Monday, 4 November 2019

भारत मुक्त व्यापार समझौते से अलग हुआ / विजय शंकर सिंह

सरकार ने आरसीईपी RCEP यानी मुक्त व्यापार समझौते से खुद को अलग कर लिया। यह एक अच्छा निर्णय है। इस समझौते के विरोध में देश के सभी किसान मजदूर और व्यापारिक संगठन थे। आज इन संगठनों ने सरकार के समझौते में  संभावित रूप से शामिल होने के विरोध में विरोध दिवस भी मनाया था। 

आरसीईपी एक ट्रेड अग्रीमेंट है जो सदस्य देशों को एक दूसरे के साथ व्यापार में सहूलियत प्रदान करता है। अग्रीमेंट के तहत सदस्य देशों को आयात और निर्यात पर लगने वाला टैक्स नहीं भरना पड़ता है या बहुत कम भरना पड़ता है। RCEP में 10 आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यू जीलैंड के शामिल होने का प्रावधान था, जिसमें से अब भारत ने इसमें से बाहर रहने का फैसला किया है।

भारत ने रीजनल कॉम्प्रिहंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) में शामिल न होने का फैसला लिया है। इस समझौते में अनसुलझे मुद्दों के कारण भारत ने इस पार्टनरशिप से बाहर रहना ही सही समझा। RCEP समिट में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि RCEP के तहत कोर हितों पर कोई समझौता नहीं होगा। नवभारत टाइम्स के अनुसार, पीएम मोदी ने कहा, 'मैंने सभी भारतीयों के हितों के संबंध में आरसीईपी समझौते को मापा, लेकिन मुझे कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। न तो गांधीजी के सिद्धांतों ने और न ही मेरी अंतरात्मा ने मुझे आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति दी।'

बैंकाक में ऐन वक्त पर गांधी आ गए, लाठी ठोक कर उनके विवेक को जगाया, और कान में फुसफुसा कर कहा कि, " आरसीईपी पर दस्तखत मत करना। " और उन्होंने मान लिया। यहां भी गांधी ही मौके पर काम आए और वे हमेशा की तरह गरीबों, वंचितों और किसानों के हक़ में ही लाठी लिये रहे यहां भी तैनात रहे ।गांधी भी अजीब हैं, आज भी गांधी की जरूरत पड़ ही जाती है, भले ही कभी इनके कुछ  सिरफिरे  आराध्यों ने उनकी हत्या पर मिठाई बांटी हो, जश्न मनाया हो, और उनकी हत्या को आज भी वध कहते हों ! यही ताक़त गाँधी की है और यही उनकी प्रासंगिकता भी है ।

भारत का कहना है कि RCEP समझौता अपनी मूल मंशा को नहीं दर्शा रहा है और इसके नतीजे संतुलित और उचित नहीं हैं। भारत ने इस समझौते में कुछ नई मांग रखी थी। भारत का कहना था कि इस समझौते में चीन की प्रधानता नहीं होनी चाहिए, नहीं तो इससे भारत का व्यापारिक घाटा बढ़ेगा।

आरसीईपी में दस आसियान देश और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार चीन, भारत, जापान, दक्षिण, कोरिया, भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. आरसीईपी करार का मकसद दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना है. 16 देशों के इस समूह की आबादी 3.6 अरब है. यह दुनिया की करीब आधी आबादी है. शनिवार को हुई बैठक में 16 आरसीईपी देशों के व्यापार मंत्री भारत द्वारा उठाए गए लंबित मुद्दों को हल करने में विफल रहे थे. हालांकि, आसियन शिखर बैठक से अलग कुछ लंबित मुद्दों को सुलझाने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत जारी थी। 

सरकार के विरोध का एक उद्देश्य यह भी होता है जनता जिसके वोट के बल पर सरकार बनी है जनता को केवल अपना दुंदुभिवादक ही न समझे। जनता को सरकार के हर कदम के विरोध में लोकतांत्रिक तरीके से खड़ा होना चाहिये जिसे वह अपने लिये अहितकर समझती है। इस समझौते के भी विरोध में वह खड़ी रही, यह एक अच्छा संकेत है। 

सत्ता कितनी भी मजबूत और बहुमत प्राप्त हो, वह कभी भी जनता से मजबूत नहीं हो सकती है। बस जनता को यह एहसास बराबर रहे कि वह जनार्दन है। दिक्कत यह है कि हम सरकार तो भावनाओं के वशीभूत होकर चुनते ही हैं, और सरकार के कामकाज की समीक्षा करना तो दूर खुद को उसी के रहमोकरम पर छोड़ देते हैं। सरकार को इस समझौते से अलग होने के लिये साधुवाद। प्रधानमंत्री जी को बधाई। 

© विजय शंकर सिंह 

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