कल आप लोगों ने पढ़ा था, कि उत्तरकाशी से दस किमी आगे जिस नैताला में हमने रात गुज़ारी वहाँ पर रात्रि-भोजन के बाद अलाव तापने लगे। नैताला तक की यात्रा में इतने घुमाव पार किए कि मेरा सिर घूमने लगा था और आक्सीजन की कमी से दिल बैठ रहा था। हालाँकि आक्सीमीटर आक्सीजन लेबल 99 शो कर रहा था। मित्र सुभाष बंसल ने तब अपना पिटारा खोला। उन्होंने दूध से भरे गिलास में एक चम्मच बादाम रोगन मिलाया और थोड़ा-सा शिलाजीत रसायन। दूध का स्वाद बिना चीनी की कॉफ़ी जैसा हो गया। उसे पीने से राहत मिली। इसके बाद रबड़ की एक थैली, जिसमें पानी भरा हुआ था, उसे बिजली के एक केबल से गर्म किया और वह थैली दस मिनट के लिए सीने के बायीं तरफ़, जहाँ दिल होता है, से चिपटा ली। मुझे आराम मिला। नींद की एक गोली खाकर सो गया। रात में एक बार लघु शंका निवारण के लिए उठा और फिर सो गया। सुबह सात बजे नींद खुली। अब न सिर दर्द था न दिल बैठ रहा था। ठाकुर जी ने गरम पानी लाकर दिया। तीन गिलास पीते ही फ़्रेश होने गया। गीज़र ऑन किया और फिर स्नान-ध्यान से निवृत्त हुआ। इसी बीच पंडित जी ने हर्षिल फ़ोन कर सारी जानकारी ली। वहाँ मौसम साफ़ था, किंतु सुक्की टॉप से सड़क पर बर्फ़ जमी थी। यानी 20 किमी तक गाड़ी बर्फ़ में ही चलानी थी। हमारे पास चेन भी नहीं थी। इसलिए सड़क से गुजर रही मैक्स गाड़ी को रोक कर रास्ते के बारे में जानकारी ली। उसने बताया कि सड़क पर बर्फ़ तो है पर गाड़ियों के गुजरने से लीक भी बनी हुई है।
नैताला में खूब धूप खिली थी। पनीर के पराठे, दही और आलू, मटर व गाजर की मिक्स सब्ज़ी खाकर हम दस बजे हर्षिल के लिए निकले। सड़क अच्छी बन गई है, इसलिए कोई बाधा नहीं मिली। ट्रैफ़िक भी न के बराबर था। मनेरी डैम, पॉयलट बाबा का मंदिर पार कर हम भटवारी पहुँचे। भटवारी देश की सबसे बड़ी तहसील है। इसका एरिया असीगंगा के संगम पर स्थित गणेश पुर से लेकर हर्षिल, लंका, भैरोघाटी, गंगोत्री, भोजवासा, चीरवासा, गोमुख, तपोवन आदि से लेकर चीन की सीमा तक है। अर्थात् कोई डेढ़ सौ किमी की लंबाई में। विजय बहुगुणा की सरकार ने इसे पिछड़ा क्षेत्र घोषित किया था, बाद में हरीश रावत ने इसकी तस्दीक़ की। इसलिए यहाँ जन्मे हर जातक को जन्मतः ओबीसी का दर्जा मिलता है।
इसके बाद आया गंगनानी। दोनों तरफ़ असंख्य ढाबे हैं। पर सन्नाटा पसरा था। कभी यहाँ इतनी गाड़ियाँ खड़ी रहती थीं, कि रुकना मुश्किल। किंतु 2013 के केदार हादसे और 2020 के कोरोना कांड ने उत्तराखंड के पूरे पर्यटन को चौपट कर दिया है। मैगी प्वाइंट्स पर सन्नाटा था। पहाड़ में मैगी खूब खाई जाती है, पर कोई नहीं दिखा। गंगनानी में गरम पानी का एक कुंड है और गंगोत्री अथवा गोमुख जाते हुए यात्री इस गरम कुंड में स्नान करते हैं। एक बार मैंने भी स्नान किया था। शुरू में तो पानी गरम लगता है, इसके बाद शरीर इसका आदी हो जाता है। गंगनानी से हर्षिल 30 किमी है और 38 किमी की यात्रा हम कर आए थे। अब एक घाटी में हम उतरे। यहाँ लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना स्थापित की गई थी, मगर पर्यावरण प्रेमी एनजीओ ने इस पर रोक लगवा दी। अरबों रुपए की निर्माण सामग्री ज़ाया हुई। पहाड़ों के अंदर मीलों लम्बे टनल बन चुके हैं। इमारतें बन गईं, उसके बाद इन पर्यावरण प्रेमी एनजीओ वालों ने इस पर रोक की कार्रवाई शुरू की। सवाल उठता है कि रोक शुरू में ही क्यों न हो? इससे पब्लिक का पैसा तो नहीं बर्बाद होगा। इसी तरह टिहरी परियोजना का भी ख़ूब विरोध हुआ था। किंतु वह बनी और वह उत्तर प्रदेश सरकार के पास है। क्योंकि उत्तराखंड ने उसे लेने से मना कर दिया था। अलबत्ता उत्तराखंड को उसकी रॉयल्टी मिलती है।
साल 2000 की 9 नवम्बर को जब उत्तर प्रदेश का पर्वतीय अंचल काट कर उत्तराखंड बनाया गया तो उन्होंने सिंचाई विभाग लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा उनके खेतों को नहर के पानी की ज़रूरत नहीं इसलिए वे नाहक खर्च क्यों उठाएँ? तब सिंचाई विभाग उत्तर प्रदेश ने ले लिया। बाद में उत्तराखंड के कर्णधारों को लगा कि यह तो भारी भूल हो गई क्योंकि हरिद्वार, राम नगर, रुद्र पुर, काशी पुर तथा पूरे ऊधमसिंह नगर को पानी चाहिए। तब उन्होंने हाय-तौबा की और सिंचाई विभाग बनाया। इसलिए नए राज्यों के कर्णधारों का दूरगामी सोच वाला होना चाहिए। इसी तरह अगर लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना पूरी हो जाती तो उत्तराखंड को आज बिजली के लिए अंधेरा न देखना पड़ता। ख़ैर मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा अन्यथा उत्तराखंड के सारे पर्यावरण प्रेमी और उत्तर प्रदेश के उत्तराखंडी मुख्यमंत्री मुझे ग़ाज़ियाबाद में रहने नहीं देंगे। यह भी दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश में अब तक चार मुख्यमंत्री पर्वतीय उत्तराखंड के रहे हैं। तीन बार गोविंदबल्लभ पंत, एक बार हेमवती नंदन बहुगुणा और चार बार नारायण दत्त तिवारी और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। लेकिन उत्तर प्रदेश में विकास कार्य सिर्फ़ नारायण दत्त तिवारी की सरकार में हुए।
लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना जिस समतल पर है, वहाँ बाल शिव का एक मंदिर है। गंगोत्री यात्रा करने वालों को यहाँ पूजा करनी अनिवार्य है। ख़ैर मैंने भी दूर से ही बाल शिव के दर्शन किए। सभी लोगों (मित्र श्री सुभाष बंसल, पंडित जी, उनके पुत्र तथा एडवोकेट राहुल बंसल, पीयूष गुप्ता तथा मैं) वहाँ के कुंड की मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाईं। वहाँ खूब लंगूर थे जो दूर चट्टानों को चाट रहे थे। कहते हैं पुरानी चट्टानों पर सूरज की किरणें शिलाजीत बनाती हैं। लंगूर इन्हें चाटते हैं। इसके बाद लंगूर की लेंडी (पोटी) को ही शिलाजीत रसायन या वटी में प्रयोग किया जाता है। यहाँ हिरन भी खूब थे। इसके आगे सीधी चढ़ाई है और हम कुछ ही देर में सुक्की टॉप पर आ गए। यह टॉप समुद्र तल से 10 हज़ार फ़िट की ऊँचाई पर है। चारों तरफ़ बर्फ़ ही बर्फ़। बाल शिव मंदिर से हमें जो चोटी दिख रही थी, वह यही थी। सड़क पर भी बर्फ़ और किनारे पर भी। अब गाड़ी चलाना बहुत दुश्तर था। फ़ोर व्हील गेयर ऑन किया गया और लो मोड में गाड़ी चलनी शुरू हुई। इस मोड में गाड़ी की स्पीड 10 रहती है। मगर ड्राइवर को सदैव यह ख़्याल रखना पड़ता है कि ब्रेक का इस्तेमाल क़तई न करे अन्यथा गाड़ी के स्किड होने का ख़तरा रहता है। एक स्थान पर तो इतना ज़बरदस्त डाउन आया कि एडवोकेट साहब ने ब्रेक लगा ही दिया। गाड़ी एकाएक खाई की तरफ़ ज़ोरों से फिसली।
(बाक़ी का यात्रा विवरण कल)
( शंभुनाथ शुक्ल )
गंगोत्री यात्रा के पड़ाव (1)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/04/1_23.html
#vss
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