पूजा के बाद दान-दक्षिणा अर्पित कर हमने पर्वत शिखरों की फ़ोटो क्लिक कीं और वापस लौट पड़े। पुनः हर्षिल आ गए। हर्षिल खूब जूसी सेबों और राजमा के लिए प्रसिद्ध है। पहाड़ों और पंजाब-हरियाणा में राजमा ख़ूब पसंद किया जाता है। किंतु कश्मीर यात्रा में जैसे चावल व राजमा मैंने जम्मू के कश्मीर हाउस और श्रीनगर में खाये थे, वैसा कहीं नहीं मिला।यहाँ तक कि जम्मू-श्रीनगर हाई-वे के ढाबों में शाकाहारी लोगों के लिए राजमा-चावल ही खाने को मिलता है। वहाँ छोले-चावल खाने का चलन कम है। सेबों के सीजन में एक बार सितम्बर के तीसरे हफ़्ते में मैं हर्षिल गया था, वहाँ मुझे एक दूकान में ढेर सारे डिब्बे रखे थे, जिसमें हिमाचल सेब लिखा हुआ था। मगर उन डिब्बों में भरे जा रहे थे हर्षिल के सेब। मैंने दूकानदार से पूछा कि यह फ़र्ज़ीवाड़ा क्यों? उसने बताया कि हर्षिल जैसा मीठा और जूसी सेब पूरे भारत में कहीं नहीं होता और लोगों के बीच हर्षिल के सेब की कोई पहचान नहीं है, इसलिए यह फ़र्जीवाड़ा करना पड़ता है। अब चूँकि इस समय सेब का सीजन ख़त्म है इसलिए सेब के भंडार ख़ाली पड़ा था।
यहाँ सेबों के पेड़ उगाने का श्रम विल्सन ने किया था, वही यहाँ सेब के बीज अमेरिका से लाया था। राजमा मुझे नहीं पसंद इसलिए हम फिर भागीरथी का पुल पार कर आर्मी बेस कैम्प में आ गए।
हमारे दोस्त सुभाष बंसल को 20-20 लीटर के दो कैन गंगा जल लेना था। वे बहुत धार्मिक आदमी हैं और अपने ठाकुर जी को वे रोज़ाना ऐसे जाड़े में भी, शीतल गंगा जल से नहलाते हैं। पंडित जी ने कहा कि हर्षिल के आगे धराली में गंगा जी से सटा हुआ एक मंदिर है, वहाँ से जल भरते हैं। धराली हर्षिल से एक किमी आगे गंगोत्री जाने वाली सड़क पर है। वहाँ बर्फ़ से सने मकान थे। एक बड़ा-सा होटल था- प्रकृति। यह बैंड बड़ा था। वहीं हमने गाड़ी रोकी। पंडित जी और एडवोकेट राहुल बंसल ढलान वाली बर्फ़ पर चलते हुए भागीरथी तक गए और जल ले आए। यहाँ धूप थी मगर कपकपी भी। तब तक ऊपर गंगोत्री की तरफ़ से आती हुई एक इनोवा टैक्सी दिखी। मैंने उसे रोका और ड्राइवर से पूछा आगे रास्ता कैसा है? उसने बताया कि भैरोघाटी के आगे बहुत बर्फ़ है। धराली से आठ किमी दूर लंका तक इसी तरफ़ के पहाड़ पर चलना था। जहां एकदम सफ़ेद चादर पहाड़ों पर बिछी थी। लंका पर भागीरथी के उस पार जाने के लिए पुल था। यहाँ पर भागीरथी ऊँचे-ऊँचे चट्टानों के पर्वत के नीचे तलहटी में अत्यंत संकरे स्थान से गुजरती हैं। न कोई शोर न हलचल। किंतु किनारे से नीचे झांकने पर सैकड़ों फ़िट दूर एक धारा झिलमिलाती है। यहाँ से दूसरी साइड वाले पहाड़ पर जाना पड़ता है, जहां खूब धूप थी। बिना सहारे वाले इस पुल को पार करना जोखिम लगता है। कहते हैं विल्सन ने इसे रस्सों से बनवाया था। तब किसी की हिम्मत नहीं पड़ती पुल पार करने की। पर विल्सन अपने घोड़े पर सवार होकर इस पुल से उस तरफ़ चला जाता था। पुल खूब इधर-उधर होता था। अब तो ख़ैर यह पुल लोहे का बना है। सीमा सड़क संगठन ने इसे खूब चौड़ा भी कर दिया है। लेकिन लोक में प्रथा प्रचलित है, कि रात को एक अंग्रेज इस पुल पर घोड़ा दौड़ाता हुआ निकलता है। कहते हैं, वह विल्सन की आत्मा है। उस तरफ़ के पहाड़ नंगे हैं। विल्सन ने सारे पेड़ कटवा दिए थे। इधर पहाड़ मिट्टी और पत्थर के हैं। यह मिट्टी अक्सर झरा करती है।
सड़क पहले ढलान पर जाती है, फिर चढ़ाई की ओर। आठ किमी पर भैरों घाटी है। यह एक बैंड है। यहाँ फ़ॉरेस्ट का रेस्ट हाउस है और एक पर्यटक आवास गृह भी। स्नो-बीयर देखने वाले यहाँ आते हैं। काफ़ी ऊँचाई पर है। चारों तरफ़ जंगल है। इसके चार किमी आगे केलोंग की तरफ़ एक सड़क चढ़ती है और यह हाई वे सीधे गंगोत्री जाता है।
इस समय गंगोत्री में सन्नाटा होता है। एक पुजारी ज़रूर वहाँ रहता है, लेकिन मंदिर के पट बंद रहते हैं। यहाँ हमारे मित्र सुभाष बंसल का भी एक शिवमंदिर है, जो उन्होंने गंगोत्री मंदिर समिति को समर्पित कर दिया है। उन्होंने यहाँ चार कमरे भी बनवा रखे हैं। उनमें बाथरूम भी है और किचेन भी। यह आवास मंदिर समिति के पास है और इसमें रुकने वाले से कोई चार्ज नहीं लिया जाता। गंगोत्री मंदिर के उस तरफ़ कई आश्रम और धर्मशालाएँ हैं। स्वामी सुंदरानंद का आश्रम है, जिनकी पिछले महीने हृदय गति रुकने से 90 की अवस्था में मृत्यु हो गई। इस दाक्षिणात्य स्वामी की प्रतिष्ठा विश्व प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफ़र के तौर पर थी। गंगोत्री से गोमुख जाने के रास्ते पर भोजवासा-चीड़वासा में भी उनका आश्रम है। जहां की गर्मागर्म खिचड़ी का स्वाद यात्रियों को याद होगा। वे गोमुख, तपोवन, केदार ताल, ब्रह्म ताल और नील कमल सरोवर तक ज़ाया करते थे। जहां पहुँचना बहुत कष्टकारी है। एक गुजराती बाबा की विशाल धर्मशाला है, एक मारवाड़ियों की भी। अग्रवाल समाज भी यात्रियों के निवास की व्यवस्था करता है। इसके अलावा गढ़वाल मंडल विकास निगम का एक होटल है। कुछ पंजाबियों के अन्य छोटे-मोटे होटल हैं। जिनके कमरे छह बाई आठ के ही हैं। और सीजन में खूब ठगते हैं। टिकुली, चंदन, माला और नारियल व प्रसाद बेचने वालों की दूक़ानें हैं। कुछ ढाबे हैं। यहाँ पर गंगोत्री रिज़र्ब पार्क है। इसके अंदर वन विभाग का रेस्ट हाउस है, वह भी मिल जाता है। एक पुलिस चौकी है।
गंगोत्री की सीध में चालने पर दो किमी तक गंगा किनारे कुछ बाबाओं के आश्रम हैं। ये साधक हैं और पब्लिक से नहीं मिलते। एक पागल बाबा का आश्रम है, जिसमें जाने पर उस बाबा ने मुझे पत्थरों से मारा था। आगे भागीरथी पहाड़ों के बीच अदृश्य हो जाती है।
(बाक़ी का कल)
शंभूनाथ शुक्ल
( Shambhunath Shukla )
गंगोत्री यात्रा के पड़ाव (4)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/04/4_26.html
#vss
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