अंग्रेजी के प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह का यह उद्धरण, द एंड ऑफ इंडिया, जो 2003 में प्रकाशित उनकी पुस्तक है, से लिया गया है। इस उद्धरण का पहले हिंदी अनुवाद पढ
‘हर फ़ासिस्ट सरकार को ऐसे समाज और समूहों की आवश्यकता पड़ती है, जिनका आसुरिकरण कर वे अपनीजड़ें जमा सकें। शुरुआत में तो यह एक या दो समूहों से शुरू होता है. लेकिन इसका अंत यहीं नहीं समाप्त होता है। इसे नफरत पर आधारित एक आंदोलन से लगातार, जिंदा रखा जाता है। और यह लगातार डर और झगड़े का माहौल बनाकर ही जारी रखा जा सकता है. हममें से जो लोग इस वक्त सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, क्योंकि हम मुस्लिम या ईसाई नही हैं, तो हम मूर्खो के स्वर्ग में रह रहे हैं। संघ ( आरएसएस ) पहले से ही वामपंथी इतिहासकारो और ‘पाश्चात्य तरीके’ से रहने वाले युवाओं को अपना निशाना बनाता रहा है। कल वह अपनी नफरत उन महिलाओं पर निकालेगा जो स्कर्ट पहनती हैं, उन लोगों पर निकालेगा जो मांस खाते हैं, शराब पीते हैं, विदेशी फिल्में देखते हैं, तीर्थयात्रा में मंदिरों में नहीं जाते हैं, दंत मंजन की जगह टूथपेस्ट इस्तेमाल करते हैं, वैद्य की जगह एलोपेथिक डॉक्टर्स के पास जाते हैं, ‘जय श्री राम’ बोलने की जगह हाथ मिलाकर या परस्पर चुम्बन कर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। कोई भी सुरक्षित नहीं है। अगर हम भारत को जीवित रखना चाहते हैं, तो हमें इन बातों को समझना जरूरी है.। "
अब इसका मूल अंग्रेजी अंश पढें,
" Every fascist regime needs communities and groups, it can demonize in order to thrive. It starts with one group or two. But it never ends there. A movement built on hate can only sustain itself by continually creating fear and strife. Those of us today who feel secure because we are not Muslims or Christians are living in a fool's paradise. The Sangh is already targeting the Leftist historians, and ' westernized ' youth. Tomorrow it will turn its hate on women who wear skirts, people who eat meat, drink liquor, watch foreign films, don't go on annual pilgrimage to temples, use toothpaste instead of danth manjan, prefer allopathic doctor to vaids, kiss or shake hands in greetings instead of shouting Jai Shri Ram.. No one is safe. We must realize this, if we hope to keep India alive. "
2003 में प्रकाशित यह किताब मैंने पढ़ी नहीं है। पर कल जब एक प्रतिभावान और जागरूक बालिका सना गांगुली की एक इंस्टाग्राम पोस्ट नज़र से गुजरी तो इस किताब के बारे में उत्कंठा हुयी । किताब नेंट पर भी उपलब्ध है। उत्कंठावश जब शुरुआती कुछ पन्ने नेंट पर पढें तो किताब के बारे में, उत्सुकता भी बढ़ी और नयी पीढ़ी के प्रति गर्व भी हुआ कि, वह देश और दुनिया मे क्या घट रहा है, उसके प्रति अनजान और उदासीन नहीं है। सना गांगुली का यह पोस्ट डिलीट किया जा चुका है। डिलीट करने या डिलीट हो जाने का कारण महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है खुशवंत सिंह की भविष्यवाणी भरा यह कथन जो उन्होंने 2003 में प्रकाशित अपनी किताब, द एंड ऑफ इंडिया में लिखी थी।
यह किताब, 2003 में छपी है। खुशवंत सिंह इस पुस्तक में 1984 के सिख विरोधी दंगे, उड़ीसा के पादरी ग्राहम स्टेन्स की बर्बर हत्या, 2002 के गुजरात दंगों, नक्सल आन्दोलन आदि आदि तथा और भी कुछ ऐसी घटनाएं जो घृणा और विद्वेष पर आधारित हैं, का उल्लेख और उनकी विवेचना करते हैं । साथ ही वह, यह चेतावनी भी देते हैं कि अगर हम ऐसे ही, घृणा भरी विभाजनकारी राहों पर चलते रहे तो भारत के अंत की यह शुरुआत होगी। खुशवंत सिंह, अंग्रेजी के एक सिद्धहस्त लेखक, प्रखर पत्रकार और जीवंत व्यक्ति रहे हैं। उनके साथ भी मेरी एक अकस्मात और विचित्र परिस्थितियों में मुलाकात हो चुकी है। उससे उनकी जिंदादिली का पता चलता है।
भारत एक देश है पर विविधता से भरा हुआ। इसे यूरोपीय नेशन स्टेट की तरह नहीं देखा जा सकता है। मुसोलिनी और हिटलर के चश्मे से तो कत्तई नहीं। भारत एक ऐसे क्रुसिबिल की तरह है जहां भांति भांति की नस्लें, धर्म,जाति, विचारधाराएं समय समय पर आती गयीं और फिर एक दूसरे से मिलते जुलते, सांस्कृतिक आदान प्रदान की दीर्घ परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने अलग अलग अस्तित्व के साथ साथ एक मिलीजुली सभ्यता और संस्कृति का निर्माण भी करती रही हैं और यह सिलसिला आज भी चल रहा है। फ़िराक़ साहब ने अपने इस प्रसिद्ध शेर में इस सिलसिले को बेहद खूबसूरती से कहा है।
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया !!
( फ़िराक़ गोरखपुरी )
खुशवंत सिंह ने अपनी किताब में इसी बहुलतावादी संस्कृति को नकार कर कट्टरता की विचारधारा को फैलाने के खतरे के प्रति आगाह किया है, और कहा है कि वह प्रवित्ति भारत की अवधारणा के विपरीत और भारत के अंत का प्रारंभ होगा। किताब मैंने अभी पूरी नहीं पढ़ी है, अतः फिलहाल इतना ही।
© विजय शंकर सिंह
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