इक्कीस वर्ष में चल बसी, और उन्हें जॉन कीट्स के समकक्ष कहा गया। मैंने उनकी विष्णु पुराण पर लिखी दो अंग्रेज़ी कविताएँ पढ़ी। यह नहीं कह सकता कि वह कीट्स के कितनी करीब थी, लेकिन इक्कीस वर्ष के जीवन में बहुत कुछ रचा भी और जिया भी। 

तरु दत्त (1856-77) बंगाल के उन संभ्रांत परिवारों में से थी, जो लाट साहेबों के साथ उठते-बैठते उनकी तरह ही बनने लगे। ईसाई धर्म स्वीकार लिया। जिस समय भारतीय पुरुष भी सात समंदर पार जाने से हिचकते, उस समय वह अपनी बहन के साथ पढ़ने के लिए फ़्रांस चली गयी। वह भारत की पहली महिला थी, जो अंग्रेज़ी और फ़्रेंच में कविताएँ लिख रही थी, और उनके फ़्रेंच से अनुवाद प्रकाशित हो रहे थे। 

वह लॉर्ड मकाले की कल्पित ऐसी जादुई गुड़िया थी, जो सिर्फ़ दिखने में भारतीय थी, और अपनी सोच में अंग्रेज़ महिलाओं से भी आगे! 

(नोट: अंग्रेज़ महिलाएँ भी शिक्षा में भारत से बहुत आगे नहीं थी। पहली ब्रिटिश महिला ग्रैजुएट 1879 में हुई, और भारत में कादम्बरी बोस 1883 में, जो बाद में चिकित्सक भी बनी) 

                      ( रस सुंदरी )

दूसरी कहानी तरु दत्त के ठीक विपरीत एक ग्रामीण, अनपढ़ और बाल-विवाहित महिला की है, जो पहली भारतीय महिला बनी जिनकी जीवनी प्रकाशित हुई, बेस्टसेलर बनी, और उसके दूरगामी प्रभाव हुए। रससुंदरी देवी (1801-99) की आत्मकथा ‘आमार जीवन’ का सारांश अपनी भाषा में लिखता हूँ, 

“मेरी नींद खुली तो मैं अजनबियों के मध्य एक नाव पर थी। मैं जोर-जोर से रोने लगी, और लोग मुझे खिलौने देकर चुप कराने लगे। मैंने अपने गहने देखे तो मुझे याद आया कि कल मेरा विवाह हो रहा था और ये अवश्य मेरे सासुरबाड़ी के लोग होंगे। मेरी माँ ने कहा था कि जब डर लगे तो कुलदेवता दयामाधव का स्मरण करना, तो मैं करने लगी। 

सासुरबाड़ी में मुझे एक और माँ मिली, जिन्होंने मुझे बहुत सारे खिलौने दिए। मेरी तीन ननद थी जो विधवा होकर बापेरबाड़ी आ गयी थी। वे मुझे बहुत दुलार करती। जब मैं कुछ बड़ी हुई तो मैं घर की कर्ता-ठाकुरानी बन गयी। मेरा काम बढ़ गया, लेकिन मुझे अच्छा लग रहा था। मेरे पति कोई बड़ा काम करते थे, उनकी बहुत इज्जत थी। उन्होंने मुझे नौ बेटे और दो बेटियाँ दी। मैं उनके पालन-पोषण में व्यस्त होती गयी। 

मेरे स्वप्न में एक दिन चैतन्य महाप्रभु आए और भागवत पढ़ने कहा। उस समय लड़कियों का पढ़ना वर्जित था। मगर मैं चैतन्य का कहना कैसे टालती? मैं छुप कर अपने बेटे का ताल-पत्र उठा लेती, जिस पर वह लिखने का रियाज़ करता था। मैं धीरे-धीरे अक्षर सीख गयी, और छुप कर पति के संग्रह से भागवत पढ़ने लगी। एक दिन मेरी ननद ने देख लिया, तो मैं डर गयी! 

मगर उन्होंने शिकायत करने के बजाय लिखना सिखाने को कहा, और मैंने सबको भागवत पढ़ाना शुरू कर दिया। हमें लगा जैसे हम किसी पिंजरे से आज़ाद हो गए। सरस्वती की कृपा से आज मैं यह पुस्तक लिख रही हूँ।”

1860 में ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयास से बाल-विवाह (दस वर्ष से कम) पर रोक लगी। हालाँकि इसका पालन ख़ास नहीं हुआ। तीसरी कथा ऐसी ही लड़की की है जो इस कानून के बाद भी बाल-विवाहित हुई। 

                        ( हेमावती )

हेमावती (1866-1933) का विवाह नौ वर्ष की अवस्था में एक शराबी और वेश्याओं को घर लाने वाले रईस व्यक्ति से हुई। अगले ही वर्ष वह विधवा हो गयी, और अपने पिता के घर लौट आयी। वहाँ वह भाइयों के साथ कुछ पढ़ने-लिखने लगी, और एक दिन बनारस के विधवाश्रम चली गयी। वहीं एक विद्यालय में शिक्षिका बनी। 

आगे पढ़ने की इच्छा से वह कलकत्ता लौटी, तो ब्रह्म समाज से जुड़ गयी। कलकत्ता में बिपिन चंद्र पाल (लाल-बाल-पाल में एक) ने उन्हें शरण दिया और आगे पढ़ने को प्रेरित किया। उन्होंने अपने एक संपन्न मित्र से विवाह भी करा दिया। हेमवती के पति कुंजबिहारी सेन ने उनका मेडिकल कॉलेज में एडमिशन कराया, उन्हें किताबें लाकर देते, परीक्षा दिलाते। वह कैम्पबेल मेडिकल कॉलेज में सिल्वर मेडल जीती और बाद में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की टॉपर रही! 

तरु, रससुंदरी, और हेमावती में एक को अवसर पालने से ही मिले, दूसरे ने अवसर बनाए, तीसरे ने हासिल किए। ऐसी स्त्रियाँ शायद आज के भारत में भी किसी न किसी रूप में हों? 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

भारतीय पुनर्जागरण का इतिहास - एक (13)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/08/13.html
#vss 

फ़ोटो 1.तरुदत्त  2.रससुन्दरी देवी  3.हेमावती

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