सुरेश चंद ने मामलों को दो हिस्सों में बांट रखा था । वह मानता था कि दो ही प्रकार के मामले होते हैं । एक अंदरूनी मामला होता है। अंदर की बात होती है और एक बाहरी मामला होता है। घर के अंदर जो होता है वह अंदर की बात है। अंदरूनी मामला है। उसे बाहर नहीं ले जाना चाहिए और उसमें बाहर के किसी आदमी को बोलने का कोई हक नहीं है।
सुरेश चंद रोज अपनी पत्नी को पीटता था और मानता था कि इस अंदर की बात का किसी को पता नहीं है। लेकिन यह सच नहीं था । अंदर की बात सब जानते थे।
अगर कभी कभार, भूले - भटके कोई पूछ ही लेता था कि पत्नी को क्यों मारते हो तो वह कहता था - यह अंदर की बात है, मेरा अंदरूनी मामला है। और बहुमत मेरे पक्ष में है।'
इसमें कोई शक नहीं कि उसे बहुमत प्राप्त था। घर में तीन ही लोग थे । सुरेश चंद्र, उसकी पत्नी और उसका नौकर। नौकर बड़ा समझदार और मालिक का वफादार था ।
रोज़ पिटने से तंग आकर एक दिन पत्नी ने प्रेशर कुकर उठाकर सुरेश की खोपड़ी में दे मारा।
सुरेश की खोपड़ी फूट गई। वह चिल्लाने लगा। शोर मच गया । शोर रोज़ ही मचता था पर सुरेश की पत्नी शोर मचाती थी और कोई पड़ोसी न आता था। लेकिन आज सुरेश ने शोर मचाया तो पड़ोसी आ गए ।
वे उसे अस्पताल ले जाने लगे। पर सुरेश ने कहा - मैं अस्पताल नहीं जाना चाहता । यह मेरे घर के अंदर का मामला है। घर के अंदर की बात बाहर नहीं निकलना चाहिए।'
पड़ोसी चुप हो गए। लेकिन क्योंकि खून बहुत बह गया था और वह बेहोश होने वाला था इसलिए न चाहते हुए भी वह अस्पताल जाने को तैयार हो गया।
अंदर की बात अस्पताल ले जाना पड़ी, फिर अंदर की बात थाने ले जाना पड़ी, फिर अदालत ले जाना पड़ी, फिर घर की बात मीडिया के सामने पहुंच गयी।
लेकिन सुरेश यह मानता रहा कि घर की बात घर ही में है। अगर बाहर गई भी है तो लौट कर घर के अंदर आ गई है।
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