Friday, 8 November 2019

यह एक डरी हुई सरकार है / विजय शंकर सिंह

सरकार की प्राथमिकता में न अर्थव्यवस्था है और न देश का विकास करना है। सरकार की प्राथमिकता है जो अफसर सरकार के किसी निर्णय के बारे में अपनी राय रखता है और अगर वह राय सरकार के विपरीत है तो, सरकार उस अफसर से बदला लेती है। उसके खिलाफ ईडी और आयकर को लगा देती है। जैसे ये कानूनी विभाग, बदला लेने के लिये ही बनाये गए हों।

पूर्व सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा ने जब अपने को सीबीआई प्रमुख के पद से हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ली तो, सरकार ने एक अपराधी मानसिकता की तरह उनका यह कदम याद रखा। जब वे रिटायर हो गए तो, उनको अवकाशप्राप्त के बाद जो देय लाभ हैं उन्हें मिलने में अड़चनें डाली जा रही हैं। 

चुनाव आयुक्त, अशोक लवासा ने पीएम के चुनावी दौरे के समय आचार संहिता के बारे में कुछ विपरीत राय, डिसेंट नोट दिया तो यह भी सरकार को नहीं पचा। अब सरकार सारा कामधाम छोड़ कर उनके खानदान भर को नोटिस पर नोटिस भेज रही है। 

कन्नन गोपीनाथन एक युवा आईएएस अफसर थे। कश्मीर की तालाबंदी पर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। और सरकार के कश्मीर नीति की आलोचना की, तो सरकार को अपच हो गया और अब वह इस युवा अफसर के पीछे पड़ गयी। कन्नन ने ट्वीट कर के गृहमंत्री के कश्मीर नीति पर सवाल उठाए हैं। 

कल यह खबर आयी है कि सरकार यह नहीं चाहती है कि रिटायर्ड फौजी अफसर सरकार के खिलाफ न कुछ कहें न लिखें। वह उनको सुविधाओं के एवज में ऐसा एक वचनपत्र चाहती है। सरकार को अपनी पोलपट्टी खुलने का डर है। खून में जिनके व्यापार भरा हो वह सौदेबाजी कर सकता है दलाली कर सकता है, शासन तो बिलकुल ही नहीं कर सकता है। 

यह सरकार 'जामुन के पेड़' से भी डरती है जिसकी डाल सबसे कमजोर मानी जाती है। 1960 की लिखी किशन चन्दर की यह कहानी नेहरू सरकार पर एक तीखा व्यंग्य था, पर नेहरू सरकार न डरी और न ही कुछ किया। पर आज यही सरकार साठ साल बाद इस कहानी से डर रही है। इस कहानी पर अलग से लेख लिखूंगा। 

© विजय शंकर सिंह 

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