आज की सवसे बड़ी खबर यह है कि, अजित पवार के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही उनके खिलाफ चल रही सिंचाई घोटाले की सारी जांचे बंद हो गयी हैं। अब वे पवित्र बन चुके हैं। भाजपा के दावे, भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस से भाजपा की असलियत, भ्रष्टाचार के खिलाफ निल जांच तक का यह सफर निंदनीय है। कथनी और करनी, नैतिकता और पाखंड, की स्प्लिट पर्सनालिटी से युक्त भाजपा का यह वास्तविक, चाल, चरित्र, चेहरा और चिंतन है।
2014 से लगातार देवेंद्र फडणवीस यह कह रहे थे कि हजारों करोड़ के सिंचाई घोटाले में अजित पवार लिप्त हैं और वे जेल भेजे जाएंगे। चक्की पीसिंग पीसिंग एंड पीसिंग, वाला उनका एक पुराना वीडियो अब भी सोशल मीडिया पर खूब देखा और साझा किया जा रहा है। 25 नवंबर को मुख्यमंत्री फडणवीस ने शायद सबसे पहले इसी फाइल पर दस्तखत किया जो अजित पवार के सिंचाई घोटाले से सम्बंधित है। इसे सरकार की पहली उपलब्धि माना जाना चाहिये।
इससे पहले महाराष्ट्र में हुए करीब 70 हजार करोड़ के कथित सिंचाई घोटाले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने नवंंबर 2018 में पूर्व उप मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार को जिम्मेदार ठहराया था।. महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने बंबई उच्च न्यायालय को बताया था कि करोड़ों रुपये के कथित सिंचाई घोटाला मामले में उसकी जांच में राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार तथा अन्य सरकारी अधिकारियों की ओर से भारी चूक की बात सामने आई है।. यह घोटाला करीब 70,000 करोड़ रुपए का है, जो कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शासन के दौरान अनेक सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी देने और उन्हें शुरू करने में कथित भ्रष्टाचार तथा अनियमितताओं से जुड़ा हुआ है। अब एसीबी ने अपनी ही जांच और निष्कर्षों से पलटी मार ली है।
एसीबी के डीजी ने अब यह कहा है कि सिंचाई घोटाले के 9 केसों में अजित पवार की कोई भूमिका नहीं थी। जबकि कुछ महीनों पहले एसीबी ने अजित पवार की लिप्तता को हाईकोर्ट में स्वीकार किया था। अब वे कह रहे है कि, इस केस को बंद करने के लिए तीन महीने पहले ही अनुशंसा कर दी गयी थी। अगर ऐसा था तो उस पर निर्णय लेने का क्या यह उपयुक्त समय था जब सरकार का गठन, राज्यपाल की भूमिका और प्रधानमंत्री की राष्ट्रपति शासन खत्म करने की बिजनेस रूल्स 1961 के नियम 12 के अंतर्गत की गयी सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। एसीबी के डीजी ने कहा है कि सिंचाई घोटाले से जुड़े मामले में लगभग 3000 अनियमितताओं की जांच की जा रही है जिनमें से 9 मामलों में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
लगता है, बड़ी जांच एजेंसियों में अब उतनी भी रीढ़ की हड्डी नहीं बची है जितनी की हमारे कुछ थानेदारों में अब भी है। आज के महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय से एसीबी की जांच और उसकी सत्यनिष्ठा खुद ही सवालों के घेरे में आ गयी है।
© विजय शंकर सिंह
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