नोटबंदी जैसी भयंकर भूल कर के विकासशील देशों में अपना स्थान बनाने वाली भारत की आर्थिकी को चोट पहुंचाने वाले लोगों का दायित्व निर्धारण कर के उनके इस जनविरोधी और देशविरोधी मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने के आरोप में अभियोग चलाना चाहिये। यह मौलिक और अनर्थकारी विचार चाहे रिज़र्व बैंक का हो, या सरकार के वित्त मंत्रालय का या मुख्य आर्थिक सलाहकार का नीति आयोग का या प्रधानमंत्री जी के करीबी लोगों का, जिसका भी हो उनसे यह पूछा जाना चाहिये कि आखिर गड़बड़ी नोटबंदी के विचार में थी या इसे लागू करने वाली प्रशासनिक अमले की यह विफलता थी। आज की आर्थिक दुरवस्था के लिये 8 नवम्बर 2016 को रात 8 बजे का लिया गया यह निर्णय सबसे अधिक जिम्मेदार है।
आज पांच साल हमारे बरबाद हो गए हैं। यह छह सालों में सरकार की सबसे ईमानदार और सच्ची आत्मस्वीकृति है। पर यह कौन है जिसने नोटबंदी के विचार को सरकार के दिमाग मे डाला या यह विचार सरकार का एक इलहाम था, या यह गिरोही पूंजीपतियों का जिन्होंने सरकार को लाने में धन खर्च किया था के प्रति सरकार का कृतज्ञता प्रदर्शन था ?
याद कीजिये, संसद में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था,
" नोटबंदी एक भयंकर भूल है, और इससे जीडीपी 2 % गिरेगी। '
फिर यह भी याद कीजिये कि अभी कुछ ही दिन पहले वर्तमान प्रधानमंत्री ने अफसरों की मीटिंग में कहा है,
" आपने मेरे पांच साल बर्बाद कर दिए, अब अगले पांच साल मैं बर्बाद नहीं करने दूंगा। '
आज जीडीपी सबसे निचले स्तर पर है, बेरोजगारी, सबसे ऊंचे स्तर पर है, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सबसे माइनस ग्रोथ में पहुंच गया है, कर संग्रह माह दर माह कम हो रहा है, रिज़र्व बैंक के पास अब रिज़र्व भी नहीं बचा, रुपया गिरता जा रहा है, कुपोषण में हम सबसे दुःखद स्थिति में हैं, ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम रसातल के करीब है, प्रसन्नता के सूचकांक में हम भूटान से भी नीचे हैं, आखिर हम हैं कहां ?.प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रो अरुण कुमार के अनुसार, 'भारतीय अर्थव्यवस्था आज 27 लाख करोड़ गंवा चुकी है!'
यह एक भयावह अर्थ-संकट का संकेत है। पर हैरानी इस बात की है कि इस ओर अब भी सरकार का कोई ध्यान नहीं है। न कोई नीति दिख रही है, न नीयत, न चेष्टा, न इरादा। बस, इस मंदी को, 'हिन्दुस्तान-पाकिस्तान' और 'हिन्दू-मुसलमान' से भटकाने की कोशिश की जा रही है।
चिंतित करने वाली खबर यह भी है कि, दुनिया की बड़ी रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे अपने आउटलुक यानी नजरिए को 'स्टेबल' (स्थिर) से घटाकर 'नेगेटिव' कर दिया है। इसके पहले अक्टूबर में ही मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने 2019-20 में GDP ग्रोथ के अनुमान को घटाकर 5.8 फीसदी कर दिया था। मूडीज की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पहले के मुकाबले भारतीय अर्थव्यवस्था में जोखिम बढ़ गया है, इसलिए आउटलुक को घटाने का फैसला किया है। मूडी का कहना है कि भविष्य में भी भारत की आर्थिक स्थिति सुधरे इसकी भी कोई संभावना निकट भविष्य में नज़र नहीं आती है।
नोटबंदी के सभी पक्षों पर सरकार एक श्वेत पत्र लाये और नोटबंदी से देश को क्या लाभ हुआ, क्या हानि हुयी और इसका क्या असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा, इसका एक विस्तृत विवरण दे। 150 लोग लाइनों में लग कर अपना ही पैसा लेने के चक्कर मे मर गए। प्रधानमंत्री, मुझे जला देना, चौराहे पर लाना, घर मे शादी है और पैसे नहीं, कह कर अट्टहास करते रहे। पर आज तक देश को सरकार यह नही बता पायी कि आखिरकार नोटबंदी से देश को मिला क्या ? नोटबंदी कहीं देश की अर्थव्यवस्था को जानबूझकर, पंगु करने का षडयंत्र तो नहीं है ताकि अमेरिकी पूंजीवाद की विस्तारवादी नीति जिसे नवसाम्राज्यवाद कहा जाता है की घुसपैठ हमारे अर्थतंत्र में हो जाय ?
सरकार कहीं किसी पूंजीवादी साज़िश का शिकार तो नहीं बन गई है ?
विकासशील देशों की इकॉनमी पर शोध करने वाले विद्वानों से इस सवाल का हल ढूंढने की अपेक्षा है मुझे।
© विजय शंकर सिंह
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