Friday, 2 April 2021

नोटबन्दी का फैसला क्या था ? / विजय शंकर सिंह

8 नवम्बर 2016, को रात 8 बजे, सरकार द्वारा लिया गया नोटबन्दी का निर्णय, भी एक भूल थी या वह भी सोच समझ कर लिया गया निर्णय था ? 
अरुण जी तो, अब रहे नही, नहीं तो वे ही कुछ बताते। बेचारे ऐसे ताड़ाताड़ी में चले गए कि अपने संस्मरण तक वे लिख नहीं पाए। वे रहते और जब धूल बैठ जाती तो ज़रूर वे कुछ न कुछ लिखते और तब इस रहस्य से पर्दा भी उठता। 

यह सवाल इसलिए भी उठा रहा हूँ कि, सरकार, अपनी उपलब्धियों में इस मास्टरस्ट्रोक की बात या तो करती ही नहीं है या इस पर कुछ करते हुए शरमाने लगती है। यह अलग बात है कि सरकार समर्थक उसके लाभ गिना तो नहीं पाते पर उसके बचाव में ज़रूर सामने आ जाते हैं। 

सरकार का समर्थन करना और सरकार के हर निर्णय पर उसके साथ बने रहना, जबकि, उन निर्णयों का खामियाजा समर्थक मित्र भी उतना ही भुगतते हैं जितना हम जैसे सरकार के विरोधी, एक जीवट और बेहद सधे हुए अभिनय का काम है। अक्सर वे खीज जाते हैं, और अपशब्दों के शब्दकोष के सहारे अपनी बात कहते हैं। यह उनका दोष नहीं है, यह दोष उस रोबोटिक निर्देश का है कि, बस समर्थन में ही अपनी बात रखो। नचिकेता को भूल जाओ। 

मेरे कुछ बेहद नज़दीकी मित्र, रिश्तेदार भी सरकार के हर फैसले के मुरीद नज़र आते हैं। अजीब कालखंड है, अतार्किकता, सकारात्मकता समझी जाने लगी है। पर मेरा युद्ध उनसे चलता रहता है। सरकार और उसके समर्थन में लगे मित्रों के प्रति मेरी दिली सहानुभूति रहती है। कभी कभी कुछ तलखियत भरी बात हो जाती है, पर कुल मिलाकर वे अच्छे हैं, मासूम है, पर क्या करें वे भी। हस्तिनापुर का पाश ही ऐसा होता है ! और पाश चाहे प्रेम का हो, या सत्ता का वह कष्ट देता ही है। 

( विजय शंकर सिंह )

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