भारत अवसरों का देश था, जैसे आज अमेरिका है। इसलिए नहीं कि यह सोने की चिड़िया थी, या ज्ञान का भंडार था। बल्कि इसलिए कि यह ऐसा घर था, जहाँ लोग नींद में थे, और लूटने के लिए उचित अवसर थे। भारत से सहानुभूति रखने वाले इतिहासकार ईस्ट-इंडिया कंपनी को लूट का माध्यम मानते हैं। वहीं, कुछ इतिहासकार इस लूट को एक स्वाभाविक घटना बताते हुए, अंग्रेज़ों की सत्ता को धन्यवाद देते हैं। उनके अनुसार वे आए, तभी सोया हुआ भारत जागा। चोर की आहट से घर वाले जाग जाएँ, तो चोर का धन्यवाद करना चाहिए। महानुभाव न आते, तो हम सोए रह जाते।
खैर, इस तंज से बाहर निकलते हुए, अगर यूरोपीय रिनैशाँ की शुरुआत देखें तो वह भारत की खोज से जुड़ी है। उनके विज्ञान का विकास जहाजी यात्राओं से जुड़ा है, जब कोलंबस और वास्को द गामा अलग-अलग रास्तों से भारत की खोज में निकले थे। मानचित्रों से लेकर नैविगेशन सिस्टम बनाने की तैयारी चल रही थी। उस समय भारत सो नहीं रहा था।
मुग़लकालीन इमारतें कोई मध्ययुगीन इमारत नहीं, बल्कि कला की दृष्टि से उच्च कोटि की रचनाएँ हैं। वहीं, यह भक्तिकाल भी था, जब धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन चल रहे थे। इसलिए, यूरोपीय रिनैशां की अपेक्षा भारत को कमजोर मानना ठीक नहीं। बल्कि, ऐसे शोध उभर रहे हैं, कि यूरोप न जागा होता, अगर वह ग्रीस, पश्चिम एशिया, भारत, और चीन के संपर्क में न आता। यानी, हमने उन्हें जगाया!
सत्रह वर्ष की अवस्था में इंग्लैंड से वारेन हेस्टिंग्स भारत की ओर कूच करते हैं। एक साधारण मुंशी की नौकरी पर। उनकी योजना थी कि यहाँ से कुछ बढ़िया कमा कर घर लौटेंगे। जैसे आज डॉलर कमाने अमरीका प्रवास करते हैं। उन्हें भी नहीं मालूम था कि उनका कद और वैभव इतना बढ़ जाएगा कि वह लगभग पूरे भारत के राजा ही बन जाएँगे।
विलियम डैलरिम्पल अपनी पुस्तक ‘द अनार्की’ में ज़िक्र करते हैं-
“बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के समक्ष अंग्रेज़ों की सेना घुटने टेक चुकी थी। विलियम वाट्स हाथ में रुमाल बाँधे अपनी हार स्वीकार कर झुक गए थे। नवाब उन्हें गाली देते हुए अपनी जूतियों में सर रखने कहते हैं। वाट्स को जोर-जोर से कहना पड़ता है- ‘तोमार गुलाम, तोमार गुलाम’!
ऐसी ज़िल्लत देख कर अंग्रेजों के एक कमांडर खुद को गोली मार लेते हैं। वहीं तमाम कैदियों के बीच जंजीरों से बँधा एक चौबीस वर्ष का युवक होता है- वारेन हेस्टिंग्स!”
उसके बाद क्या हुआ, यह तो इतिहास है।
1775 में वारेन हेस्टिंग्स भारत के गवर्नर जनरल नियुक्त हुए। उन्ही दिनों ऑक्सफ़ोर्ड के विद्वान नाथनियल हाल्हेड की प्रेमिका उन्हें छोड़ गयी, तो वह देवदास बन कर इंग्लैंड से कलकत्ता आ गए। हेस्टिंग्स ने उन्हें बुलाया और कहा,
“हमें इन हिन्दुओं और मुसलमानों का एक क़ानून तैयार करना होगा। मैंने कुछ पंडित और मौलवी बिठाए हैं। उनके पास पहले से कुछ कानून हैं, तुम उसे अंग्रेज़ी में अनुवाद कर दो। जब तक हम इन्हें समझेंगे नहीं, उन पर राज करना मुश्किल होगा।”
वारेन हेस्टिंग्स पर बाद में लंदन में अभियोग हुआ कि उन्होंने भारत में निर्दयता की और लूट मचायी। लेकिन, जाने-अनजाने यह ‘लुटेरा’ ही आधुनिक बंगाल रिनैशां का सूत्रधार था। उनका यह हिन्दू कानून (gentoo law अथवा विवादार्णवसेतु) समाज के विभाजन का भी।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen जहाँ
भारतीय पुनर्जागरण का इतिहास - एक (1)
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