सोशल मीडिया का एक लाभ यह है कि ऐसी बहुत सी जानकारी जो हमे परंपरागत मीडिया नहीं देता है या देना नहीं चाहता है या स्वरूप बदल कर देना चाहता है, उसका पर्दाफाश तुरन्त होने लगता है। आजतक की वेबसाइट से यह ज्ञात हुआ कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग में एक अध्यापक हैं ऋषि शर्मा। यह हिंदू हैं और 2015 से विश्वविद्यालय में उर्दू पढ़ा रहे हैं। किसी ने आपत्ति नहीं की। न उनके धर्म पर न ही उनकी जाति पर।
ऋषि शर्मा मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं जो बाद में बंगाल के इस्लामपुर गांव में इनका परिवार बस गया। इस्लामपुर के निहायत ही गरीब परिवार में परवरिश पाने वाले ऋषि शर्मा ने आजतक को बताया कि " उनके इलाके में कुछ ही घर हिंदुओं के हैं और उनके बचपन की शिक्षा भी मदरसे में हुई । क्योंकि उनका परिवार काफी गरीब था और फिर मदरसे में पढ़ाई के दौरान ही उनकी दिलचस्पी उर्दू के प्रति बढ़ी । वह बीएचयू से पहले इस्लामपुर कॉलेज में उर्दू पढ़ा चुके हैं। 2015 में 15 अक्टूबर को उन्होंने उर्दू विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम शुरू किया था। "
बीएचयू के धर्म विज्ञान विभाग में भले ही फ़िरोज़ खान की नियुक्ति को लेकर विवाद हो रहा हो, उर्दू विभाग में इसे लेकर कभी विवाद नहीं हुआ। उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आफताब अहमद अफाकी के अनुसार, यहां के उर्दू विभाग का अपना एक इतिहास रहा है । खुद महामना मदन मोहन मालवीय जी ने उर्दू, अरबी और फारसी डिपार्टमेंट को बनाया. तब से लेकर अबतक इस विभाग में बड़ी हस्तियां हमेशा से ही हिंदू रही हैं।
प्रो आफताब अहमद अफाकी ने कहा कि उर्दू विभाग की परंपरा रही है कि शिक्षकों के साथ-साथ छात्र भी अधिकतर हिंदू ही रहते हैं। भाषा किसी कौम की नहीं होती है। उसे किसी धर्म से जोड़ना ठीक नहीं है। बीएचयू के उर्दू विभाग का ही उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि मौलवी महेश प्रसाद उर्दू साहित्य में एक बड़ा नाम हैं। उन्होंने गालिब की चिट्ठियों को निखारने का काम किया.।
© विजय शंकर सिंह
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