चाणक्य भारतीय राजनीति शास्त्र के अप्रतिम स्तम्भ हैं। उनका अर्थशास्त्र जो कौटिल्य के नाम से है आज भी अपने काल खंड में अपने विषय की सबसे आधिकारिक पुस्तक है। यूरोपीय राजनीति विज्ञान के अध्येता उन्हें मैकियावेली ऑफ द ईस्ट कहते हैं। हालांकि दोनों में कोई समानता नहीं है। मैकियावेली का आधार धूर्तता था। चाणक्य का यह आधार नहीं था। उन्होंने राज व्यवस्था के सभी अंगों, सेना, प्रशासन, पुलिस, दौत्य सम्बंध, राजा, राजत्व, राजस्व आदि सभी के बारे में अपने सिद्धांत प्रस्तुत किये हैं। वे, प्रखर, चतुर दृढ़संकल्प, मज़बूत इच्छा शक्ति के व्यक्ति थे। वे शास्त्रज्ञ थे। नीति और सिंद्धान्तों के ही मर्मज्ञ नहीं बल्कि वे व्यवहारिक राजनीति में भी निपुण थे। कूटनीति में उनके कुछ सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।
आज हम ऐरे गैरे आपराधिक मानसिकता के किसी भी राजनेता को जिसे देश के इतिहास, परम्परा, वांग्मय का कुछ भी ज्ञान नहीं है, को चाणक्य के नाम से सम्बोधित कर देते हैं। यह न भूलिए कि चाणक्य ने भारत मे एक महान साम्राज्य की नींव रखी। देश को एक किया। इतिहास के प्रारंभिक कालखंड में एक स्वर्णिम समय का प्रारंभ किया। कहते हैं पंचतंत्र की कहानियां जो विष्णुगुप्त के नाम से हैं वह उन्हीं चाणक्य उर्फ कौटिल्य उर्फ विष्णुगुप्त की ही रचना है।
हमे चंद्रगुप्त मौर्य याद है। अशोक की महानता याद है । पर हम चंद्रगुप्त को सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से इतिहास में अमर कर देने वाले चाणक्य को अक्सर भुला देते हैं । उनके नाम का दुरुपयोग, हम कुछ छुद्र, बौने, स्वार्थी, और प्रतिशोधी राजनेताओं को महिमामण्डित करने के लिये, संबोधित कर, आर्य चाणक्य का अपमान कर बैठते है। लोकतंत्र की यह ठकुरसुहाती परंपरा निंदनीय है।
© विजय शंकर सिंह
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