Friday, 22 January 2021

शब्दवेध (83) -1- विश्वसभ्यता और भारत

इतिहास के अध्ययन की एक ही वैज्ञानिक विधि हो सकती है और वह है समग्र मानवता का इतिहास और उसके विकास  के रूपों, अवरोधों, ह्रास और विलोप के कारणों. कारकों और परिस्थितियों का विवेचन - अर्थात् विवेकपूर्वक प्रस्तुतीकरण  इसके अभाव में इतिहास का लेखन नस्लवादी, भाववादी  या क्षेत्रवादी पूर्वाग्ग्रहों से ग्रस्त  अर्थात् विषाक्त होने को बाध्य है।  

मैं जिस भारत को सभ्यता का जनक मानता हूँ वह अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण विश्व का वह भाग था, जिसने विगत हिमयुग में, हिमानी प्रकोप से प्राण रक्षा के लिए, अकल्पनीय दूरियों और परिस्थितियों से जीते-मरते आ कर शरण ली थी। ये कोरे नहीं थे।  इन्होंने  अपनी पिछली परिस्थितियों में, जीवन यापन के लिए अकल्पनीय युक्तियों और कौशलों और औजारों का विकास, किया था और आपसी संचार के लिए अकल्पनीय वाचिक संकेत-प्रणालियों का विकास किया था जिसे हम समझ के फेर से कभी भाषा कहते हैं, कभी बोली।  थी ये भाषाएँ ही क्योंकि भाषाविज्ञानी सिरफिरों की कल्पना की किसी प्रोटोटाइप के विघटन से  इनका जन्म नहीं हुआ था, यद्यपि इनके जत्थों  के टूटने, सुदूर भिन्न भाषाई परिवेश में अपना अटन या निवास क्षेत्र कायम करने  और अकल्पनीय अवधि के बाद, अकल्पनीय कारणों से उनसे मेलजोल बढ़ने या  विलय के बाद दोनों के तत्वों को समेटने वाली एक नई भाषा पैदा होती  गई थी पर थी यह भी भाषा न कि डाइलेक्ट। 

हम जिस तथ्य पर बल देना चाहते हैं वह यह कि महाप्रकृति ने जैसे अपनी एक  योजना के अंतर्गत विश्व मानवता को  भारतीय भूभाग में इस निमित्त  एकत्र कर लिया हो कि परस्पर मिल कर अपनी समस्याओं का हल  निकालो।

कहें विश्व मानवता ने किन्हीं विशेष परिस्थितियों में भारत में एकत्र हो कर उस रहस्यमय  चीज का आविष्कार किया जिसे विश्व सभ्यता कहते हैं। इसके विकास में समग्र मानवता का योगदान था। जैसे किसी विचार-विमर्श के लिए हम किसी सुविधाजनक स्थान पर गोष्ठियाँ करते है और जिस भी नतीजे या मतभेद पर पहुँचते हैं उसमें उस स्थान की भूमिका नहीं होती, विचार विमर्श में भाग लेने वाले लोगों की होती है उसी तरह भारतीय सभ्यता का अर्थ भी विश्वमानवों द्वारा आविष्कृत दक्षताओं का प्रसार और स्वीकार है। उसका श्रेय  समग्र मानवता को है।

भगवान सिंह 
( Bhgwan Singh )

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